Sunday, November 24, 2019

दीनबन्धु सर छोटूराम:-एक महान शख्सियत

श्री सोहनलाल शास्त्री , विधावाचस्पति , बी.ए., रिसर्च आफिसर ,राजभाषा (विधायी) आयोग , विधि मंत्रालय (भारत सरकार )

स्वर्गीय चौधरी छोटूराम जी मेरी दृष्टि मे कर्मवीर योद्धा के साथ साथ महापुरुष भी थे ।महापुरुष के लक्षण हैं जिस मे दीन, दुःखी , दरिद्र और अन्याय पीड़ित जनसमुदाय के लिए पूर्ण सहानुभूति हो ।वीर तो डाकू भी हो सकता हैं और कर्मवीर उसे कहा जाता हैं जिसका जीवन केवल कथनी पर निर्भर न हो , करनी पर आधारित हो।एक कर्मवीर योद्धा यदि अपने परिश्रम से कोई सिद्धि या निधि प्राप्त कर ले किन्तु उस फल का उपभोग स्वयं ही करे या केवल अपने बंधुओ तथा सगे सम्बन्धियो को उसके उपभोग का पात्र ठहराए तो वह महापुरुष नहीं कहला सकता ।चौधरी साहब का ह्रदय गरीब लोगो के लिए सदैव आर्द्र रहा।मैं व्यक्तिगतरूप से उनके संपर्क मे आता रहा हूँ। पंजाब के हरिजनों के बारे मे मेरा उनसे विचार-विनिमय होता रहा हैं। पत्र-व्यवहार मे मैंने एक बार उन्हे लिखा था कि चौधरी साहब आप की दृष्टि मे तो बेचारा किसान ही समाया हुआ हैं , किन्तु आपने कभी बेचारे कम्मी (हरिजन तथा दूसरे मुसलमान कम्मी) के लिए हमदर्दी नहीं दिखाई , अतः परमात्मा आप के लिए एक विशेष नरक तैयार कर रहा हैं ।चौधरी साहब ने मुझे उत्तर दिया कि उनके दिल मे हरिजन के लिए किसानों से कम प्रेम और स्नेह नहीं हैं।


साहूकारों के शैतानी पंजे से छुड़ाने के लिए जो विधान चौधरी साहब के प्रयत्नों से पंजाब सरकार ने बनाए , उन से केवल किसानों को ही लाभ नहीं पहुंचाया , वरन कममियों के लिए भी यह लाभदायक बनाए गए।किसी भी हरिजन या कम्मी के घर का सामान , अनाज , भैंस , गाय तथा बैल आदि साहूकार कुर्क नहीं कर सकता था। मसालहती बोर्ड मे फैसले के लिए किसान की भांति कम्मी भी न्याय प्राप्त करने के अधिकारी थे ।उस युग मे जब यूनियनिस्ट सरकार बनी ,हरिजनो को सरकारी नौकरियों मे पहलेपहल तब ही लिया गया ।मुझे अच्छी तरहस्मरण जब एक हरिजन युवक जिसने बी.ए.,एल.एल.बी.पास करने के पश्चात पी.सी.एस. की परीक्षा की तो उसने मैरिट लिस्ट मे सबसे नीचे स्थान प्राप्त किया ।स्वर्गीय सर मनोहरलाल ने उन्हे पी.सी.एस. मे स्थान देना नहीं चाहा , क्योंकि वह योग्यता से दूसरे हिंदुओं के मुकाबिले में बहुत निम्न स्तर पर था ।चौधरी साहब ने तब पूरा बल लगाकर उस हरिजन को पी.सी.एस. बना कर ही दम लिया। इस घटना पर पंजाब सरकार के हिन्दू सदस्यों और अन्य हिन्दू नेताओ मे घोर विरोध हुआ , किन्तु चौधरी साहब का निर्णय अटल था ।आज वही हरिजन युवक पंजाब मे सैशन जज का काम कर रहा हैं और बीसियों हिन्दू सेशन जजो से उसका कार्य अच्छा माना जाता हैं | पंचायतों मे कई हरिजन नवयुवको को पंचायत अफसर बनाने का श्रेय चौधरी साहब को ही हैं। चौधरी साहब वचन के पक्के और स्पष्ट वक्ता थे।वह मनसा अन्यत , कर्मणा , अन्यत , वचसा अन्यत, की नीति मे विश्वास नहीं रखते थे। महापुरुषों के मुख्य लक्षणों मे यह सद्गुण आवश्यक हैं।

