एक शख्सियत का छोटी सी जीवनी आपके सामने पेश कर रहा हूं
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एकमात्र बाड़मेर के किसान का बेटा ने
पत्रकारिता में अपने पूरे हिंदुस्तान में परचम लहराया
श्रीमान विरमाराम पिता श्री स्वर्गीय बन्नाराम जी
वीरमा राम के पूर्वज मूलतः बाड़मेर के माडपुरा-बरवाला पंचायत के रहने वाले हैं, जो पशुपालन का काम करते थे. ये लोग अक्सर गर्मियों के दिनों में अपने रेवड़ चराने के लिए वर्तमान जालौर जिले के मैदानी और पहाड़ी इलाकों का रुख करते थे, क्योंकि बाड़मेर की तुलना में जालौर जिले में पशुओं के लिए चारा थोड़ी आसानी से उपलब्ध था. देश की आज़ादी के वक़्त इनके पिताजी-दादाजी ने जालौर जिले के भीनमाल उपखंड में अपने रेवड़ के साथ डेरे डाल रखे थे. आजादी के बाद जब देश में भूमि-बन्दोबस्ती का कानून लागू हुआ तो पशुओं के डेरे वाली जमीनों पर इन्होंने अपने हक़ जता दिया और उक्त जमीनें इन पशुपालकों के नाम हो गई. कालांतर में इन्होंने में इन्होंने बाड़मेर से अपने कई रिश्तेदारों, भाई-बन्धुओं को भी बुला लिया. आज ये लोग 'ज्याणीयों की ढाणी' नाम के गांव में अच्छी खासी तादाद में आबाद हैं.
वीरमा राम के पिताजी एक निरक्षर किसान थे लेकिन उन्होंने अपने बच्चों की शिक्षा पर पूरा जोर दिया. इसी का नतीजा था कि वीरमा राम ने शुरआती पढ़ाई गांव में करने के बाद नवोदय स्कूल में दाखिला हासिल किया. राजस्थान विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया. ग्रेजुएशन के बाद वे भारत के नामी विश्विद्यालय जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय चले गए जहां से उन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में MA, MPhil और पीएचडी की. साथ ही पत्रकारिता भी. वीरमा राम ने करीब 5 सालों तक ज़ी न्यूज के साथ काम किया फिर वे जिंदल ग्रुप के 'न्यूज़ वर्ल्ड इंडिया' नामक चैनल के साथ जुड़ गए. पत्रकारिता में सीनियर ओहदों पर रहने के अलावा भी वो कई सारे थिंक टैंक, सामाजिक संस्थाओं के साथ जुड़े रहे. वीरमा राम बाहर के कुछ देशों के साथ-साथ देश के लगभग हर कौने का दौरा कर चुके हैं. विदेश मामलों, देश के सियासी हालातों से लेकर सामाजिक मसलों पर वे लगातार रिपोर्टिंग करते रहे हैं और लिखते रहे हैं.
उनके पसंदीदा विषय किसानी, जापान और सिंध रहे हैं. भारत-जापान संबंधों पर पीएचडी करने के बाद वे कुछ पुस्तकों के लेखन पर काम कर रहे हैं.
वीरमा राम के निरक्षर पिताजी के शिक्षा के प्रति रुझान का ही नतीजा है कि उनकी छोटी बहन जहां चिकित्सा सेवा में कार्यरत है तो उनका छोटा भाई राजस्थान प्रशासनिक सेवा का अधिकारी है.
बकौल वीरमा राम, दुनिया में शिक्षा से बड़ा कोई हथियार नहीं है. और समाज में क्रांतिकारी बदलाव का सबसे बड़ा जरिया शिक्षा ही है.
यह बाड़मेर मारवाड़ के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है
वहां पहुंचने के बाद बाड़मेर के युवाओं से संपर्क और उनका मार्गदर्शन करते रहते हैं
रूबरू होने का मौका मिला तो बहुत अच्छा लगा
पत्रकार श्रीमान विरमाराम जी
आपको बधाई अग्रिम भविष्य की शुभकामनाए....
