Saturday, May 26, 2018

एक शख्सियत का छोटी सी जीवनी आपके सामने पेश कर रहा हूं
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एकमात्र बाड़मेर के किसान का बेटा ने
पत्रकारिता में अपने पूरे हिंदुस्तान में परचम लहराया


श्रीमान विरमाराम पिता श्री स्वर्गीय बन्नाराम जी

वीरमा राम के पूर्वज मूलतः बाड़मेर के माडपुरा-बरवाला पंचायत के रहने वाले हैं, जो पशुपालन का काम करते थे. ये लोग अक्सर गर्मियों के दिनों में अपने रेवड़ चराने के लिए वर्तमान जालौर जिले के मैदानी और पहाड़ी इलाकों का रुख करते थे, क्योंकि बाड़मेर की तुलना में जालौर जिले में पशुओं के लिए चारा थोड़ी आसानी से उपलब्ध था. देश की आज़ादी के वक़्त इनके पिताजी-दादाजी ने जालौर जिले के भीनमाल उपखंड में अपने रेवड़ के साथ डेरे डाल रखे थे. आजादी के बाद जब देश में भूमि-बन्दोबस्ती का कानून लागू हुआ तो पशुओं के डेरे वाली जमीनों पर इन्होंने अपने हक़ जता दिया और उक्त जमीनें इन पशुपालकों के नाम हो गई. कालांतर में इन्होंने में इन्होंने बाड़मेर से अपने कई रिश्तेदारों, भाई-बन्धुओं को भी बुला लिया. आज ये लोग 'ज्याणीयों की ढाणी' नाम के गांव में अच्छी खासी तादाद में आबाद हैं.

वीरमा राम के पिताजी एक निरक्षर किसान थे लेकिन उन्होंने अपने बच्चों की शिक्षा पर पूरा जोर दिया. इसी का नतीजा था कि वीरमा राम ने शुरआती पढ़ाई गांव में करने के बाद नवोदय स्कूल में दाखिला हासिल किया. राजस्थान विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया. ग्रेजुएशन के बाद वे भारत के नामी विश्विद्यालय जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय चले गए जहां से उन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में MA, MPhil और पीएचडी की. साथ ही पत्रकारिता भी. वीरमा राम ने करीब 5 सालों तक ज़ी न्यूज के साथ काम किया फिर वे जिंदल ग्रुप के 'न्यूज़ वर्ल्ड इंडिया' नामक चैनल के साथ जुड़ गए. पत्रकारिता में सीनियर ओहदों पर रहने के अलावा भी वो कई सारे थिंक टैंक, सामाजिक संस्थाओं के साथ जुड़े रहे. वीरमा राम बाहर के कुछ देशों के साथ-साथ देश के लगभग हर कौने का दौरा कर चुके हैं. विदेश मामलों, देश के सियासी हालातों से लेकर सामाजिक मसलों पर वे लगातार रिपोर्टिंग करते रहे हैं और लिखते रहे हैं.

उनके पसंदीदा विषय किसानी, जापान और सिंध रहे हैं. भारत-जापान संबंधों पर पीएचडी करने के बाद वे कुछ पुस्तकों के लेखन पर काम कर रहे हैं.

वीरमा राम के निरक्षर पिताजी के शिक्षा के प्रति रुझान का ही नतीजा है कि उनकी छोटी बहन जहां चिकित्सा सेवा में कार्यरत है तो उनका छोटा भाई राजस्थान प्रशासनिक सेवा का अधिकारी है.

बकौल वीरमा राम, दुनिया में शिक्षा से बड़ा कोई हथियार नहीं है. और समाज में क्रांतिकारी बदलाव का सबसे बड़ा जरिया शिक्षा ही है.
यह बाड़मेर मारवाड़ के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है
वहां पहुंचने के बाद बाड़मेर के युवाओं से संपर्क और उनका मार्गदर्शन करते रहते हैं
 रूबरू होने का मौका मिला तो बहुत अच्छा  लगा
पत्रकार श्रीमान विरमाराम जी
आपको बधाई अग्रिम भविष्य की शुभकामनाए....

Friday, May 25, 2018

मालाणी के सिरमौर रामदान

रामदान डऊकिया है मालाणी के सिरमौर।
हमेशा याद रहेगा इतिहास का वह दौर।।
तेजाराम के घर एक वीर ने जन्म पाया।
वह  इतिहास में राम दान कहलाया।।
15 मार्च 1884 का दिन निराला था।
वह वीर भविष्य में क्रांति लाने वाला था।।
सभी ने मिलकर खुशियां मनाई।
सबसे खुश थी जन्मदात्री दौली माई।।
मालाणी का गांव का था सरली।
जिसने बदलाव की हुंकार भर ली।।

Thursday, May 24, 2018

करतार सिंह सराभा


जन्म 24 मई 1896-शहीदी 16 नवम्बर 1915 (फांसी)
दुनिया की किसी भी क्रूर सत्ता के खिलाफ अपनी मात्र भूमि के लिए यलगार करने वालो में सबसे कम उम्र में शहीद होने वाला सूरमा 19 वर्ष में फासी पर झूलने वाला

