LORD SHIVA & Jats & barhamin.
Deva Samhita - The ancient holy book of hindhu religion written by renowned scholar Pundit Gourakh kumar in which the JATs have been regarded as GOD by the barhamin Gurus. Deva-Samhita has been kept most secret and guarded by the Top Hindhu Guru Mahatmas.
Jats mentioned in Devasamhita. This the copy of origin Dev Samhita. Any one can buy it from Gita publications. In ancient india, Barhamin worshipped jats as Devta and Rulers now they call us jalaad, chandal, and lootera. Just because we have lost our political power. Read it attentively.
देवसंहिता के कुछ श्लोक निम्न प्रकार हैं-
पार्वत्युवाचः
भगवन सर्व भूतेश सर्व धर्म विदाम्बरः
कृपया कथ्यतां नाथ जाटानां जन्म कर्मजम् ।।12।।
अर्थ- हे भगवन! हे भूतेश! हे सर्व धर्म विशारदों में श्रेष्ठ! हे स्वामिन! आप कृपा करके मेरे तईं जाट जाति का जन्म एवं कर्म कथन कीजिये ।।12।।
का च माता पिता ह्वेषां का जाति बद किकुलं ।
कस्तिन काले शुभे जाता प्रश्नानेतान बद प्रभो ।।13।।
अर्थ- हे शंकरजी ! इनकी माता कौन है, पिता कौन है, जाति कौन है, किस काल में इनका जन्म हुआ है ? ।।13।।
श्री महादेव उवाच:
श्रृणु देवि जगद्वन्दे सत्यं सत्यं वदामिते ।
जटानां जन्मकर्माणि यन्न पूर्व प्रकाशितं ।।14।।
अर्थ- महादेवजी पार्वती का अभिप्राय जानकर बोले कि जगन्माता भगवती ! जाट जाति का जन्म कर्म मैं तुम्हारी ताईं सत्य-सत्य कथन करता हूँ कि जो आज पर्यंत किसी ने न श्रवण किया है और न कथन किया है ।।14।।
महाबला महावीर्या, महासत्य पराक्रमाः ।
सर्वाग्रे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़-व्रता: || 15 ||
अर्थ- शिवजी बोले कि जाट महाबली हैं, महा वीर्यवान और बड़े पराक्रमी हैं क्षत्रिय प्रभृति क्षितिपालों के पूर्व काल में यह जाति ही पृथ्वी पर राजे-महाराजे रहीं । जाट जाति देव-जाति से श्रेष्ठ है, और दृढ़-प्रतिज्ञा वाले हैं || 15 ||
श्रृष्टेरादौ महामाये वीर भद्रस्य शक्तित: ।
कन्यानां दक्षस्य गर्भे जाता जट्टा महेश्वरी || 16 ||
अर्थ- शंकरजी बोले हे भगवती ! सृष्टि के आदि में वीरभद्रजी की योगमाया के प्रभाव से उत्पन्न जो पुरूष उनके द्वारा और ब्रह्मपुत्र दक्ष महाराज की कन्या गणी से जाट जाति उत्पन्न होती भई, सो आगे स्पष्ट होवेगा || 16 ||
गर्व खर्चोत्र विग्राणां देवानां च महेश्वरी ।
विचित्रं विस्मयं सत्वं पौराण कै साङ्गीपितं || 17 ||
अर्थ- शंकरजी बोले हे देवि ! जाट जाति की उत्पत्ति का जो इतिहास है सो अत्यन्त आश्चर्यमय है । इस इतिहास में विप्र जाति एवं देव जाति का गर्व खर्च होता है । इस कारण इतिहास वर्णनकर्ता कविगणों ने जाट जाति के इतिहास को प्रकाश नहीं किया है || 17 ||
Deva Samhita[2]
Deva Samhitā (देवसंहिता) is a collection of Sanskrit hymns by Gorakh Sinha during the early medieval period. Deva Samhitā propounded the theory of Origin of Jats from Shiva's Locks. [3] [4] [5] Devasamhita records an account of the Origin of the Jats in the form of discussion between Shiva and Parvati expressed in shloka (verses). Pārvatī asks Shiva, O Lord Bhutesha, knower of all religions, kindly narrate about the birth and exploits of the Jat race. Who is their father? Who is their mother? Which race are they? When were they born? Having read the mind of Parvati, Shiva said, "O mother of the world, I may tell you honestly the origin and exploits of the Jats about whom none else has so far revealed anything to you. Some relevant verses are given below.
