Sunday, May 13, 2018

रामदानजी का जीवन परिचय RAMDAN DAUKIYA BARMER


रामदानजी का जीवन परिचय

वर्तमान बाड़मेर जिले के पश्चिमी भाग को मालानी परगना के नाम से जाना जाता है. यह आजादी पूर्व जोधपुर रियासत का सीमान्त परगना था. इस क्षेत्र के पश्चिम में पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की सीमा लगती थी. आजादी पूर्व मालानी का फैलाव जसोल से सिंध तक 100 मील लम्बा और 75 मील चौड़ा था. इस परगना में 503 गाँव थे. [2]

सन 1836 में जाटों का एक काफिला मालानी क्षेत्र में आकर रुका. इनमें एक परिवार तेजाजी डऊकिया का भी था. ये सन 1830 में बाड़मेर से 30 की.मी. दक्षिण-पूर्व में स्थित सरली गाँव में बस गए. तेजाजी के पूर्वज नागौर के 'पिरोजपुरा' गाँव के मूल निवासी थे. परन्तु कालांतर में झंवर और आगोलाई में बस गए थे और आगोलाई से ही प्रस्थान कर तेजाजी ने 'सरली' को अपनी कर्म स्थली बनाया. [3]
चौधरी रामदानजी का जन्म चैत बदी 3 संवत 1940 तदनुसार 15 मार्च 1884 को सरली नामक गाँव में चौधरी तेजारामजी के यहाँ हुआ था. [4] [5]आपका गोत्र डऊकिया तथा नख तंवर था. आपकी माताजी का नाम श्रीमती दौली देवी था. आप भाई बहीनों में सबसे छोटे थे. जब आप सात वर्ष के थे तब आपका परिवार 1811में सरली से खड़ीन आ गया. आप जब 13 वर्ष के थे तब आपके पिताजी का देहांत हो गया था. इसके दो वर्ष बाद 1899 में (विक्रम संवत 1956) में मारवाड़ में भयंकर छपनिया अकाल पड़ा तो आपको परिवार के सिंध की और पलायन करना पड़ा.[6] [7]रामदान जी को रेल लाइन बिछाने में काम मिल गया. उसी समय आपके बड़े भाई रूपाजी का देहांत हो गया इसलिए नौकरी छोड़ खड़ीन वापस आना पड़ा. 1900 से 1905 तक आप गाँव में रहकर खेती करते रहे. इस दौरान 1904 में आपकी शादी श्रीमती कस्तूरी देवी भाकर के साथ हो गयी. 15 मार्च 1905 में पुनः आपको रेलवे में ट्रोली-मैन के पद पर रख लिया. 1907 में आपको जमादार के पद पर पदोन्नत किया. 1907 से 1920 तक रेलवे में जमादार के पद पर रहे. इस दौरान आपने स्वतः के प्रयास से पढ़ना लिखना सीख लिया. 1920 में आपको रेल-पथ निरिक्षक के पद पर पदोन्नत कर समदड़ी में लगा दिया. 1923 में आपको जोधपुर में भेजा गया. जोधपुर प्रवास के दौरान आपका परिचय कई प्रबुद्ध जाटों से हुआ. [8]
अक्टूबर 1925 में कार्तिक पूर्णिमा को अखिल भारतीय जाट महासभा का एक अधिवेसन पुष्कर में हुआ था उसमें मारवाड़ के जाटों में जाने वालों में चौधरी गुल्लारामचौधरी मूलचंद जी सियागमास्टर धारासिंह, चौधरी रामदान जीभींया राम सिहाग आदि पधारे थे. इस जलसे की अध्यक्षता भरतपुर के तत्कालीन महाराजा श्री किशनसिंह जी ने की. इस समारोह में उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली के अलावा राजस्थान के हर कोने से जाट सम्मिलित हुए थे. इन सभी ने पुष्कर में अन्य जाटों को देखा तो अपनी दशा सुधारने का हौसला लेकर वापिस लौटे. [9]उनका विचार बना कि मारवाड़ में जाटों के पिछड़ने का कारण केवल शिक्षा का आभाव है.[10][11]