यूनाइटेड नेशन के रिकोर्ड में दर्ज करतार सिंह ग्रेवाल इनका जन्म 1896ई. में जिला लुधियाना पंजाब के सराभा गाँव के जाट सरदार मंगल सिंह के घर हुआ था ।ये अपने माता पिता की अकेली औलाद थे इनका बचपन बड़े लाड प्यार और सुख सुविधाओ के बीच बीता था ।ये अपनी किशोर अवस्था में ही अमेरिका पहुच गए थे ये वहा जाकर गदर पार्टी के मुख पत्र का संचालन कर रहे थे ।

Tuesday, May 22, 2018

महाराजा सूरजमल जाट

13 फरवरी 1707 बदन सिंह घर जन्म पाया।
सन 1733 सूरजमल ने गढ भरतपुर बसाया।।
वीरता धीरता चातुर्य से सबको लोहा मनवाया ।
अजेय योद्धा का परचम विश्व भर में लहराया।।
वो जाट वीर था सदा सर्वधर्म हितकारी ।
हिन्दू मुस्लिम सब प्रजा थी उनको प्यारी ।।
25 वर्ष की उम्र में सोघर जीत आया।

Saturday, May 19, 2018

बलदेवराम जी मिर्धा

जब बलदेव के बल पर झूम उठा मारवाड़...

मानव सभ्यता में दो पहलू होते है।एक अच्छाई का तो दूसरा बुराई का।हर सभ्यता के हर कालखंड में जब अत्याचार सीमा लांघने लगते है तो कोई न कोई महापुरुष बगावत का झंडा उठाकर खड़ा हो जाता है।मारवाड़ की मरुधरा में जब राजाओं/सामंतों का आतंक चरम पर था उस समय कुचेरा,नागौर की धरा पर 17जनवरी 1889 को मगाराम जी राड़ के घर किसान केसरी के नाम से विख्यात बलदेवराम जी मिर्धा का जन्म हुआ था।मगाराम जी का परिवार जोधपुर राज्य में पोस्ट व टेलीग्राफ का कार्य देखता था व इनके उत्कृष्ट सेवाओं के लिए जोधपुर राज्य की तरफ से "मिर्धा"की उपाधि दी गई थी।

Thursday, May 17, 2018

किसानों का मक्का तेजाजी धाम खरनाल


किसानों का मक्का तेजाजी धाम खरनाल
जाट कौम के महापुरुषों को जानने की कड़ी में आज हम सत्यवादी वीर तेजाजी के बारे में जानने का प्रयास करेंगे।वीर तेजाजी का जन्म एक जाट घराने में हुआ जो धोलिया वंशी थे। नागौर जिले में खड़नाल गाँव में ताहरजी और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 यानि 29 जनवरी 1074 में हुआ था। उनके पिता गाँव के मुखिया थे।ताहरजी नागवंशी धौलिया गोत्र के जाट है।संत कान्हाराम जी,मनसुख जी रिणवा,ठाकुर देशराज आदि इतिहासकारों ने वंशावली का वर्णन करने की काफी हद तक कोशिश की है लेकिन तथ्यों के अभाव में ज्यादा पुख्ता जानकारी नहीं मिल पाई है।यह सत्य प्रतीत होता है कि मध्यभारत के नागवंशी कबीले का पलायन आगरा से धौलपुर व फिर नागौर के जायल कस्बे की तरफ हुआ और जायल में काला गोत्री जाटों से झगड़े के कारण खरनाल में ठिकाना बनाया।उस समय इस इलाके में चौहान वंश का केंद्रीय शासन माना जाता था।ताहड़ देव जी 24गांवों के परगने खरनाल के प्रमुख बन गए थे।

Wednesday, May 16, 2018

DR ADRSH KISHORE JANI(डॉ. आदर्श किशोर )

Dr. Adarsh Kishor Jani S/O Uma Ram Jani (Engineer) is an Associates NCC Officer Lieutenant and Assistant Professor Lecturer in Hindi at P.G. College Barmer and social worker from Barmer, Rajathan. He provides free coaching to the poor students for selection in jobs
                                                       

जीवन परिचय

जन्म - 1 जनवरी 1985 , जालोर के खमराई गाँव में।
पिताजी - स्व. श्री उमाराम जी जाणी, सार्वजनिक निर्माण विभाग में सहायक अभियंता थे।
माताजी- श्रीमती दमीदेवी, गृहणी।
आपके पिताजी स्वर्गीय उमाराम जी भी समाज सेवा में थे।

PAINTER PAVAN THAKAN

PAINTER PAWAN THAKAN

INTRODUTION=-
                             PAWAN THAKAN IS  self taught sketch artist from barmer rajsthan. 
Whatsapp 7023347969
BORN=-
           30 APRIL 1998
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RAJA MHENDRA PRATAP .. इतिहास मिटाने से नहीं मिटते !.....PREMA RAM SIYAG


इतिहास मिटाने से नहीं मिटते !
इतिहास कलम से भी नहीं बनते!!
इतिहास बनाने के लिए शौर्य,पराक्रम,त्याग व तपस्या की जरूरत होती है और धुंधला करने के लिए लंबी लकीर खींचने की जरूरत होती है।25दिसंबर 2015को यह खबर तो मीडिया में खूब आई कि मोदीजी नवाज शरीफ से मिलने उनके घर पहुंचे लेकिन यह बात छुपाने की कोशिश की गई कि काबुल की संसद में न चाहते हुए भी मोदीजी की जुबान से किसने सच्चा इतिहास उगलवा डाला था।नाम भले ही अटल ब्लॉक रखा हो लेकिन मुंह तो ब्लॉक एक जाट राजा ने ही रखा था।