 चौधरी साहब को मैंने एक कड़वा पत्र लिखा जिस मे कहा कि आप हरिजनो को जमीन खरीदने का अधिकार क्यों नहीं देते , जबकि सब हरिजन सदस्य आपकी पार्टी का साथ दे रहे हैं ।चौधरी साहब ने मुझे उत्तर दिया कि मैंने कभी हरिजनो सदस्यों को यह वचन नहीं दिया कि यदि वह मेरी राजनीतिक पार्टी मे शामिल हो जाए तो मैं उन्हे जमीन खरीदने का अधिकार दिलवा दूंगा | चौधरी साहब कहा करते थे कि पंजाब का Land Alienation Act बेचारे किसान कि ज़मीन को हिन्दू साहूकारों के फौलादी हाथसे बचाने के लिए ढाल हैं ।यह एक्ट ऐसा लोहमय दुर्ग हैं जिसमे साहूकारके अत्याचार से जमींदार का बचाव हो सकता हैं ।अगर मैं हरिजन के लिए इस एक्ट मे संशोधन करूंगा तो इस दुर्ग मे ऐसी दरार पड़ जाएगी , जिस मार्ग से साहूकार घुस जाएगा और बेचारे किसानया जमींदार कि एकमात्र आशा और आश्रय अर्थात भूमि का टुकड़ा छीन लेगा। चौधरी साहब कहते थे कि हरिजन के पास भूमि खरीदने कि आर्थिक शक्ति नहीं हैं | वह केवल हिन्दू नेताओ के बहकावे मे आ कर इस मांग पर बल देता हैं । चौधरी साहब का विश्वास था कि हिन्दू नेता हरिजन को भूमि ख़रीदारीकि मांग के लिए इसलिए उकसाते हैं ताकि विधान कि सुविधा से साहूकार स्वयं रुपया देकर भूमि खरीद ले और हरिजन के नाम पर बेनामी करा दे। क्योंकि हरिजन हिन्दू साहूकार का विश्वासपात्र रह सकता हैं। इस प्रकार हरिजन को भूमि खरीद कि कानूनी छूट का अभिप्राय साहूकार को परोक्ष रूप से किसान की भूमि हथियाना था ।चौधरी साहब इन दाव पेंचो को खूब जानते थे , अतः उन्होने हरिजनो की मांग को कभी स्वीकार नहीं किया । ऐसा होने पर ही आपको हरिजन हितैषी ही कहना पड़ता हैं क्योंकि मूलतान के क्षेत्र मे जब कुछ मुरब्बे ज़मीन बांटने की सरकार ने योजना बनाई तो चौधरी साहब ऐसे समय पर हरिजनो को नहीं भूले और बहुत मुरब्बे भूमि इन्हे देकर पंजाब के इतिहास मे पहली बार हरिजनों को जमींदार बना दिया । यह उनकी उदारता और महापुरुष का जीता-जागता उदाहरण हैं।

ज़िला मूलतान मे आर्य नगर नामक गाँव की सारी भूमि सन 1923-1924 मे मेघ उद्धार सभा स्यालकोट ने सरकार से सस्ते दामों मे खरीद कर के मेघ जाति के हरिजनो को उसका मुजरा बना कर आबाद किया । कई बरसों का सरकारी लगान और मुरब्बों की किशते अदा न करने के कारण सरकार ने उस गाँव की सारी ज़मीन जब्त कर ली थी और फैसला करदिया था कि इस भूमि कि कीमत वसूल कि जाये। सरकार ने मेघ उद्धार सभा (जिसके कर्ता-धर्ता हिन्दू साहूकारव वकील थे ) के पदाधिकारियों को नोटिस थमा दिये कि वह बकाया रकम अदा करे। किन्तु केघ उद्धार सभा ने ऐसा नहीं किया।