कुछ समय बाद चौधरी गुल्लारामजी के रातानाड़ा स्थित मकान पर चौधरी मूलचंद सिहाग नागौरचौधरी भिंयारामजी सिहाग परबतसरचौधरी गंगारामजी खिलेरी नागौरबाबू दूधारामजी और मास्टर धारा सिंह की एक मीटिंग हुई. यह तय किया गया कि किसानों से विद्या प्रसार के लिए अनुरोध किया जाए. तदनुसार 2 मार्च 1927 को 70 जाट सज्जनों की एक बैठक श्री राधाकिसन जी मिर्धा की अध्यक्षता में हुई. इस बैठक में चौधरी गुल्लारामजी ने जाटों की उन्नति का मूलमंत्र दिया कि - "पढो और पढाओ" . साथ ही एक जाट संस्था खोलने के लिए धन की अपील की गयी. यह तय किया गया कि बच्चों को निजी स्कूल खोल कर उनमें भेजने के बजाय सरकारी स्कूलों में भेजा जाय पर उनके लिए ज्यादा से ज्यादा होस्टल खोले जावें. चौधरी गुल्लारामजी ने इस मीटिंग में अपना रातानाडा स्थित मकान एक वर्ष के लिए छात्रावास हेतु देने और बिजली, पानी, रसोइए का एक वर्ष का खर्च उठाने का वायदा किया. इस तरह 4 अप्रेल 1927 को चौधरी गुल्लारामजी के मकान में "जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर" की स्थापना की । [12] [13] इसमें चौधरी रामदानजी का भी पूरा योगदान रहा. आपने न केवल मासिक चन्दा देकर बल्कि रेलवे के अन्य लोगों से भी काफी सहायता दिलवाई. आप लंबे समय तक तन-मन-धन से इस संस्था की सहायता करते रहे. [14]
1930 तक जब जोधपुर के छात्रावास का काम ठीक ढंग से जम गया और जोधपुर सरकार से अनुदान मिलने लग गया तब चौधरी मूलचंद जीबल्देवराम जी मिर्धाभींया राम सियागगंगाराम जी खिलेरीधारासिंहएवं अन्य स्थानिय लोगों के सहयोग से बकता सागर तालाब पर 21 अगस्त 1930 को नए छात्रावास की नींव नागौर में डाली । बाद में चौधरी रामदानजी के सहयोग से बाडमेर में व 1935 में चौधरी पूसरामजी पूलोता, डांगावास के महाराजजी कमेडिया, प्रभुजी घतेला, तथा बिर्धरामजी मेहरिया के सहयोग से मेड़ता में छात्रावास स्थापित किया गया. [15] [16] [17] [18]
आपने जाट नेताओं के सहयोग से अनेक छात्रावास खुलवाए । बाडमेर में 1934 में चौधरी रामदानजी डऊकिया की मदद से छात्रावास की आधरसिला राखी । 1935 में मेड़ता छात्रवास खोला । आपने जाट नेताओं के सहयोग से जो छात्रावास खोले उनमें प्रमुख हैं:- सूबेदार पन्नारामजी ढ़ीन्गसरा व किसनाराम जी रोज छोटी खाटू के सहयोग से डीडवाना में, इश्वर रामजी महाराजपुरा के सहयोग से मारोठ में, भींयाराम जी सीहाग के सहयोग से परबतसर में, हेतरामजी के सहयोग से खींवसर में छात्रावास खुलवाए । इन छात्रावासों के अलावा पीपाड़कुचेरालाडनुंरोलजायलअलायबीलाडारतकुडि़या, आदि स्थानों पर भी छात्रावासों की एक श्रंखला खड़ी कर दी । इस प्रकार मारवाड़ के जाट नेताओं जिसमें चौधरी बल्देवराम मिर्धा, चौधरी गुल्लारामजी, चौधरी मूलचंदजी, चौधरी भींयारामजी, चौधरी रामदानजी बाडमेर आदि प्रमुख थे, ने मारवाड़ में छात्रावासों की एक श्रंखला स्थापित करदी तथा इनके सुचारू संचालन हेतु एक शीर्ष संस्था "किसान शिक्षण संस्थान जोधपुर" स्थापित कर जोधपुर सरकार से मान्यता ले ली, जिसे सरकार से छात्रावासों के संचालन हेतु आर्थिक सहायता प्राप्त होने लगी. [19] [20]इस शिक्षा प्रचार में मारवाड़ के जाटों ने अपने पैरों पर खड़ा होने में राजस्थान के तमाम जाटों को पीछे छोड़ दिया ।[21]