बाबा महेंद्र सिंह टिकैत MAHENDRA SINGH TIKAT

25 अक्टूबर 1988
स्थान- दिल्ली का बोट क्लब
ले. PREMA RAM SIYAG

7लाख से ज्यादा किसानों की भीड़ के बीच लाउड स्पीकर पर एक आवाज गूंजती है "खबरदार इंडिया वालों!दिल्ली में भारत आ गया है।"जैसे ही यह आवाज गूंजी,पूरी दिल्ली में भूचाल सा आ गया!लुटियन जॉन में अजीब सी बेचैनी छा जाती है!

सरकारी गद्दारी पर भारी जाटों की ईमानदारी.....

सरकारी गद्दारी पर भारी जाटों की ईमानदारी.....
आज हरियाणा का जाट जिस सोशल इंजीनियरिंग से जूझ रहा है वो वाकई एक अजीब तरह की जंग है!किसी भी लोकतांत्रिक देश मे आपको एक भी ऐसा उदाहरण नहीं मिलेगा जहाँ सत्ता रेडिकल संगठनों के साथ मिलकर,दूसरे समुदायों को आगे करके मीडिया के माध्यम से एक ऐसे समुदाय को दबाने की कोशिश में लगी है जिसका इतिहास ही भारत का इतिहास है,जिसका वर्तमान ही भारत का वर्तमान है और उसी समुदाय के कंधों पर भारत का भविष्य टिका हुआ है।

मृत्युभोज

सबसे बड़े मृत्युभोज का आयोजनकर्ता पट्टीदार!दुख की बात यह है कि ऐसे पट्टीदारों को जाट समाज के पढ़े-लिखे लोग बधाई देकर हौंसला अफजाई कर रहे है।कलंक रीति के कलुशों के मुंह पर कालिख पोतने के बजाय युवा बड़े कारनामे के रूप में प्रस्तुत कर रहे है!
किसी इंसान की मौत के बाद खाने को जुटने वाले लोग इंसान तो कतई नहीं हो सकते!मानते है किसी के घर मे बुजुर्ग की मौत एक सदमा देने वाली घटना है लेकिन अनुभव व इतिहास के सबूत की विदाई के बाद खाने को भटकते लोगों के बारे में क्या कहा जाए!

जो लोग गांव-गांव तेजाजी के मंदिर बनाकर ब्राह्मणों को रोजगार दे रहे है वो लोग तेजाजी जैसे महापुरुषों के विचारों के हत्यारे है।ब्राह्मणवाद के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे लगाकर तुम भी तो वो ही काम कर रहे हो 
 तेजाजी महापुरुष थे ,है व रहेंगे लेकिन ब्राह्मणवाद की आग में जलकर तुमने जिस दिन तेजाजी महाराज को काल्पनिक देवता घोषित किया उसी दिन तेजाजी के विचार मरने शुरू हो गए!

ब्राह्मणवाद की धूर्तता

 
पिछले साल खरनाल का तेजादशमी मेला राजनीतिक भाषण का झंडुबाम बना और अनुयायी जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे तभी तेजाजी के तथाकथित चमत्कारों की प्रशस्तियाँ दिलों से निकलकर राजनीति के संग्रहालयों में पहुंच गई थी👌
जाट समाज धार्मिक कभी रहा ही नहीं इसलिए ब्राह्मणवाद की धूर्तता को गोदी में बैठाकर जाटों ने जनाजा निकाल दिया था!जाट कौम उत्सवों की भूखी है,जाट कौम मनोरंजन तलाश रही है।किसी भी तथाकथित धर्म को जाटों के हवाले करके देख लीजिए।तेजाजी को चमत्कारिक घोषित करने की आस में घुसे थे और सपना चौधरी की फूहड़ता लेकर निकल रहे है।यकीन न हो तो तेजाजी के नाम पर होने वाली भजन संध्याओं का नजारा देख लीजिए

धन्ना जाट


धन्ना जाट का जन्म 1415ईसवी में गांव धुआंन जिला टोंक राजस्थान में हुआ।गरीब किसान परिवार में पले धन्ना को माँ-बाप से मानव सेवा के संस्कार मिले।धन्ना भगत का इतिहास भी दूसरे गैर-ब्राह्मण महापुरुषों की तरह दंतकथाओं में ही सिमटा रह गया।धन्ना भगत भी गैर-ब्राह्मणी भक्ति परंपरा से निकले संतों की तरह महान संत थे जिसकी वाणी आज भी सिक्ख गुरुद्वारों में गाई जाती है।धन्ना,दादू,कबीर,रैदास,रामदास,कर्माबाई आदि संतों के पीछे पूरा गैर ब्राह्मणी संगठन स्थापित नहीं हो पाया इसलिए इनकी वाणियों को,दोहों को,भजनों को किसान-कमेरों के घर घर में तो गाया जाता है लेकिन व्यवस्थित इतिहास व धारा का संकलन ठीक से नहीं हो पाया।गुरुनानक ने जो दिशा दी व उसके पीछे उनके अनुयायियों ने जो व्यवस्था खड़ी की ऐसी व्यवस्था खड़ी करने में बाकी संतों के अनुयायी नाकाम रहे।