यूनियनिस्ट सरकार के समय मे चौधरी साहब ने हरिजन काश्तकारों का ज़मीन बांटने का फैसला कर दिया और मेघ उद्धार सभा का दखल समाप्त करके यह इस सारे गाँव के मुरब्बे मेघ जाति के हरिजनो मे बाँट दिये | जो मेघ काश्तकार जिस-जिस मुरब्बे को काश्त करते चले जा रहे थे वही उसके मालिक बना दिये गए और लगान का बकाया आदि उनसे सस्ती किश्तों मे वसूल किया ।आपने अपने एक प्राइवेट पार्लियामेंट सेक्रेटरी को आदेश दिया कि जिस-जिस मुरब्बे पर मेघ (हरिजन) काश्तकार चला आ रहा हैं , वह मुरब्बा उस के नाम पर अंकित कर दिया जाये । इससे बढ़कर स्वर्गीय चौधरी छोटूराम कि हरिजनो के प्रति सहानुभूति और क्या हो सकती थी !जाट के उद्धार के लिए तो वह अवतार बन कारआए तथापि वह हरिजनो के हित और कल्याण को कभी नहीं भूले | चौधरी साहब एक आदर्श माता का जो अपनी संतान के लिए अपना बलिदान कर देती हैं साक्षात उदाहरण या प्रतीक थे किन्तु जैसे सहृदय माता अड़ोस पड़ोस के बालकों मे मधुर और स्नेहमय व्यवहार करती हैं , इसी भांति चौधरी साहब कि वास्तविक संतान को पंजाब का जाट था , मगर उस जाट संतान के खेतोमे काम करने वाले , उनके लिए जूता जोड़ा बनाने वाले , लोहार-बढ़ई का काम करने वाले कम्मी को भी उन्होने सदैव सहानुभूति से देखा और उनकी भलाई के लिए कानूनों से जो कुछ किया जा सकता था , किया ।

अछूतो के लिए जितना दर्द और सहानुभूति बाबा साहिब डॉक्टर अंबेडकर के हृदय मे था और जो कुछ आप ने निरीह लोगो के लिए किया और सोचा , उतना ही बल्कि उससे भी कहीं अधिक काम चौधरी छोटूराम ने पंजाब के जाटों के लिए किया। कहावत हैं , कि खून पानी से गाढ़ा होता हैं , अर्थात अपना परिवार , अपनी बीरदारी या जाति से दूसरों की अपेक्षा ज्यादा सहानुभूति होती , ममता और लगाव होता हैं ।इसी प्रकार जाट जाति के साथ चौधरी साहब की ममता और स्नेह का होना स्वाभाविक और प्रकृतिक ही था , तो भी सच्चे महापुरुष दूसरे दीनहीन , दुःखी लोगो को अपना स्नेह पात्र मानते हैं ।

बाबा साहिब डॉक्टर अंबेडकर और चौधरी छोटूराम दोनों महापुरुष थे। दोनों अपने व्यक्तिगत संघर्ष और परिश्रम से ऊपर उठे , विद्वान बने , अंतिम श्वास तक दबे , पिसे निरीह लोगो की वकालत की। बहादूरों की भांति पिछड़े वर्गो की उन्नति के लिए अंतिम सांस तक जूझते रहे | दोनों ही सैनिक जाति के सपूत थे । (जाट और महार दोनों ही सैनिक जाति माने गई हैं ) दोनों ही भारत की मिट्टी से उभरे और आकाश के देदीप्यमान सूर्य की भांति भारत केगगन मे जा चमके । दोनों महापुरुषों ने केवल अपनी लौकिक उन्नति पर ही संतोष नहीं किया बल्कि अपनी जाति के उद्धार के लिए अपनी सारी शक्तियों का प्रयोग किया |मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ कि मुझे दोनों कर्मवीर योद्धाओ का व्यक्तिगत संपर्क प्राप्त करने का अवसर मिला ।दोनों से विविध विषयों पर पत्र व्यवहार होता रहा तथा साक्षात्कार करने के अवसर प्राप्त हुए ।मैंने इन दोनों महापुरुषों कोबहुर करीब से देखा हैं ।दोनों के हृदय स्वच्छ और उदार थे। दोनों के मस्तक विधा और राजनीति से भरपूर थे।दोनों अपनी अपनी धुन के इस प्रकार दृढ़ थे कि संसार का कोई भी प्रलोभन या भय उन्हे अपने उद्देश्य से इधर-उधर नहीं कर सकता था ।

