Friday, March 13, 2020

डाबड़ा कांड के शहीद

#अमर_शहीदों_को_नमन्
                                          13मार्च 1947का दिन था।जगह थी नागौर जिले की डीडवाना तहसील में गांव डाबड़ा!एक किसान कंटीली बाड़ के ऊपर से जैली के साथ सैंकड़ों हमलावरों के सामने डटा हुआ था!शरीर गोलियों से छलनी हुआ जा रहा था मगर लगातार मुकाबला कर रहा था!अंतिम सांस लेने से पहले कहता है "मैं मरकर भी जिंदा रहूंगा और तुम जिंदा रहकर भी मुर्दा रहोगे!"

दरअसल राजस्थान में अंग्रेजों के गुलाम रजवाड़ों का राज था और उनको बचाये रखने के लिए सामंतों के हथियारबंद लोग थे!देश मे अंग्रेजों से आजादी का आंदोलन चल रहा था मगर किसान वर्ग चाहता था कि इन अत्याचारी सामंतों से आजादी भी साथ मे मिले!

मारवाड़ में किसान हित में लड़ने के लिए किसान सभा बन चुकी थी।डाबड़ा गांव के किसान पन्नाराम लोमरोड़ के नेतृत्व में किसानों ने किसान सभा की मीटिंग रखी जिसमे लोकपरिषद व कांग्रेस के नेताओं को भी बुलाया गया था।

सभी नेता सुबह-सुबह पन्नालाल लोमरोड़ के घर पहुंचे और मीटिंग शुरू की ही थी और सामंतों के हथियार बंद लोगों के पहुंचने की सूचना मिली।लोकपरिषद व कांग्रेस के नेता वहां से चले गए और पन्नालाल ने घर का दरवाजा बंद कर दिया और अकेले ही सैंकड़ों हथियार बंद लोगों से मुकाबला किया!

दूसरी तरफ आसपास किसानों की बस्तियां,बाड़े व चारा गुंडों ने आग के हवाले कर दिया!आग की लपटों के बीच लाडनूं से पहुंचे रुघाराम,रामूराम,किशनाराम लोल ने मोर्चा संभाला।करसी-जैली जैसे खेती के औजार हाथ मे थे तो दूसरी तरफ तलवारें व बंदूक की गोलियां!अपनी जान की बाजी लगा दी मगर पीछे नहीं हटे!डाबड़ा गांव जलियांवाला बाग बन गया!बताया जाता है कि 13किसान शहीद हुए और सैंकड़ों घायल!इस संघर्ष में पन्नाराम का बेटा मोतीराम भी शहीद हो गया था!

खुद डीडवाना परगने के जागीरदार ने कहा "ये ऐसे वीरों की भांति लड़े कि इंच-इंच कटते रहे मगर पीछे नहीं हटे!"

सामंतों का ऐसा कहर था कि घायलों के इलाज के लिए और शहीदों के अंतिम संस्कार के लिए पूरे मारवाड़ के नेताओं सहित अंग्रेजी हुकूमत को दखल देना पड़ा था!

समाज सुधारक व लोक गायक हीरासिंह चाहर ने कहा..

मैंने देखी है मारवाड़ में, कृषकों के कर में हथकड़ियाँ  !
उनके आँगन में देखी है,चंद जली बुझी सी फुल झड़ियाँ !!!
कुछ फूल खिले पर, महक सके कुछ घड़ियाँ  !
जागीरों के साये में, जुड़ती रही जुल्मों की कड़ियाँ  !!
तब हरिसिंह दहाड़ उठा,जागीरों में जंग,अब जीत कृषकों की !
आज नहीं तो कल सही, बात कही मैं परसों की  !!!

और हकीकत में यह मारवाड़ के किसानों के लिए एक नजीर बन गया!हर दूसरे गांव में किसान जैली लेकर सामंतों के खिलाफ खड़े हो गये!संघर्ष की इस दास्ताँ पर विराम लगाया स्वर्गीय बलदेवराम जी मिर्धा ने जब किसानों को कानूनन भूमि का मालिक बना दिया!