जाट बोर्डिंग हाऊस बाडमेर के संस्थापक

चौधरी रामदानजी का 1929 में जोधपुर से बायतू तथा 1930 में बाड़मेर स्थानान्तरण हो गया. अब आपने बाड़मेर के किसानों पर ध्यान देना शुरू किया. आपने बाडमेर में एक जाटावास बस्ती बसाई और वहीं अपना मकान बनाया. बाड़मेर को अपनी कर्म स्थली बनाते हुए इस एरिया के किसानों से सम्पर्क किया. कुछ बच्चों को लाकर अपने निवास स्थान पर लाकर रखा और पढाना शुरू किया. उस समय बाडमेर में एक मिडिल स्कूल और एक प्राथमिक स्कूल था. बच्चे वहां पढ़ने जाते और रामदानजी के मकान में रहते. यहाँ आपकी पत्नी सबके भोजन की व्यवस्था करती थी. जब बच्चों की संख्या बढ़ने लगी तब अपने पड़ौस के मकान में श्री भीकमचंदजी का मकान किराये पर लिया और वहां 30 जून 1934 को जाट बोर्डिंग हाऊस बाड़मेर की स्थापना की. चौधरी मूलचंदजी नागौर के कर कमलों से इसका उदघाटन हुआ. उस समय 19 छात्रों ने इसमें प्रवेश लिया था.[22][23] [24]
इस संस्था की स्थापना करने के बाद रामदान जी तन-मन-धन से इसकी उन्नति में लग गए. बाड़मेर के आसपास के गाँवों का भ्रमण कर आपने कई और बच्चों को बोर्डिंग में भर्ती करवाया. धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ने लगी तो इस छात्रावास का आर्थिक भार भी बढ़ने लगा, तब आपने ग्रामीण एरिया और रेलवे कर्मचारियों से चन्दा एकत्रित कर छात्रावास का खर्चा चलाया. इस कार्य में चौधरी आईदानजी भादू बाड़मेर ने आपका पूरा सहयोग किया. जून 1936 तक इस संस्था में 35 विद्यार्थी हो गए और बाड़मेर में यह संस्था अपने आप में एक अनूठी संस्था बन गयी. 1937 में इस छात्रावास को जोधपुर सरकार से 30 रूपया मासिक अनुदान मिलने लग गया. अब चौधरी रामदानजी इस बोर्डिंग के लिए स्थाई निर्माण करवाने में लग गए. गाँवों में घूम कर तथा रेलवे कर्मचारियों से चंदा एकत्रित कर 1941 तक वर्तमान छात्रावास के आधे भाग का निर्माण पूरा कर लिया. अब किराए के भवन से बोर्डिंग नए भवन में स्थानांतरण करवा दिया. इस हेतु 1942 तथा 1944 में बाड़मेर में किसान सम्मेलन आयोजित किए. इनमें चौधरी बलादेवरामजी मिर्धा, हाकिम गोवर्धनसिंह्जीचौधरी मूलचंदजी नागौरचौधरी रामदानजी ने छात्रावास को पूरा करने हेतु चंदे की अपील की. तिलवाड़ा पशु मेले से भी चन्दा एकत्रित किया. इन प्रयासों से छात्रावास का निर्माण 1946 तक पूरा हो गया. [25]