There is mention of Jats in Deva Samhitā [6] in the form of powerful rulers over vast plains of Central Asia[7]. When Pārvatī asks Shiva about the origin of Jats, their antiquity and characters of Jats, Shiva tells her like this in Sanskrit shloka-15 as under:
महाबला महावीर्या, महासत्य पराक्रमाः Mahābalā mahāvīryā, Mahāsatya parākramāḥ
सर्वाग्रे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़-व्रता: Sarvāgre kshatriyā jattā Devakalpā dridh-vratāḥ || 15 ||
Meaning - "They are symbol of sacrifice, bravery and industry. They are, like gods, firm of determination and of all the kshatriyā, the Jats are the prime rulers of the earth." [8]
Shiva explains Parvati about the origin of Jats in Shloka –16 of Deva samhita as under:
श्रृष्टेरादौ महामाये वीर भद्रस्य शक्तित: Shrishterādau mahāmāye Virabhadrasya shaktitaḥ
कन्यानां दक्षस्य गर्भे जाता जट्टा महेश्वरी Kanyānām Dakshasya garbhe jātā jattā maheshwarī. || 16 ||
Meaning – "In the beginning of the universe with the personification of the illusionary powers of Virabhadra and Daksha's daughter gani's womb originated the caste of Jats."
Pārvatī asks, in the shloka-17 of 'Deva Samhitā' about the origin and exploits of the Jats, whom none else has so far revealed, Shiva tells Parvati that:
गर्व खर्चोत्र विग्राणां देवानां च महेश्वरी Garva kharchotra vigrānam devānām cha maheshwarī
विचित्रं विस्मयं सत्वं पौराण कै साङ्गीपितं Vichitram vismayam satvam Pauran kai sāngīpitam || 17 ||
Meaning - "The history of origin of Jats is extremely wonderful and their antiquity glorious. The Pundits of history did not record their annals, lest it should injure and impair their false pride of the vipras and gods. We describe that realistic history before you."
Daksha's sacrifice by Virabhadra
ठाकुर देशराज के जाट इतिहास से
ठाकुर देशराज [14]लिखते हैं कि जाटों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में एक मनोरंजक कथा कही जाती है. महादेवजी के श्वसुर राजा दक्ष ने यज्ञ रचा और अन्य प्रायः सभी देवताओं को तो यज्ञ में बुलाया पर न तो महादेवजी को ही बुलाया और न ही अपनी पुत्री सती को ही निमंत्रित किया. पिता का यज्ञ समझ कर सती बिना बुलाए ही पहुँच गयी, किंतु जब उसने वहां देखा कि न तो उनके पति का भाग ही निकाला गया है और न उसका ही सत्कार किया गया इसलिए उसने वहीं प्राणांत कर दिए. महादेवजी को जब यह समाचार मिला, तो उन्होंने दक्ष और उसके सलाहकारों को दंड देने के लिए अपनी जटा से 'वीरभद्र' नामक गण उत्पन्न किया. वीरभद्र ने अपने अन्य साथी गणों के साथ आकर दक्ष का सर काट लिया और उसके साथियों को भी पूरा दंड दिया. यह केवल किंवदंती ही नहीं बल्कि संस्कृत श्लोकों में इसकी पूरी रचना की गयी है जो देवसंहिता के नाम से जानी जाती है. इसमें लिखा है कि विष्णु ने आकर शिवाजी को प्रसन्न करके उनके वरदान से दक्ष को जीवित किया और दक्ष और शिवाजी में समझोता कराने के बाद शिवाजी से प्रार्थना की कि महाराज आप अपने मतानुयाई 'जाटों' का यज्ञोपवीत संस्कार क्यों नहीं करवा लेते? ताकि हमारे भक्त वैष्णव और आपके भक्तों में कोई झगड़ा न रहे. लेकिन शिवाजी ने विष्णु की इस प्रार्थना पर यह उत्तर दिया कि मेरे अनुयाई भी प्रधान है.