बाबा टिकैत MHENDRA SINGH TIKAIT

आज किसान मसीहा बाबा टिकैत को दिल से बहुत याद कर रहा हूँ।मेरा मन तो नहीं था ऐसे फकीरी में जीने वाले इंसान के बारे में लिखने को क्योंकि जिसको दिल से चाहता हूँ,जिसको आदर्श मानता हूँ,जिसका जीवन मेरा प्रेरणाश्रोत हो उसके बारे में लिखने की सोचता हूँ तो हाथ कांपने लग जाते है,बुद्धि जवाब दे देती है,भावुकता लबों पर उतर जाती है,आंसू पलकों पर छा जाते है!

विचारहीन-दिशाविहीन नेतृत्व से जूझता जाट समाज .....




विचारहीन-दिशाविहीन नेतृत्व से जूझता जाट समाज .....
पिछले दिनों बाड़मेर के कुछ गांवों में मंदिर निर्माण प्रतियोगिता हुई है व तकरीबन तीन करोड़ रुपये की बोलियां लगी।बाड़मेर राजस्थान में सबसे अभावग्रस्त इलाका माना जाता है लेकिन हकीकत में संसाधनों का अभाव है नहीं बल्कि बुद्धि का अभाव नजर आता है!जाट समाज की विडंबना सदैव यह रही है कि ब्राह्मणवादी व्यवस्था में वो अपने आप को उच्च घोषित करने में हमेशा लगा रहता है।

Tuesday, May 15, 2018

गौरवशाली इतिहास से भटकती एक कौम!

गौरवशाली इतिहास से भटकती एक कौम!गौरवशाली इतिहास से भटकती एक कौम!

         गोकुल सिंह अथवा गोकुला सिनसिनी गाँव का जाट था। 10 मई 1666 को जाटों व औरंगजेब की सेना में तिलपत में लड़ाई हुई। लड़ाई में जाटों की विजय हुई। मुगल शासन ने किसानों की लगान बढ़ा दी थी व धार्मिक उन्माद को नियंत्रित करने में नाकाम साबित हो रही थी।

Monday, May 14, 2018

jyani (ज्याणी) ज्याणी गौत्र का इतिहास

jyani (ज्याणी)[1] Jiani (जियाणी) Jani (जाणी) Jani (जानी)[2] Gotra Jats are found in Rajasthan,[3] HaryanaPunjab and Madhya Pradesh. Jani clan is found in Afghanistan.[4] Jani (जानी) Jat clan is found in Amritsar.[5] They supported the ascendant clan Johiya and became part of a political confederacy:[6]They had joined Parihar Confederation.ज्यानी  [1] जियानी (जियानी) जानी (जाणी) जानी (जानी) [2] गोत्र जाट राजस्थान में पाए जाते हैं, [3] हरियाणा, पंजाब और मध्य प्रदेश। अफगानिस्तान में जाणी कबीले पाए जाते हैं। [4] ज्यााणी(जाणी) जाट कबीले अमृतसर में पाई जाती है। [5] उन्होंने बढ़िया कबीले जोहिया का समर्थन किया और राजनीतिक संघटन का हिस्सा बन गया: [6] वे पारिहार संघ में शामिल हो गए थे।

Sunday, May 13, 2018

JAT VEBSITE AND BLOGS

Jatland Wiki:About

Jatland.com is the ultimate resource for the Jats, providing Jats around the world a platform to interact with the community and connect with our roots.

डॉ भरत सारण Dr Bharat Saran


Dr Bharat Saran
Dr Bharat Saran from Barmer provides coaching through an Institute by the name '50-Villagers' to the needy students to get admission in NEET and All India Institute of Medical Sciences. Email:bharatsaran10@gmail.com, Mob: 9413942612

जीवन परिचय


15 अगस्त 2017 पर सम्मान पाते हुये टीम-50 विलेजर्स
डॉ भरत सारण : मानवतावाद का पुरोधा, An empathetic doctor, स्वानुभूति से परिपूर्ण डॉक्टर। एक अत्यंत सामान्य पृष्ठभूमि के कृषक परिवार में जन्म । ग्रामीण जीवन की विकट परिस्थितियों से
संघर्ष करते हुए पढ़ाई के सोपान सधे हुए कदमों से पार किए। अभाव और उपेक्षा को चुनौती के रूप में स्वीकार कर बुलंद हौंसले , लगन और आत्मविश्वास के बल पर जीवन-पथ पर आगे बढ़ने का क्रम जारी रखा। एक ऊर्जावान, कर्तव्यनिष्ठ ,सामाजिक सरोकारी, परहितकारी, अनुशासन प्रिय,ओज़ ,जोश, होश से भरपूर शालीन शख्सियत।
  • मूल निवासी: गांव - छीतर का पार, तहसील-बायतु, जिला- बाड़मेर (राजस्थान) पिन 344035
  • जन्म-तिथि: 5 जून 1985
  • माता जी का नाम: श्रीमती धन्नी देवी
  • पिता जी का नाम: श्री जेताराम सारण