बाडमेर जिला किसान सभा की स्थापना

चौधरी रामदानजी 14 मार्च 1946 को बाड़मेर से रेलवे के प्रथम-रेलपथ-निरीक्षक पद से सेवानिवृत हो गए. इसके बाद आपने पूरा ध्यान समाज सेवा में लगा दिया. अब आपने जाट बोर्डिंग हाऊस बाड़मेर के साथ मारवाड़ किसान सभा का भी काम देखना शुरू कर दिया. किसानों की प्रगती को देखकर मारवाड़ के जागीरदार बोखला गए । उन्होंने किसानों का शोषण बढ़ा दिया और उनके हमले भी तेज हो गए । जाट नेता अब यह सोचने को मजबूर हुए कि उनका एक राजनैतिक संगठन होना चाहिए । सब किसान नेता 22 जून 1941 को जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर में इकट्ठे हुए जिसमें तय किया गया कि 27 जून 1941 को सुमेर स्कूल जोधपुर में मारवाड़ के किसानों की एक सभा बुलाई जाए और उसमें एक संगठन बनाया जाए । तदानुसार उस दिनांक को मारवाड़ किसान सभा की स्थापना की घोषणा की गयी और मंगल सिंह कच्छवाहा को अध्यक्ष तथा बालकिशन को मंत्री नियुक्त किया गया. [26] 1946 में बलदेव रामजी मिर्धा ने मारवाड़ किसान सभा की कार्यकारिणी का पुनर्गठन किया जिसमें श्री नरसिंहजी कच्छवाहा को अध्यक्ष व श्री नाथूरामजी मिर्धा को मंत्री बनाया तथा चौधरी रामदानजी को कार्यकारिणी का सदस्य नियुक्त किया. [27]साथ ही बाड़मेर परगने में भी किसान सभा की एक इकाई का गठन कर श्री रामदानजी को वहां का अध्यक्ष नियुक्त किया. ३ मार्च 1948 को श्री जयनारायणजी व्यास के नेतृत्व में जोधपुर में नयी सरकार बनी जिसमें मारवाड़ किसान सभा की और से श्री नाथूरामजी मिर्धा कृषि मंत्री बने. [28]इस सरकार ने किसानों के हित में 1949 के शुरू में मारवाड़ लैंड रेवेन्यू एक्ट व मारवाड़ टेनेन्सी एक्ट 1949 पारित कर दिए जिसमें लागबाग आदि समाप्त करते हुए किसान को अपनी जमीन का मालिक बना दिया. इन कानूनों के बनते ही श्री रामदान जी मालानी के गाँव-गाँव ढाणी-ढाणी जाकर किसानों को इन कानूनों की जानकारी दी और लागबाग [29] बंद करवाई.[30]
लगबाग बंद होने से जागीरदार तिलमिला गए और अत्याछार बढ़ा दिए. किसान नेताओं पर कातिलाना हमला कर हत्याएं करना शुरू कर दिया. इन घटनाओं में मालानी में 27 लोगों ने प्राण गँवाए[31]इसे समय में रामदांजी पहाड़ बन कर किसानों के रक्षार्थ सामने आए और किसानों की हर प्रकार से मदद की. आप द्वारा बाड़मेर किसान सभा के अध्यक्ष तथा बाद में विधायक की हैसियत से जो सेवाएं आपने किसानों की करी आज तक भी बाड़मेर के किसान उनको याद कर आपके प्रति श्रद्धानत होते हैं. [32][33] मारवाड़ किसान सभा तथा14 अगस्त 1949 को जयपुर में गठित राजस्थान किसान सभा के अध्यक्ष श्री बलदेव राम जी मिर्धा व अन्य नेताओं के प्रयासों का परिणाम यह हुआ की 1952 के प्रारम्भ में राजस्थान की सरकार ने जागीरदारी प्रथा समाप्त करने का अधिनियम पारित कर दिया. इससे राजस्थान का किसान सदा के लिए जागीरदारी प्रथा से मुक्त हो गया. 1955 में राजस्थान टेनेन्सी एक्ट बन जाने के बाद तो किसान स्वयम अपने जमीन का मालिक बन गया. इस कार्य में श्री बलदेव राम मिर्धा और अन्य जाट नेताओं के साथ श्री रामदान जी का भी महत्वपूर्ण योगदान था. [34] [35]

