*💐जाट DNA और हमारे पूर्वज 💐*
हमारे पूर्वजों ने DNA को एक ख़ानदान और नस्ल के तौर पर देखा कि किस प्रकार से हमारी नस्ल को कामयाब रखा जा सकता है । चाहें कोई राजा हो या चाहें एक आम आदमी , सभी ने हमारी नस्ल को कामयाब रखने के लिए पूरा ज़ोर लगाया । यह हमारे पूर्वजों की बहुत बड़ी महानता है कि आज हमारा DNA अन्य लोगों से अलग है जो हमारे स्थाई धंधों जैसे कि खेती और लड़ाई से बना है जो ज़मीन से जुड़े हुए थे और इसीलिए हम कबड्डी और कुश्ती सदियों से खेलते आ रहें हैं ।
जब क्षत्रिय कहने वाले राजाओं में मुग़लों को अपनी बेटियाँ देने की होड़ लगी थी यहाँ तक कि अमीर खुसरो तक को भी अपनी बेटी दे दी थी उस समय भी हमने इस होड़ से नफ़रत की थी । देश की आज़ादी के समय भी हमारी छोटी बड़ी 27 रियासतें थी लेकिन किसी भी हमारे राजा ने कभी भी किसी मुग़ल व अन्य को अपनी लड़की नहीं दी अर्थात अपने DNA को संजो कर रखा । और यह DNA हमारे स्वाभिमान और हमारी इज़्ज़त से बँधा हुआ रहा । इस सम्बंध में मैं दो उदाहरण देना चाहूँगा । एक बार बादशाह अकबर लाहौर जा रहा था , जब उसकी सवारी पंजाब के कोटकपुरा गाँव के साथ से गुज़र रही थी तो उसने रथ में बैठे बैठे देखा कि एक घर से एक बछड़ा अपने रस्से समेत भाग कर बाहर आया , उसी समय एक लड़की जो उसी घर की थी पानी का मटका लेकर अपने घर की तरफ़ जा रही थी तो उसने एक हाथ से सिर पर रखा मटका पकड़ा और भागते बछड़े की रस्सी को पैर से दबा लिया जिस पर वह बछड़ा चारों ओर चक्कर काटने लगा । लड़की ने झुक कर बछड़े की रस्सी पकड़ी और अपने घर ले गई । यह पूरा दृश्य अकबर ने अपने रथ पर बैठे बैठे देखा तो वह लड़की की बहादुरी और उसकी ताक़त पर फ़िदा हो गया । अकबर ने अपने आदमियों के माध्यम से लड़की के पिता चौधरी मिताराम को बुलवाया और उसे कहा कि वह उसकी लड़की से निकाह करना चाहता है । इस पर चौधरी मिताराम ने उत्तर दिया की इसका फ़ैसला उसके भाईचारे की पंचायत करेगी । अकबर बड़ा राजनीतिज्ञ था और उसने चौधरी मिताराम को कहा कि वह एक महीने के अंदर अपने भाईचारे की पंचायत करके पंचायत का फ़ैसला दिल्ली दरबार में बता जाए , और वह कूच कर गया । चौधरी मिताराम ने अपने भाईचारे की पंचायत की और पंचायत में फ़ैसला किया कि अकबर जाटों की लड़की हमसे लड़ कर और जाटों को हराने पर ही उनकी लड़की से निकाह कर सकता है । कुछ दिन बाद पंचायत का फ़ैसला लेकर दो जाट दिल्ली पहुँच कर अकबर के दरबार में पंचायत का फ़ैसला सुनाया तो अकबर ने कहा कि मुझे जाटों से यही उम्मीद थी । इससे स्पष्ट है कि किस प्रकार जाटों ने अपने DNA को बचाया होगा ।
जब पंडित मदन मोहन मालवीय ने दिल्ली के मंदिर मार्ग पर बिड़ला मंदिर की नींव रखने के लिए सभी राजाओं को न्योता दिया तो वहाँ काफ़ी राजा सज-धज कर पहुँचे । पंडित मालवीय ने कहा कि जो राजा छह शर्तों को पूरा करेगा उसी के कर कमलों से मंदिर की नींव रखवाई जाएगी । जिसमें सबसे पहली शर्त थी कि जिसके ख़ानदान ने कभी भी मुग़लों को लड़की ना दी हो । दूसरी शर्त थी कि जिसके महलों में तवायफ़ ना नचाई जाती हो । इस पर सभी राजा नीचे ज़मीन में देखने लग गए , लेकिन धोलपुर के राजा उदयभानु प्रताप सिंह खड़े हुए जो सभी शर्तों को पूरा करते थे , उन्हीं के हाथों से मंदिर की नींव रखवाई गई थी । जिनकी याद में नरेश धोलपुर का संगमरमर का पत्थर मंदिर के साथ वाले पार्क में मंदिर की दीवार के साथ आज भी लगा हुआ है । मेरा कहने का अर्थ है कि हमारे पूर्वजों ने हमारे DNA की बड़ी बहादुरी से रक्षा की थी ।