शैक्षणिक योग्यता

  • वर्ष 2015 में एम. बी. बी. एस. डिग्री अर्जित ; राजकीय मेडिकल कॉलेज, कोटा से
  • वर्ष 2003 में सीनियर सेकेंडरी परीक्षा उतीर्ण; राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल, स्टेशन रोड, बाड़मेर से 67 प्रतिशत प्राप्तांक के साथ।
  • वर्ष 2001 में सेकेंडरी परीक्षा उतीर्ण ; राजकीय सेकेंडरी स्कूल, कवास (बाड़मेर) से 80 प्रतिशत प्राप्तांक के साथ।

हरलाल सियाग HARLAL SIYAG


हरलाल सियाग
हरलाल सियाग (1951 - 1994) (Harlal Siyag) का जन्म राजस्थान के बाड़मेर जिले की रामसर तहसील के चाडी गाँव में धोंकलराम एवं मिरगों देवी के घर 30 अप्रेल 1951 को हुआ.

राष्ट्रीय खिलाड़ी

आप बाल्यकाल से ही संघर्षशील, दृढ निश्चयी रहे हैं. कबड्डी के
राष्ट्रीय खिलाड़ी रहे. 1974 में राष्ट्रीय स्तर पर राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया. आप बास्केट बाल, वाली बाल के अच्छे खिलाड़ी होने के साथ ही एनसीसी के सफल कडेट रहे.

किसान वर्ग के तारणहार चौधरी कुम्भाराम आर्य KUMBHA RAM ARYA




किसान वर्ग के तारणहार चौधरी कुम्भाराम आर्य
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राजस्थान के किसानों को राजशाही व सामन्तशाही के दमन, शोषण व उत्पीड़न के चक्रव्यूह से बाहर निकालने की मुहिम को गति देने और फिर उन्हें खातेदारी का हक़ दिलाकर उनकी जिंदगी को रोशन करने का श्रेय चौधरी कुम्भाराम आर्य को जाता है। चौधरी कुम्भाराम आर्य ( जन्म: 10 मई 1914; देहावसान: 26 अक्टूबर 1995 ) में एक सफल संगठनकर्ता,

करणीराम मील और रामदेव सिंह गिल का जीवन परिचय KARNIRAM AND RAMDEV SINGH

करणीराम मील और रामदेव सिंह गिल का जीवन परिचय
13 मई 1952 को चंवरा ग्राम में ये दोनों स्वतंत्रता सेनानी और किसान नेता किसानों के लिए शहीद हुये थे. आज उनका निर्वाण दिवस हैं. हम उनको नमन करते हैं.
शेखावाटी भू-भाग: वर्तमान राजस्थान का झुंझुनू जिला तत्कालीन जयपुर रियासत का भाग था और शेखावाटी के नाम से जाना जाता था. पूरा भू-भाग जागिरी क्षेत्र था. छोटे बड़े जागीरदारों का आधिपत्य था. इसी का एक भू-भाग उदयपुरवाटी के नाम से जाना जाता था. आज भी उदयपुरवाटी तहसील क्षेत्र कहलाता है.

रामदानजी का जीवन परिचय RAMDAN DAUKIYA BARMER


रामदानजी का जीवन परिचय

वर्तमान बाड़मेर जिले के पश्चिमी भाग को मालानी परगना के नाम से जाना जाता है. यह आजादी पूर्व जोधपुर रियासत का सीमान्त परगना था. इस क्षेत्र के पश्चिम में पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की सीमा लगती थी. आजादी पूर्व मालानी का फैलाव जसोल से सिंध तक 100 मील लम्बा और 75 मील चौड़ा था. इस परगना में 503 गाँव थे. [2]

जाट इतिहास (उत्पत्ति और गौरव खंड) JAT UTPATTI -THAKUR DESHRAJ

Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Prastavana

Digitized & Wikified by Laxman Burdak, IFS (R)

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जाट इतिहास (उत्पत्ति और गौरव खंड), 1937, लेखक: ठाकुर देशराज

प्रस्तावना

इतिहास की आवश्यकता

[p.i]
उन्नति की इच्छुक प्रत्येक जाति को इतिहास की अत्यंत आवश्यकता है। क्योंकि जनसमूह जितना प्राचीन गौरवपूर्ण गाथाओं को सुनकर प्रभावित होता है उतना भविष्य के सुंदर से सुंदर आदर्श की कल्पना से नहीं होता है। यह सर्वमान्य सिद्धांत है कि जिस जाति का जितना ही गौरवपूर्ण इतिहास होगा वह जाति उतनी ही सजीव होगी। इसी कारण विजेता जाति ने पराजित जाति के इतिहास को या तो कतई तौर से नष्ट करके पेश करती है जैसा कि भारत के मुगल, पठान आदि लोगों ने किया था अथवा ऐसे ढंग से पेश करती है जिससे जाति को गौरवान्वित होने का उत्साह न हो सके। इतिहास का इस प्रकार स्वरूप प्राय अंग्रेज लेखकों ने भारत के सामने पेश किया है।
इस प्रकार सारा भारत विदेशी ताकतों द्वारा पराजित होता है उसी प्रकार जाट जाति भी कुछ देशी विदेशी ताकतों के धोखे अथवा वीरता से जीत ली गई। संसार के इतिहास में भी कोई आश्चर्य की बात नहीं है बहादुर से बहादुर जातियां भी कभी न कभी विजित हो जाती हैं। एशिया तथा यूरोप में अपने वीरतापूर्ण कार्यों से तहलका मचा देने वाली जाट जाति भी छठी शताब्दी के बाद मुसलमान ब्राह्मण