सामाजिक सेवा

चौधरी रामदानजी मारवाड़ के अन्य जाट नेताओं की तरह किसानों में प्रचलित सामाजिक कुरीतियाँ हटाने के हामी थे. [36][37] आप बाल विवाह, म्रत्यु-भोज, मुकदमेबाजी, अफीम, तम्बाकू, दीन-प्रथा[38] आदि कुरीतियों के विरोधी थे और जीवनभर इनके खिलाफ संघर्ष करते रहे. श्री रामदानजी म्रत्यु-भोज को किसानों का दुश्मन मानते थे. अतः उन्होंने ब्याह-शादियों, किसान-सम्मेलनों. तिलवाडा चैत्री पशु मेला, राजनैतिक-सम्मेलनों आदि सभी अवसरों पर म्रत्यु-भोज को बंद करने का आव्हान करते थे. जब इसमें आपको आशातीत सफलता नहीं मिली तब इसे कानूनन बंद कराने का प्रयास किया. 1957 में जब आप विधायक बने तब आपने मुख्यमंत्री श्री मोहन लाल सुखाडिया जी से आग्रह कर "राजस्थान म्रत्यु-भोज निवारण अधिनियम 1960" विधान सभा में पारित करवाया. इसके परिणाम स्वरूप बाड़मेर में म्रत्यु-भोज में बहुत कमी आई. दीन-प्रथा समाप्त करने के लिए आपने सर्वप्रथम अपने परिवार की लड़कियों का धर्म-विवाह करके किसानों के सामने इस प्रथा के खिलाफ एक उदाहरण प्रस्तुत किया और इस प्रथा को समाप्त करने में सफल रहे. [39] [40]
आप लड़कों की शिक्षा के साथ लड़कियों की शिक्षा के भी हिमायती थे. बाड़मेर इलाके में स्त्री-शिक्षा का प्रचार आपके प्रयत्नों से ही हुआ. आपके प्रयासों का ही परिणाम था की 1953 तक 318 लड़कियाँ मिडिल तक पढ़ने में सफल हुई. आपने किसानों के बच्चों की पढाई के साथ साथ द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बड़ी संख्या में जाट युवकों को सेना में भर्ती करवाया. 1951 से 1955 के बीच राजस्थान में पुलिस प्रशासन का विस्तार हुआ तो बड़ी संख्या में किसानों के बच्चो को पुलिस में नौकरी दिलवाकर किसानों का बड़ा भला किया. [41]

परिवार का उत्थान

जहाँ आपने किसानों के बच्चों की शिक्षा व उनको नौकरियों में लगाने पर ध्यान दिया, उसी तरह अपने परिवार के बच्चों की शिक्षा पर भी विशेष ध्यान रखा. आपके पाँच पुत्र और चार पुत्रियाँ थी और उनको सबको उच्च शिक्षा दिलवाई. उस समय आपका परिवार मारवाड़ में काफी बड़ा और प्रगतिशील था.[42]
  • आपके सबसे बड़े पुत्र श्री केसरीमलजी को ऊंची शिक्षा दिलाने के बाद व्यापार के साथ ही जाट बोर्डिंग हाऊस जोधपुर को संभालने का जिम्मा सौंपा.
  • दूसरे पुत्र लालसिंह को ऍम ऐ, एल एल बी करवाने के बाद जोधपुर में हाकिम के पद पर नियुक्त कराया. जिन्होंने राजस्थान में विभिन्न पदों पर रहकर महत्त्व पूर्ण दायित्व निभाया.
  • तीसरे पुत्र गंगाराम चौधरी को एल एल बी की शिक्षा दिलाकर वकालत में लगाया और समाज सेवा का अवसर दिया. बाद में गंगाराम चौधरी ने राजनीती में आकर राजस्थान के विभिन्न विभागों में मंत्री रहकर जनता की सेवा की.
  • चोथे पुत्र खंगारमलजी तथा
  • पांचवें पुत्र फतहसिंहजी को भी उच्च शिक्षा दिलवाई.

राजनीती के माध्यम से समाज सेवा

1952 के प्रथम आम चुनाव से पहले 1951 के आख़िर में मारवाड़ किसान सभा व राजस्थान किसान सभा का कांग्रेस में विलय हो जाने पर चौधरी रामदानजी भी कांग्रेस में सम्मिलित हो गए. [43]1953 में नया पंचायती राज अधिनियम लागू हुआ. आपके प्रयासों से अनेक किसान सरपंच चुने गए. इसके बाद तहसील पंचायत के चुनाव हुए जिसमें 1954 में आप बाड़मेर तहसील पंचायत के सरपंच चुने गए. बाड़मेर में 1953 से 1955 तक हुए भूमि-बंदोबस्त में भी किसानों का आपने व आपके पुत्र श्री गंगारामजी ने बराबर मार्गदर्शन किया. भूमि के वाजिब लगान निर्धारित करवाए. 1957 में द्वितीय आम चुनाव में गुडामालानी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्यासी के रूप में चुनाव लड़ा और विजयी रहे. 1957 से 1962 तक विधायक रहते बहुत समाज सेवा की. इस दौरान बाड़मेर में डाकू उन्मुलक करवाया तथा जागीर जब्ती क़ानून में जागीरों का अधिग्रहण करवाया. 1959 में गुडामलानी पंचायत समिती के प्रधान पद पर पुत्र गंगारामजी को निर्वाचित करवाया. 1960 में म्रत्यु-भोज निवारण अधिनियम पास करवाकर बाड़मेर के किसानों को बर्बादी से बचाया. 1962 में श्री रामदानजी ने राजनीती से सन्यास ले लिया और अपने उत्तराधिकारी के रूप में श्री गंगारामजी चौधरी को 1962 के तृतीय आम चुनाव में कांग्रेस से गुडामलानी से विधायक जितवाया. बाड़मेर एरिया में आपके द्वारा की गयी सेवा के कारण श्री गंगारामजी बराबर बाड़मेर से चुनाव जीतते रहे तथा राजस्थान सरकार में कई विभागों के मंत्री रहे. [44][45]