डाबड़ा कांड जुल्मी सामंतों के निर्दयी शासन की इंतहा की निशानी है तो जाट किसानों के पराक्रम व वीरता की अमर कहानी!हीरासिंह चाहर के शब्दों में ही...

नाहर सो काळजो राखता,
रूतबो राखता  करषां रो,
डाबड़ा म ठाकरां सू भिड़,
इतिहास बणायो बरसां रो,

वीर यौद्धाओं को नमन करता हूँ💐💐💐

प्रेमाराम सियाग

Saturday, February 15, 2020

फौजी पिता के ट्रस्ट को बेटा चला रहा, 364 बेटियां शिक्षा से दोबारा जुड़ीं; डाॅक्टर और कांस्टेबल बनीं




राजस्थान / फौजी पिता के ट्रस्ट को बेटा चला रहा, 364 बेटियां शिक्षा से दोबारा जुड़ीं; डाॅक्टर और कांस्टेबल बनीं

  • सेना से रिटायर दिवंगत मांगूराम जाखड़ ने ट्रस्ट शुरू किया था, सबसे पहले 11 बेटियों को गोद लिया गया था 
  • मांगूराम के बेटे माेहनराम ने पिता की इच्छा को जारी रखा, आज 364 बेटियां इससे जुड़ी हैं

Feb 10, 2020, 
सीकर (जोगेंद्रसिंह गौड़). देश सेवा किसी भी रूप में कहीं भी की जा सकती है। सेना से रिटायरदिवंगत मांगूराम जाखड़ और उनके बेटे माेहनराम की कहानी इसे साबित कर रही है। तंग हालातों के बीच पढ़ाई छोड़ने वाली बेटियों को वापस शिक्षा से जोड़ने के लिए मांगूराम जाखड़ और माेहनराम ने पेंशन और सैलेरी के पैसों से ट्रस्ट शुरू किया। पिता की मौत के बाद खेती से जुड़े बेटे मोहनराम ने इस सेवा कार्य को बंद नहीं होने दिया। नतीजा ट्रस्ट द्वारा गोद ली गई 364 बेटियां आज उच्च शिक्षा से जुड़ चुकी हैं। 10 बेटियां डाॅक्टर और कांस्टेबल सहित अन्य सरकारी नौकरी तक पहुंच चुकी हैं। स्कूल की पढ़ी लड़कियों और पढ़ा रहीं टीचर्स की शादी में भी स्कूल प्रबंधन करता है आिर्थक मदद, जरूरी सामान भी देता है

Wednesday, February 12, 2020

39 की उम्र में 20 प्रतियोगी परीक्षाएं पास,15 में अंतिम चयन यह हैं बजरंग कुलहरि

आज का युवा क्या क्या प्रतियोगिता परीक्षा दे और किस लगन से दे उसका जीवन्त और अत्यंत ज्वलंत उदाहरण श्री बजरंग लालजी कुल्हरी, नायब तहसीलदार बिसाऊ (झुन्झुनूं) हैं मैं उन्हें 100-100 सलाम करता हूँ और मेरे तो वे "घर धिराणी" के ननिहाल पक्ष के भी हैं मगर युवाओं के लिए कितने प्रेरणास्रोत हैं ये उनके मात्र 39 साल की उम्र और 21 साल में 20 नौकरी की परीक्षाओं में पास होने का शायद अकेला उदाहरण है सीकर की फतेहपुर तहसील के ऊदनसरी गाँव निवासी कुल्हरीजी वास्तव में सीकर की युवा जिजीविषा और दैनन्दिनी चुनौतियों के मुकाबले के सर्वश्रेष्ठ नायक हैं जिन्हें विदेशी भाषा में उनका "रोल माडल" कहा जा सकता है ।

डाबड़ा कांड के शहीद

#अमर_शहीदों_को_नमन्                                           13मार्च 1947का दिन था।जगह थी नागौर जिले की डीडवाना तहसील में गांव डाबड़ा!एक कि...