[p.ii]
और राजपूतों द्वारा जीत ली गई। सिंध और काबुल में क्रमशः चच और लल्लिय नाम के ब्राह्मण मंत्रियों ने अपने जाट नरेशों के साथ विश्वासघात करके दोनों राज्य छीन लिए। अन्य छोटे-मोटे पंजाबसिंध, युक्त-प्रांत और कश्मीर के जाट राज्य मुसलमानों ने जीत लिए। राजस्थानमध्य भारत के जाट राज्य नई हिंदू सभ्यता से मंडित राजपूतों ने हतिया लिए।

दोहरे संघर्ष का सामना

जाटों को पिछले एक हजार वर्ष ईसा की छठी शताब्दी से 16वीं शताब्दी तक दोहरे संघर्ष का सामना करना पड़ा है। धार्मिक संघर्ष और राजनैतिक संघर्ष ने उनके ढांचे को काफी जर्जर कर दिया है। पंजाब और राजपूताना में फिर से यदि वे राज्य शक्ति प्राप्त न करते तो इसमें संदेह है कि सामाजिक पद उनका आज के स्थान पर भी रहता।

इतिहास को अंधकार में डालने की कार्यवाहियां

चूँकि वे वीजित हो चुके थे, अतः उनके अवशिष्ट इतिहास को अंधकार में डालने और दूसरा ही रूप देने की विचित्र कार्यवाहियां की गई। जगा और भाट जिनकी कि उपयोगिता पिछले जमाने में जाट मानने लग गए थे उनकी बहियों में जाटों को दोगला लिखाया गया। हर एक ऐसे जाट खानदान के संबंध में जो कि राजपूतों में भी मिलता है। यह लिखा गया कि उसके अमुक पुरुष ने अमुक गोत्र के जाट की लड़की से शादी कर ली थी। अतः राजपूतों ने उसे बिरादरी से निकाल दिया और वह जाट हो गया। इसके स्पष्ट अर्थ यह हैं कि जाट उन लोगों का समूह है जो राजपूतों ने बिरादरी से बाहर कर दिए थे।

आत्म-गौरव और जातीय-अभिमान मिटाना

[p.iii]
कहावत है कि गुलाम जाति का दिमाग भी गुलाम हो जाता है। इसी लोकोक्ति के अनुसार जाटों का एक समूह भी यह मानने लग गया कि हम तो पहले राजपूत थे बाद में जाट हो गए हैं। हालांकि यह बात ऐसी थी जैसे स्कूल में पढ़ने वाले लाखों विद्यार्थियों का यह ख्याल हो गया है कि अंग्रेजों के आने से पहले हिंदुस्तान निरा जंगलियों का देश था। सदैव से ही विजेता जाति इस प्रयत्न में रहती है कि किसी भी तरह पराजित जाति के अंदर से आत्मगौरव अथवा जातीय-अभिमान की मात्रा मिटा दी जाए। क्योंकि आत्म-गौरव और जातीय अभिमान सदैव ही व्यक्ति के हृदय में उन्नत होने की प्रेरणा किया करते हैं।
इसी लक्ष्य को सामने रखकर राजपूताने में तो राजपूत शासकों ने जाटों के लिए पालत्यांखोथला आदि जैसे घृणित नाम भी ईज़ाद कर लिए। पालत्यां का अर्थ पालित और आश्रित होता है। उनका कहना है कि हमने जाट लोगों को लाकर अपने राज्य में बसाया था। हालांकि यह बात मजाक से अधिक वजनदार नहीं है। जाट राजपूताने में जहां भी कहीं आबाद हैं दस पाँच शताब्दियों से नहीं किंतु बीसवीं शताब्दी से आबाद हैं। राजस्थान के वर्तमान राजपूत शासक खानदान में कोई भी 10 वीं शताब्दी से पहले का नहीं है। यह बात उन्हीं के इतिहास से साबित होती है।
इतना सब कुछ लिखने से हमारा इसके सिवा कुछ मतलब नहीं है कि जाट जाति आत्मगौरव और जाति अभिमान से वंचित

[p.iv]
की जा चुकी है। उसके दिमाग में दूसरों द्वारा जो गलत बातें बिठा दी गई हैं उन्हें ही वह सही मान बैठी है।