Deva Samhita - The ancient holy book of hindhu religion written by renowned scholar Pundit Gourakh kumar in which the JATs have been regarded as GOD by the barhamin Gurus. Deva-Samhita has been kept most secret and guarded by the Top Hindhu Guru Mahatmas.
Jats mentioned in Devasamhita. This the copy of origin Dev Samhita. Any one can buy it from Gita publications. In ancient india, Barhamin worshipped jats as Devta and Rulers now they call us jalaad, chandal, and lootera. Just because we have lost our political power. Read it attentively.
देवसंहिता के कुछ श्लोक निम्न प्रकार हैं-
पार्वत्युवाचः
भगवन सर्व भूतेश सर्व धर्म विदाम्बरः
कृपया कथ्यतां नाथ जाटानां जन्म कर्मजम् ।।12।।
अर्थ- हे भगवन! हे भूतेश! हे सर्व धर्म विशारदों में श्रेष्ठ! हे स्वामिन! आप कृपा करके मेरे तईं जाट जाति का जन्म एवं कर्म कथन कीजिये ।।12।।
का च माता पिता ह्वेषां का जाति बद किकुलं ।
कस्तिन काले शुभे जाता प्रश्नानेतान बद प्रभो ।।13।।
अर्थ- हे शंकरजी ! इनकी माता कौन है, पिता कौन है, जाति कौन है, किस काल में इनका जन्म हुआ है ? ।।13।।
श्री महादेव उवाच:
श्रृणु देवि जगद्वन्दे सत्यं सत्यं वदामिते ।
जटानां जन्मकर्माणि यन्न पूर्व प्रकाशितं ।।14।।
अर्थ- महादेवजी पार्वती का अभिप्राय जानकर बोले कि जगन्माता भगवती ! जाट जाति का जन्म कर्म मैं तुम्हारी ताईं सत्य-सत्य कथन करता हूँ कि जो आज पर्यंत किसी ने न श्रवण किया है और न कथन किया है ।।14।।
महाबला महावीर्या, महासत्य पराक्रमाः ।
सर्वाग्रे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़-व्रता: || 15 ||
अर्थ- शिवजी बोले कि जाट महाबली हैं, महा वीर्यवान और बड़े पराक्रमी हैं क्षत्रिय प्रभृति क्षितिपालों के पूर्व काल में यह जाति ही पृथ्वी पर राजे-महाराजे रहीं । जाट जाति देव-जाति से श्रेष्ठ है, और दृढ़-प्रतिज्ञा वाले हैं || 15 ||
श्रृष्टेरादौ महामाये वीर भद्रस्य शक्तित: ।
कन्यानां दक्षस्य गर्भे जाता जट्टा महेश्वरी || 16 ||
अर्थ- शंकरजी बोले हे भगवती ! सृष्टि के आदि में वीरभद्रजी की योगमाया के प्रभाव से उत्पन्न जो पुरूष उनके द्वारा और ब्रह्मपुत्र दक्ष महाराज की कन्या गणी से जाट जाति उत्पन्न होती भई, सो आगे स्पष्ट होवेगा || 16 ||
गर्व खर्चोत्र विग्राणां देवानां च महेश्वरी ।
विचित्रं विस्मयं सत्वं पौराण कै साङ्गीपितं || 17 ||
अर्थ- शंकरजी बोले हे देवि ! जाट जाति की उत्पत्ति का जो इतिहास है सो अत्यन्त आश्चर्यमय है । इस इतिहास में विप्र जाति एवं देव जाति का गर्व खर्च होता है । इस कारण इतिहास वर्णनकर्ता कविगणों ने जाट जाति के इतिहास को प्रकाश नहीं किया है || 17 ||
Deva Samhita[2]
Deva Samhitā (देवसंहिता) is a collection of Sanskrit hymns by Gorakh Sinha during the early medieval period. Deva Samhitā propounded the theory of Origin of Jats from Shiva's Locks. [3] [4] [5] Devasamhita records an account of the Origin of the Jats in the form of discussion between Shiva and Parvati expressed in shloka (verses). Pārvatī asks Shiva, O Lord Bhutesha, knower of all religions, kindly narrate about the birth and exploits of the Jat race. Who is their father? Who is their mother? Which race are they? When were they born? Having read the mind of Parvati, Shiva said, "O mother of the world, I may tell you honestly the origin and exploits of the Jats about whom none else has so far revealed anything to you. Some relevant verses are given below.