रामदानजी के मिशन में सहयोगी

चौधरी रामदानजी के मिशन में सहयोगियों के रूपमें काम करने वालों में प्रमुख थे[46] -

जाट जन सेवक

रियासती भारत के जाट जन सेवक (1949) पुस्तक में ठाकुर देशराज द्वारा चौधरी मूलचंद सिहाग का विवरण पृष्ठ 190-191 पर प्रकाशित किया गया है । ठाकुर देशराज[47] ने लिखा है ....चौधरी रामदीन जी पीडबल्यूआई - [p.190]: आपका डऊकिया और गांव खड़ीन के रहने वाले हैं। हाल में आप बाड़मेर में आबाद हैं और कारोबार करते हैं। आप अभी 55 साल की अवस्था मैं नौकरी से रिटायर हो चुके हैं। आप मालानी परगने में एक जातीय सरदार हैं और कुटुंब के धनी हैं। आपके अंदर जातीय सेवाभाव कूट कूट कर भरा हुआ है। शुरू में जोधपुर बोर्डिंग की संस्था कायम करने में आपका खूब हाथ रहा है।

[p.191]: इस संस्था को कायम करने में चौधरी मूलचंद जी साहब के साथ आपने वह चौधरी भीया राम जी साहब और बलदेव राम जी मिर्धा के साथ तन मन धन से जुट गए। इसके बाद में आपने बाड़मेर बोर्डिंग की नीव डाली जिसमें आपके बड़े पुत्र कुंवर केसरी मल जी बड़ी लग्न से मंत्री पद का कार्य कर रहे हैं। जोधपुर असेंबली के भी आप मेंबर हैं। आप व्यापार का कार्य करते हैं, बड़े सीधे और सच्चे आदमी हैं। दूसरे कुंवर लाली सिंह जी MA. LLB हाकिम है तथा तीसरे कुंवर गंगाराम जी कानून पढ़ रहे हैं। छोटा परिवार पुत्र-पुत्रियों पढ़ाई कर रहे हैं। बाड़मेर बोर्डिंग के आप जन्मदाता हैं. आपका काफी परिवार रेलवे में मुलाजिमान है जिसमें p w i वह जमादारों की काफी संख्या है। आप का खानदान विद्या में बहुत अग्रसर है और कुरीति हटाने के हामी हैं।

देहांत

इस महान शिक्षा प्रेमी, किसानों के हितैषी व समाज सुधारक श्री रामदानजी का 24 अक्टूबर 1963 को देहावसान हो गया. आपका सच्चा स्मारक बाड़मेर का 'किसान छात्रावास' आपकी सारी यादें समेटे हुए आज भी समाज सेवा के लिए खड़ा है. यहाँ आपकी मूर्ती स्थापित है और छात्रावास के मुख्य द्वार से प्रवेश करने वाला हर आदमी मालानी के इस महापुरुष के दर्शन कर अपने को धन्य समझता है.[48]
चौधरी रामदानजी के सही मूल्यांकन के लिए 25 जनवरी 1949 के लोकसुधार जोधपुर के किसान अंक में छपी निम्न पंक्तियाँ उद्धृत करने योग्य हैं [49] [50]-
बाड़मेर के धोरों में, दुनिया की नजर से दूर अती ।
कृषकों को उन्नत करने में, तुम रहते हो वहां चूर जती ।।
जब उनके मन मोर तरसे ।
तुम बादल बन बरसे ।।

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