सही बात तो यह है

पिछले 5 वर्षों से मैंने इस और भरपूर शक्ति लगाई है कि लोग इस गलत बात को अपने दिमाग से निकाल कर फेंक दे कि हमारे किसी पुरखे ने जाटनी से शादी कर ली थी इसलिए हम राजपूत से जाट हो गए। सही बात तो यह है कि वे सभी राजपूत खानदान जो जाटों के गोत्र से मिलते हैं, अपने पुराने समूह को छोड़कर अथवा उन तमाम रिवाजों से - जिन्हें नया हिंदू धर्म पसंद नहीं करता था और जो वैदिक काल से चली आती थी, संबंध विच्छेद करके हमसे अलग हो गए हैं। जस्टिस कैंपबेल साहब ने भी यही बात कही है कि पुराने रिवाजों को मानने वाला जाट और नवीन रिवाजों को मानने पर राजपूत है।
कोई जाति आत्मगौरव से तभी ओत-प्रोत हो सकती है जब उसका अपना इतिहास हो। भला जिस जाट जाति ने एशिया और यूरोप को अपनी योग्यता और वीरता से चकित किया हो, उसका कोई इतिहास नहीं था! अवश्य था किंतु पोथी के रूप में - सो भी किसी एक ऐसी पोथी के रूप में जिससे केवल जाट इतिहास की पोथी का नाम दे सकें न था। इसी कमी को दूर करने के लिए मैंने 3 वर्ष के कठिन परिश्रम के बाद सन् 1934 ई. की बसंत पंचमी पर "जाट इतिहास" तैयार किया था। जाट और गैर जाट सभी लोगों ने उसकी प्रशंसा की थी। पंडित इंद्र विद्यावाचस्पति ने उसकी भूमिका में लिखा था कि "यह

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इतिहास जाट जाति का विश्वकोश है। जाट जाति के संबंध में कुछ जानने के लिए दूसरे द्वार पर जाने की आवश्यकता नहीं है। इस इतिहास को लिखकर ठाकुर देशराज ने जाट जाति का ही नहीं अपितु सारी आर्य जातिका उपकार किया है"।
मासिक 'विश्वामित्र' दैनिक 'अर्जुन' साप्ताहिक 'सैनिक' आदि जिस किसी भी अखबार के पास उस की कॉपी भेजी सबने समालोचना में उसकी प्रशंसा की थी। कई राजपूत नरेशों और जागीरदारों ने भी उसे खरीदा है। जिनमें युवराज श्री रघुवीरसिंहजी सीतामऊ (जिन्हें कि एक इतिहास पुस्तक लिखने पर ही डीलिट की उपाधि मिली है), राजा साहब खंडेला, राव साहब खरबा, राव साहब आवागढ़ और राजा बहादुर कोटला के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं।

जाट इतिहास का अधिक से अधिक प्रचार हो

....'जाट इतिहास' ने 'जाट जनता' में आत्मगौरव और जातीय मान की वृद्धि के लिए एक नई स्फूर्ति पैदा की है। सभी विचारशील जाट सज्जन यह चाहते हैं कि उसका अधिक से अधिक प्रचार हो। प्रत्येक घर नहीं तो प्रत्येक गांव में जाट इतिहास की एक कॉपी तो हो ही। साथ ही जो जाट सरदार शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हैं उनकी प्रबल इच्छा थी कि जाटों की निजी शिक्षण संस्थाओं में तो इतिहास अवश्य ही पढ़ाया जाए। मुझे किसी ने कहा था कि बड़ोत जाट हाईस्कूल में धर्म शिक्षण के घंटे में जाट इतिहास पढ़ाया जाता है। अब की साल अप्रैल के महीने में जाट हाईस्कूल मुजफ्फरनगर के उत्सव में शामिल होने के लिए मैं गया तो वहां

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पर मास्टर श्री शेरसिंहजी ने यह सलाह दी कि यदि आप स्कूलों में विद्यार्थियों के पढ़ने के लिए जाट इतिहास का एक ऐसा खंड अलग छपा दें जिसमें उत्पत्ति और गौरव संबंधी बातें हों तो ठीक रहे। हम अपने स्कूल की पाठ-विधि में उसे रख लेंगे। इसके बाद मैं सोनीपत गया वहां पर जाट हाई स्कूल में चौधरी टीकारामजी सेक्रेटरी पंजाब काउंसिल के तत्वावधान में जाट गौरव पर मेरा भाषण हुआ। मेरे भाषण की समाप्ति पर चौधरी करणसिंहजी हेड मास्टर ने भी अपने सारयुक्त भाषण में लगभग वही बात कही जो मास्टर शेरसिंहजी मुजफ्फरनगर की सलाह में थी।
चौधरी शादीरामजी वकील और सेक्रेटरी साहब के आश्वासनों से मैंने यह निश्चय कर लिया कि जाट बालकों के लिए अवश्य ही जाट इतिहास का एक प्रथम संस्करण प्रकाशित करूंगा। रोहतक हाईस्कूल मैनेजिंग कमेटी के सेक्रेटरी चौधरी भूपसिंह जी एडवोकेट साहब ने भी इस तजवीज को पसंद किया।
अन्य जाट शिक्षण संस्थाओं के अध्यापकों और प्रबंधकों से मुझे मिलने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ फिर भी मैं आशा करता हूं कि मेरे इस आयोजन को स्वीकार करेंगे ही।

प्रस्तुत पुस्तक की उपयोगिता

विद्यार्थी-काल में आत्मगौरव और जाति-अभिमान के भाव पैदा करने के उद्देश्य से इतिहास का यह खंड अवश्य लाभदायक होगा। ऐसी मुझे आशा है।

