करणीराम मील और रामदेव सिंह गिल का जीवन परिचय
13 मई 1952 को चंवरा ग्राम में ये दोनों स्वतंत्रता सेनानी और किसान नेता किसानों के लिए शहीद हुये थे. आज उनका निर्वाण दिवस हैं. हम उनको नमन करते हैं.
शेखावाटी भू-भाग: वर्तमान राजस्थान का झुंझुनू जिला तत्कालीन जयपुर रियासत का भाग था और शेखावाटी के नाम से जाना जाता था. पूरा भू-भाग जागिरी क्षेत्र था. छोटे बड़े जागीरदारों का आधिपत्य था. इसी का एक भू-भाग उदयपुरवाटी के नाम से जाना जाता था. आज भी उदयपुरवाटी तहसील क्षेत्र कहलाता है.
जागीरदारों द्वारा शोषण: उदयपुरवाटी भू-भाग पूर्णरूप से छोटे-छोटे जागीरदारों के आधिपत्य में था. थोड़ी-थोड़ी जमीन इनकी जागीरों में थी. जमीन की पैमाइश नहीं हुई थी. लगान की शरह निश्चित नहीं थी. जागीरदार अपनी मनमर्जी से जो चाहा लगान वसूल करता था. जमीनों का कोई रिकॉर्ड नहीं था. कौन सी जमीन कौन काश्त करता है, कोई रिकॉर्ड नहीं होने से बेदखलियाँ बहुत होती थी. लोग बहुत पिछड़े हुए थे. अपने अधिकारों के प्रति कोई ज्ञान उन्हें नहीं था. शिक्षा का पूर्ण अभाव था. जागीरदारों के अत्याचारों का मुकाबला करने की हिम्मत नहीं थी. लगान बटाई में लिया जाता था. लगान के अलावा अनेक प्रकार की लाग-बाग ली जाती थी. संपूर्ण समाज दयनीय स्थिति में जी रहा था. किसान की हालत और भी दयनीय थी. पूरे इलाके में किसानों के घर कच्चे छपरों के ही थे. कोई पक्का मकान नहीं मिलता था. बड़ी ही अपमानजनक स्थिति में लोग जी रहे थे. जागीरदार का आदेश ही उनके लिए सब कुछ था. आदेश की अवहेलना उनके लिए बर्बादी का संदेश था. कई गाँवों के किसान जागीरदारों की नाराजगी मोल ले कर अपनी जमीन तथा प्राणों से हाथ धो चुके थे. खिरोड़, देवगांव-हुकमपुरा-चनाना के हत्याकांड इस बर्बरता के साक्षी हैं.
किसानों में नई चेतना: भारत आजाद हुआ. 1952 के आम चुनाव आए. श्री करणी राम जी इस इस क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार बने. श्री रामदेव सिंह जी का यह राजनीतिक कार्यक्षेत्र था. दोनों नेताओं ने घर-घर जाकर लोगों की स्थिति देखी. लोगों को अपने अधिकारों के लिए खड़े होने की प्रेरणा दी. अत्याचारों के खिलाफ लड़ने को प्रेरित किया. जनता में नई चेतना आई. खासतौर से किसान वर्ग संगठित होकर उठ खड़ा हुआ. जगह-जगह सभाएँ होने लगी. संगठन बने. नई हवा ने पूरे इलाके को झकझोर दिया. किसान वर्ग श्री करणी राम जी वह रामदेव सिंह जी को अपने उद्धारक त्राणदाता के रूप में देखने लगा. इस नई चेतना से जागीरदार वर्ग विचलित हो गया. इस पूरे परिवर्तन का कारण श्री करणी राम जी व श्री रामदेव सिंह जी को मानकर उन्हें खत्म करने की योजना बनने लगी. कई जगह गुप्त बैठकें हुई. सुदूर के डाकूओं को भी बुलाने की कार्यवाही पर विचार होने लगे.
1952 के चुनाव के बाद राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी. राज्य सरकार ने एक आदेश निकाला कि जिन जमीनों की पैमाइश होकर लगान कायम नहीं हुआ है वहां जागीदार पैदावार के छठे हिस्से से अधिक लगान के रूप में नहीं ले सकता. इस आदेश ने आग में घी का काम किया. अब तक जागीदार पैदावार का आधा हिस्सा लगान के रूप में लेते आ रहे थे. उन्हें छठा हिस्सा स्वीकार नहीं था. किसान चेतन हो उठा था. राज्य सरकार के आदेश के मुताबिक किसान छठे हिस्से से अधिक देने को तैयार नहीं था. जागीरदार-कश्तकार संघर्ष तेज हो उठा. जगह-जगह खलिहान रोक दिए गए. अराजकता की स्थिति बन गई. श्री करणी राम जी एवं रामदेव सिंह जी इस संघर्ष में किसानों की रहनुमाई कर रहे थे.