 एक बार शायद 1943 मे जब बाबा साहिब डॉक्टर अंबेडकर वायसराय कि एजीक्यूटिव कौंसिल के सदस्य थे , मुझे उनसे 22 पृथ्वीराज रोड़ पर मिलने का अवसर मिला | बातों-बातों मे चौधरी सर छोटूराम जी का भी प्रसंग छिड़ गया । डॉक्टर साहब ने मुझ से पूछा कि सर छोटूराम की सारे पंजाब और दिल्ली मे धाक हैं , क्या वह बहुत उच्च दर्जे का विद्वान हैं ? मैंने उत्तरदिया कि चौधरी साहब संभवतः आप के बराबर विद्वान तो नहीं किन्तु आप कि भांति पंजाबी किसान को साहूकार के जालिम पंजे से छुटकारा दिलाने के लिए जी-जान से लड़ रहे हैं । साहूकारों के अत्याचारों से पीड़ित पंजाब के लिए वे अवतार हैं | डॉक्टर साहब ने कहा , उनकी प्रसिद्धि और ख्याति का और क्या कारण हैं ? मैंने उत्तर दिया कि चौधरी साहब का संपर्क जन-साधारण के साथ हैं | उनमे दो गुण ऐसे हैं जो आप मे नहीं है ।डॉक्टर साहब बोले वह कौन से अनोखे गुण चौधरी साहब मे विधमान हैं जो मुझ मे नहीं ? मैंने उत्तर दिया कि भारत के किसी भी कोने से उन्हे पोस्ट कार्ड लिखा जाए , चाहे उस पोस्ट कार्ड मे उन्हे गालियां ही क्यों न दी जाएँ, उस पत्र का अपने हाथ से उत्तर देना , वह अपना परम कर्तव्य समझते हैं । दूसरा गुण यह हैं कि उनकी कोठी पर सदा भंडारा लगा रहता हैं । कोई भी व्यक्ति किसी समय जा कर वाहा खाना खा सकता हैं ।ये हैं दो अनुपम गुण जिनहोने चौधरी साहब को प्रसिद्ध किया और भी चार चाँद लगा दिये ।किन्तु बाबा साहिब डॉक्टर अंबेडकर मे इन दोनों गुणो का अभाव था । वह झट बोल उठे कि मैं कार्य मे इतना व्यस्त रहता हूँ कि मुझे किसी व्यक्ति के पत्र का उत्तर देने का समय ही नहीं लगता और मैं विधुर हूँ। इसलिए कोठी पर आए अभ्यागत को चाय-पानी कि नहीं पूछ सकता ।मैं उत्तर दिया जहां तक कार्य व्यस्तता का संबंध हैं , चौधरी साहब आप से कम कार्य व्यस्त नहीं हैं किन्तु जहां तक दूसरी बात का प्रसंग हैं , चौधरी साहब कि धर्मपत्नी तो उनके साथ न रह कर अपने गाँव मे ही रहती हैं ।कहने का अभिप्राय यह हैं कि चौधरी सर छोटूराम कर्मवीर योद्धा के साथ-साथ महानपुरुष भी थे ।