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एकमात्र बाड़मेर के किसान का बेटा ने
पत्रकारिता में अपने पूरे हिंदुस्तान में परचम लहराया
श्रीमान विरमाराम पिता श्री स्वर्गीय बन्नाराम जी
वीरमा राम के पूर्वज मूलतः बाड़मेर के माडपुरा-बरवाला पंचायत के रहने वाले हैं, जो पशुपालन का काम करते थे. ये लोग अक्सर गर्मियों के दिनों में अपने रेवड़ चराने के लिए वर्तमान जालौर जिले के मैदानी और पहाड़ी इलाकों का रुख करते थे, क्योंकि बाड़मेर की तुलना में जालौर जिले में पशुओं के लिए चारा थोड़ी आसानी से उपलब्ध था. देश की आज़ादी के वक़्त इनके पिताजी-दादाजी ने जालौर जिले के भीनमाल उपखंड में अपने रेवड़ के साथ डेरे डाल रखे थे. आजादी के बाद जब देश में भूमि-बन्दोबस्ती का कानून लागू हुआ तो पशुओं के डेरे वाली जमीनों पर इन्होंने अपने हक़ जता दिया और उक्त जमीनें इन पशुपालकों के नाम हो गई. कालांतर में इन्होंने में इन्होंने बाड़मेर से अपने कई रिश्तेदारों, भाई-बन्धुओं को भी बुला लिया. आज ये लोग 'ज्याणीयों की ढाणी' नाम के गांव में अच्छी खासी तादाद में आबाद हैं.
वीरमा राम के पिताजी एक निरक्षर किसान थे लेकिन उन्होंने अपने बच्चों की शिक्षा पर पूरा जोर दिया. इसी का नतीजा था कि वीरमा राम ने शुरआती पढ़ाई गांव में करने के बाद नवोदय स्कूल में दाखिला हासिल किया. राजस्थान विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया. ग्रेजुएशन के बाद वे भारत के नामी विश्विद्यालय जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय चले गए जहां से उन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में MA, MPhil और पीएचडी की. साथ ही पत्रकारिता भी. वीरमा राम ने करीब 5 सालों तक ज़ी न्यूज के साथ काम किया फिर वे जिंदल ग्रुप के 'न्यूज़ वर्ल्ड इंडिया' नामक चैनल के साथ जुड़ गए. पत्रकारिता में सीनियर ओहदों पर रहने के अलावा भी वो कई सारे थिंक टैंक, सामाजिक संस्थाओं के साथ जुड़े रहे. वीरमा राम बाहर के कुछ देशों के साथ-साथ देश के लगभग हर कौने का दौरा कर चुके हैं. विदेश मामलों, देश के सियासी हालातों से लेकर सामाजिक मसलों पर वे लगातार रिपोर्टिंग करते रहे हैं और लिखते रहे हैं.
उनके पसंदीदा विषय किसानी, जापान और सिंध रहे हैं. भारत-जापान संबंधों पर पीएचडी करने के बाद वे कुछ पुस्तकों के लेखन पर काम कर रहे हैं.
वीरमा राम के निरक्षर पिताजी के शिक्षा के प्रति रुझान का ही नतीजा है कि उनकी छोटी बहन जहां चिकित्सा सेवा में कार्यरत है तो उनका छोटा भाई राजस्थान प्रशासनिक सेवा का अधिकारी है.
बकौल वीरमा राम, दुनिया में शिक्षा से बड़ा कोई हथियार नहीं है. और समाज में क्रांतिकारी बदलाव का सबसे बड़ा जरिया शिक्षा ही है.
यह बाड़मेर मारवाड़ के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है
वहां पहुंचने के बाद बाड़मेर के युवाओं से संपर्क और उनका मार्गदर्शन करते रहते हैं
रूबरू होने का मौका मिला तो बहुत अच्छा लगा
पत्रकार श्रीमान विरमाराम जी
आपको बधाई अग्रिम भविष्य की शुभकामनाए....
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