गोलियों से भून डाला: इसी सिलसिले में उदयपुरवाटी के गांवों का दौरा करते 13 मई 1952 को चंवरा ग्राम गए. वहां सेठ सेढूराम गुर्जर की ढाणी में ठहरे हुए थे. दोपहर को खाना खाकर आराम कर रहे थे. जागीरदार उनके प्राण लेने को पीछे पड़े हुए थे. उन्हें मौका मिल गया और शेडू राम की ढाणी पर आक्रमण कर दोनों नेताओं को बंदूक की गोलियों से भून डाला.
बलिदान कभी निरर्थक नहीं जाता है. दोनों नेताओं के सीने पर लगी गोलियां सीना चीरते हुये हुए जागीरी प्रथा के पेट में जा घुसी. सरकार हरकत में आई. जागीरदारी प्रथा समाप्त हुई. जमीन का बंदोबस्त हुआ. लगान की शरह कायम हो कर किसानों को जमीन के पर्चे-खतौनी मिले. किसान जमीन का मालिक बना. एक सम्मानजनक जीवन का भोर हुआ.
पिछले सालों से हर वर्ष 13 मई को शहीद स्थल शेढूराम की ढाणी पर श्री करणीराम जी और रामदेव सिंह जी की याद में शहीद मेला लगता है. दूर-दूर से लोग अपने दिवंगत नेताओं को श्रद्धांजलि अर्पित करने आते हैं.
पक्के गांधीवादी: श्री करणीराम जी का जन्म झुंझुनू जिले के भोजासर गांव में हुआ था. बीए-एलएलबी की डिग्री इलाहाबाद विश्वविद्यालय से लेकर झुंझुनू में वकालत शुरु की. गरीबों के दास के नाम से विख्यात हुए. उनका घर गरीबों की शरणस्थली था. बहुत बार फीस लेना तो दूर रहा अपने पास से खर्चा लगा कर गरीबों के मुकदमों की पैरवी करते थे. पक्के गांधीवादी थे. हाथ से कती हुई रूई के कपड़े पहनते थे. रेखाराम हरिजन उनका प्रिय सेवक था. पानी-चौका बर्तन वही करता था. छुआछूत मिटाने की बात करना आसान है अपने जीवन में कार्य रूप में परिणित करना बड़ी बात है. उनका सादा साइमया जीवन अनायास ही लोगों को प्रभावित करता था. वे सबके प्रिय थे. कांग्रेस संगठन से जुड़े हुए थे. जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे.
श्री रामदेव जी का जन्म उदयपुरवाटी तहसील के गांव गीलां की ढाणी में हुआ. अध्ययन समाप्त कर राजपुताना शिक्षा मंडल में अध्यापक के पद पर नियुक्ति लेकर प्रथम नियुक्ति पर सीकर जिले के कूदन गांव की स्कूल में लगे. सीकर ठिकाने से स्कूल भवन के विवाद को लेकर उन्हें ठिकाने ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. कूदन के बाद अन्य कई स्कूलों में अध्यापक रहे लेकिन वह जीवन उन्हें रास नहीं आया. सरदार हरलाल सिंह जी के संपर्क में आए और नौकरी छोड़ कर सार्वजनिक जीवन में कूद पड़े. सरदार जी के विश्वस्त साथी बने और उनके सचिव के रूप में काम किया. विद्यार्थी भवन झुञ्झुणु की देखभाल का कार्य वर्षों तक किया. उदयपुरवाटी इलाक़ा कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष जीवनपर्यंत रहे. झुंझुनू जिला कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी में रहे.
श्री रामदेव सिंह में संगठन करने की अपार क्षमता थी. कहा जाने लगा था कि जिधर से रामदेव जी निकल जाते हैं आग सी लग जाती है. जागीरी प्रथा के भयंकर खिलाफ थे और इस संघर्ष में उन्हें बड़ा आनंद आता था. ऐसा निडर निर्भीक उत्साही और क्षमतावान व्यक्तित्व मिलना बहुत मुश्किल है. 33 साल की अल्प आयु में ही वे जिले ही नहीं राजस्थान के प्रमुख कार्यकर्ताओं की श्रेणी में गिने जाने लगे थे.
पिछले सालों से हर वर्ष 13 मई को शहीद स्थल शेढूराम की ढाणी पर श्री करणीराम जी और रामदेव सिंह जी की याद में शहीद मेला लगता है. दूर-दूर से लोग अपने दिवंगत नेताओं को श्रद्धांजलि अर्पित करने आते हैं.
LAXMAN BURDAK
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