चौधरी साहब ने जहां पंजाब के पीड़ित किसानों के परोपकार के लिए न्याय-युद्ध लड़ा और उसे जीता , उसी प्रकार वे पंजाब के हरिजनो के भी सच्चे हितचिंतक थे । पंजाबी हरिजनो को यूनियनिस्ट सरकार के अधीन भरसक नौकरिया दिलवाई , उन्हे मूलतान के क्षेत्र मे मुरब्बे बांटे ।आर्य नगर के मेघ हरिजनो को सारा का सारा गाँव सरकार से दिलवाया ।वास्तव मे देखा जाय तो चौधरी छोटूराम साहूकारों का भी अहित नहींचाहते थे ।वे सदा कहा करते थे कि मुझे बनिए, महाजनो से वैर नहीं , वे मेरे भाई हैं ।मुझे उनकी उस जालिमाना लूट-खसोट से वैर हैं , जो सुर दर सूद कि शक्ल मे की जा रही हैं और जिसने बेचारे किसान का खून चूस लिया हैं ।

 चौधरी साहब ने अपनी सरकार मे जब दुकाने खोलने और बंद करने के घंटे समय नियत किए तो बनिए दुकानदार चिल्ला उठे | चौधरी साहब को गालियां देने लगे की यह जाट हमे अब दुकानों के जरिये भी रोटी कमाने नहीं देना चाहता। चौधरी साहब अपने व्याख्यानों मे प्रायः इस आरोप का युक्तियुक्त उत्तर देते थे और कहा करते थे कि मैंने दुकानों के खोलने और बंद करने का समय नियत करके बनिया भाइयों का स्वास्थ सुधारा दिया हैं| अब दुकानों से जल्दी उठकर सैर किया करेंगे और स्वस्थ-जीवन और लंबी आयु भोगेंगे।आज कि कांग्रेस सरकार जो चौधरी साहब कि सरकार से अधिक लोकप्रिय मानी जाती हैं , वह भी सारे भारत मे उनके कानूनों कि नकल कर रही हैं , और दुकानों को खुलने तथा बंद होने के लिए समय नियत कर रही हैं । चौधरी साहब ने जो जो सुचारु नीति अपनाई , उसका मूल्यांकन आज हो रहा हैं और पंजाब का साहूकार बनिया भी अब उन्हे अत्यंत श्र्दा-भरे दिल से श्रद्धांजलि भेंट करता हैं ।चौधरी सर छोटूराम पंजाब की वीर भूमि के इस्पात थे ।

जाट जाति के सच्चे सपूत और हरिजन , किसानों , कम्मियों के सच्चे हितचिंतक थे । इसप्रकार की विभूतिया सैकड़ों बरसों के पश्चात उत्पन्न होती हैं और युग-युगांतरों तक वे इतिहास की शोभा बनती हैं उनके पथ-प्रदर्शन पर चल कर और उनसे शिक्षा लेना अनेक कार्यकर्ता अपने कार्य मे सफल हो सकते हैं । मैं न तो हरियाणा मे पैदाहुआ , न ही जाट जाति से मेरा संबंध हैं और न ही मैंने चौधरी साहब से कोई आर्थिक लाभ प्राप्त किया।इतना होने पर भी उस महान विभूति महापुरुष के लिए मेरा हृदय  श्रद्धा से भरपूर हैं और मैं अपने आपको सौभाग्यशाली समझता हूँ कि मेरा इस युगपुरुष से परोक्ष और साक्षात संबंध रहा हैं।

पुस्तक- किसानबंधु , चौधरी सर छोटूराम - लेखक -आर.एस.तोमर)

1 comment:

  1. चौ. छोटूराम बहुत गरीब परिवार से थे, किन्तु उन्होंने अपनी लगन से न केवल सत्ता के उच्च शिखर तक पहंचे, बल्कि उन्होंने देश के गरीब किसान और मजदूर की किस्मत ही बदल डाली. इसीलिए उनको दीनबंधु और रहबर-ए-आज़म की उपाधि दी गयी.
    http://jatnayak.com/sir-chhoturam/

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