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इसके बाद मैं चाहता हूं कि शेष इतिहास को भी नई खोजों के मैटर समेत खंडों में ही प्रकाशित करा दूं, ताकि जाट इतिहास का अधिकाधिक प्रचार हो सके। किंतु इससे मुझे लाभ की अपेक्षा हानी की अधिक संभावना है। कारण कि बचे हुए इतिहासों का बिकना खटाई में पड़ जाएगा। परंतु व्यक्तिगत लाभ की अपेक्षा मैंने सदा सार्वजनिक कौम के लाभ को महत्व दिया है। यदि उनका स्वागत हुआ तो अगले वर्ष राजपूताना-मध्य भारत का इतिहास खंड भी प्रकाशित किया जाएगा। इसके बाद पंजाब और दिल्ली प्रांत का अलग खण्ड होगा। सिंध प्रांत का जाट इतिहास भी स्वतंत्र खंड में प्रकाशित किया जाएगा। 'विदेशों में जाटशाही खंड' का मैटर इकट्ठा करने के लिए मैं ईरान और अफगानिस्तान जाने की सोच रहा हूं। देखें देव कहां तक सहायता देता है।
उस बड़े इतिहास को लिख कर भी मैं संतोष से नहीं बैठा हूं। मैं जानता हूं और मानता हूं कि महान जाट जाति का तो महान ही इतिहास होना चाहिए। यदि कोई खास स्थिति पैदा न हो गई हो तो अगले 5 वर्ष में केवल जाट गौरव की सामग्री इकट्ठा करने में ही बिताऊंगा। मेरी प्रबल इच्छा है कि अपनी कौम के सामने - जैसी कि वह महान है - वैसा ही महान इतिहास ग्रंथ जिसमें लगभग 5 हजार पेज हों, पेश करूँ।

[p.viii] पाठक ! इस खंड में भी कुछ ऐसी सामग्री पाएंगे जो मेरी हाल की नई खोज का नतीजा है। इस प्रकार नई खोज की सामग्री मेरे पास बहुत है जो प्रत्येक खंड के साथ यथा समय जाट जगत की सेवा में पेश की जाएगी।
मैं समझता हूं कि 'जाट इतिहास' में उच्च कोटि की हिंदी का प्रयोग हुआ था। इसलिए मैंने इस 'खंड इतिहास' में भाषा सरल बनाने की कोशिश की है फिर भी अनेकों स्थलों पर सरल करने में मैं सफल नहीं हुआ। क्योंकि सरल करना और भावों को शिथिल करना एक जैसा ही है।
वैसे मैंने यह प्रयत्न किया है कि यह इतिहास भौगोलिक आधार से रहित न हो। इसलिए जाटों की संख्या, विस्तार, आदि-भूमि और नौ-आबादी (उपनिवेशों) सबका पता देने की कोशिश की है। 'जाट-स्थान' का एक नक्शा भी इसमें दिया गया है जो अंदाज से नहीं किंतु ऐतिहासिक प्रमाण के आधार पर तैयार कराया गया है।
पाठक इसमें जाटों की राष्ट्रीय-पताका का भी दर्शन करेंगे। पताका पर हल और तलवार का चिन्ह कल्पना से नहीं दिए गए हैं। यह टोड साहब के उस उल्लेख के आधार पर हैं जो उन्होंने यूरोप में फैलने वाले जाट समूह के झंडे पर बताए हैं। तलवार और हल के चिन्ह उनके प्रजातांत्री (जाति-राष्ट्रवादी) होने के परिचायक हैं। श्री काशीप्रसाद जायसवाल ने अपने 'हिंदू पोलिटी' नामक तवारीख में प्रजातंत्र समुदायों

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के संबंध में लिखा है कि "शांति के समय उनके हाथों में हल और युद्ध के समय तलवार होती है"।
मेरी अंतरात्मा कहती है कि भारत की राष्ट्रीय पताका पर भी एक दिन यही हल और तलवार के चिन्ह होंगे। इस अंतर्ध्वनि में मैं सचाई इसलिए मानता हूं कि अब से कई वर्ष पहले जाटों के झंडे का जैसा मूर्त रूप मेरी आंखों में नाचा था वैसा ही टाॅड राजस्थान में मैंने लिखा पाया।
पंजाब स्थित मालवा प्रदेश की जाट सभा के झंडे पर भी जब यही हल और तलवार का चिन्ह सुना तो अत्यंत प्रसन्नता हुई। जाटों के झंडे का रंग मैं बसंती मानता हूँ। ऐसा लेखबद्ध प्रमाण भी मेरे पास है। प्रत्येक जाति और संप्रदाय में झंडे की बड़ी कदर होती है। हमारा तरुण समाज भी अपनी प्यारी पताका की कद्र करना सीखेगा और उसमें श्रद्धा और भक्ति रखेगा। पुस्तक के अंत में इसी हेतु से एक पताका गान भी दिया जा रहा है जिससे ठाकुर रामबाबूसिंहजी परिहार ने तैयार किया है। मुझे आशा है जाट जगत मेरे इस आयोजन और सेवा को पसंद करेगा।

डाबड़ा कांड के शहीद

#अमर_शहीदों_को_नमन्                                           13मार्च 1947का दिन था।जगह थी नागौर जिले की डीडवाना तहसील में गांव डाबड़ा!एक कि...