There is mention of Jats in Deva Samhitā [6] in the form of powerful rulers over vast plains of Central Asia[7]. When Pārvatī asks Shiva about the origin of Jats, their antiquity and characters of Jats, Shiva tells her like this in Sanskrit shloka-15 as under:
महाबला महावीर्या, महासत्य पराक्रमाः Mahābalā mahāvīryā, Mahāsatya parākramāḥ
सर्वाग्रे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़-व्रता: Sarvāgre kshatriyā jattā Devakalpā dridh-vratāḥ || 15 ||
Meaning - "They are symbol of sacrifice, bravery and industry. They are, like gods, firm of determination and of all the kshatriyā, the Jats are the prime rulers of the earth." [8]
Shiva explains Parvati about the origin of Jats in Shloka –16 of Deva samhita as under:
श्रृष्टेरादौ महामाये वीर भद्रस्य शक्तित: Shrishterādau mahāmāye Virabhadrasya shaktitaḥ
कन्यानां दक्षस्य गर्भे जाता जट्टा महेश्वरी Kanyānām Dakshasya garbhe jātā jattā maheshwarī. || 16 ||
Meaning – "In the beginning of the universe with the personification of the illusionary powers of Virabhadra and Daksha's daughter gani's womb originated the caste of Jats."
Pārvatī asks, in the shloka-17 of 'Deva Samhitā' about the origin and exploits of the Jats, whom none else has so far revealed, Shiva tells Parvati that:
गर्व खर्चोत्र विग्राणां देवानां च महेश्वरी Garva kharchotra vigrānam devānām cha maheshwarī
विचित्रं विस्मयं सत्वं पौराण कै साङ्गीपितं Vichitram vismayam satvam Pauran kai sāngīpitam || 17 ||
Meaning - "The history of origin of Jats is extremely wonderful and their antiquity glorious. The Pundits of history did not record their annals, lest it should injure and impair their false pride of the vipras and gods. We describe that realistic history before you."
Daksha's sacrifice by Virabhadra
ठाकुर देशराज के जाट इतिहास से
ठाकुर देशराज [14]लिखते हैं कि जाटों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में एक मनोरंजक कथा कही जाती है. महादेवजी के श्वसुर राजा दक्ष ने यज्ञ रचा और अन्य प्रायः सभी देवताओं को तो यज्ञ में बुलाया पर न तो महादेवजी को ही बुलाया और न ही अपनी पुत्री सती को ही निमंत्रित किया. पिता का यज्ञ समझ कर सती बिना बुलाए ही पहुँच गयी, किंतु जब उसने वहां देखा कि न तो उनके पति का भाग ही निकाला गया है और न उसका ही सत्कार किया गया इसलिए उसने वहीं प्राणांत कर दिए. महादेवजी को जब यह समाचार मिला, तो उन्होंने दक्ष और उसके सलाहकारों को दंड देने के लिए अपनी जटा से 'वीरभद्र' नामक गण उत्पन्न किया. वीरभद्र ने अपने अन्य साथी गणों के साथ आकर दक्ष का सर काट लिया और उसके साथियों को भी पूरा दंड दिया. यह केवल किंवदंती ही नहीं बल्कि संस्कृत श्लोकों में इसकी पूरी रचना की गयी है जो देवसंहिता के नाम से जानी जाती है. इसमें लिखा है कि विष्णु ने आकर शिवाजी को प्रसन्न करके उनके वरदान से दक्ष को जीवित किया और दक्ष और शिवाजी में समझोता कराने के बाद शिवाजी से प्रार्थना की कि महाराज आप अपने मतानुयाई 'जाटों' का यज्ञोपवीत संस्कार क्यों नहीं करवा लेते? ताकि हमारे भक्त वैष्णव और आपके भक्तों में कोई झगड़ा न रहे. लेकिन शिवाजी ने विष्णु की इस प्रार्थना पर यह उत्तर दिया कि मेरे अनुयाई भी प्रधान है.
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