किसान वर्ग के शीर्षस्थ नेता
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' ज़मीन कींकी?'
' बावै बींकी।'
जागीरी ज़ुल्म के दौर में ऐसे सुदृढ़ स्वप्नद्रष्टा और फिर स्वाधीनता संग्राम के बाद सत्ता के गलियारे में अपनी धमक के बलबूते पर इस सँजोए सपने को प्राथमिकता के आधार पर साकार कर देने वाले राजस्थान के किसान वर्ग के मसीहा चौधरी कुम्भाराम आर्य को उनकी पुण्यतिथि 26 अक्टूबर पर भावभीनी श्रद्धांजलि!!
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' ज़मीन कींकी?'
' बावै बींकी।'
जागीरी ज़ुल्म के दौर में ऐसे सुदृढ़ स्वप्नद्रष्टा और फिर स्वाधीनता संग्राम के बाद सत्ता के गलियारे में अपनी धमक के बलबूते पर इस सँजोए सपने को प्राथमिकता के आधार पर साकार कर देने वाले राजस्थान के किसान वर्ग के मसीहा चौधरी कुम्भाराम आर्य को उनकी पुण्यतिथि 26 अक्टूबर पर भावभीनी श्रद्धांजलि!!
स्वाधीनता से पूर्व राजस्थान में सदियों से राजशाही, सामंती और साम्राज्यवादी व्यवस्था का तिहरा गठजोड़ विद्यमान था। 'भू स्वामियों के एक श्रेणी तंत्र ने संपूर्ण सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक ढांचे पर आधिपत्य स्थापित कर रखा था, जिसमें स्वायत्तशासी देशी रियासतों के राजाओं से लेकर बड़ी-बड़ी जागीरों के मालिक तक सम्मिलित थे।' जागीरदारों के प्रश्रय में पोषित अनेक छोटे बिचौलिए भी इस व्यवस्था के उच्चत्तर सोपानों पर प्रतिष्ठित थे।