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हमारे पूर्वजों ने DNA को एक ख़ानदान और नस्ल के तौर पर देखा कि किस प्रकार से हमारी नस्ल को कामयाब रखा जा सकता है । चाहें कोई राजा हो या चाहें एक आम आदमी , सभी ने हमारी नस्ल को कामयाब रखने के लिए पूरा ज़ोर लगाया । यह हमारे पूर्वजों की बहुत बड़ी महानता है कि आज हमारा DNA अन्य लोगों से अलग है जो हमारे स्थाई धंधों जैसे कि खेती और लड़ाई से बना है जो ज़मीन से जुड़े हुए थे और इसीलिए हम कबड्डी और कुश्ती सदियों से खेलते आ रहें हैं ।
जब क्षत्रिय कहने वाले राजाओं में मुग़लों को अपनी बेटियाँ देने की होड़ लगी थी यहाँ तक कि अमीर खुसरो तक को भी अपनी बेटी दे दी थी उस समय भी हमने इस होड़ से नफ़रत की थी । देश की आज़ादी के समय भी हमारी छोटी बड़ी 27 रियासतें थी लेकिन किसी भी हमारे राजा ने कभी भी किसी मुग़ल व अन्य को अपनी लड़की नहीं दी अर्थात अपने DNA को संजो कर रखा । और यह DNA हमारे स्वाभिमान और हमारी इज़्ज़त से बँधा हुआ रहा । इस सम्बंध में मैं दो उदाहरण देना चाहूँगा । एक बार बादशाह अकबर लाहौर जा रहा था , जब उसकी सवारी पंजाब के कोटकपुरा गाँव के साथ से गुज़र रही थी तो उसने रथ में बैठे बैठे देखा कि एक घर से एक बछड़ा अपने रस्से समेत भाग कर बाहर आया , उसी समय एक लड़की जो उसी घर की थी पानी का मटका लेकर अपने घर की तरफ़ जा रही थी तो उसने एक हाथ से सिर पर रखा मटका पकड़ा और भागते बछड़े की रस्सी को पैर से दबा लिया जिस पर वह बछड़ा चारों ओर चक्कर काटने लगा । लड़की ने झुक कर बछड़े की रस्सी पकड़ी और अपने घर ले गई । यह पूरा दृश्य अकबर ने अपने रथ पर बैठे बैठे देखा तो वह लड़की की बहादुरी और उसकी ताक़त पर फ़िदा हो गया । अकबर ने अपने आदमियों के माध्यम से लड़की के पिता चौधरी मिताराम को बुलवाया और उसे कहा कि वह उसकी लड़की से निकाह करना चाहता है । इस पर चौधरी मिताराम ने उत्तर दिया की इसका फ़ैसला उसके भाईचारे की पंचायत करेगी । अकबर बड़ा राजनीतिज्ञ था और उसने चौधरी मिताराम को कहा कि वह एक महीने के अंदर अपने भाईचारे की पंचायत करके पंचायत का फ़ैसला दिल्ली दरबार में बता जाए , और वह कूच कर गया । चौधरी मिताराम ने अपने भाईचारे की पंचायत की और पंचायत में फ़ैसला किया कि अकबर जाटों की लड़की हमसे लड़ कर और जाटों को हराने पर ही उनकी लड़की से निकाह कर सकता है । कुछ दिन बाद पंचायत का फ़ैसला लेकर दो जाट दिल्ली पहुँच कर अकबर के दरबार में पंचायत का फ़ैसला सुनाया तो अकबर ने कहा कि मुझे जाटों से यही उम्मीद थी । इससे स्पष्ट है कि किस प्रकार जाटों ने अपने DNA को बचाया होगा ।
जब पंडित मदन मोहन मालवीय ने दिल्ली के मंदिर मार्ग पर बिड़ला मंदिर की नींव रखने के लिए सभी राजाओं को न्योता दिया तो वहाँ काफ़ी राजा सज-धज कर पहुँचे । पंडित मालवीय ने कहा कि जो राजा छह शर्तों को पूरा करेगा उसी के कर कमलों से मंदिर की नींव रखवाई जाएगी । जिसमें सबसे पहली शर्त थी कि जिसके ख़ानदान ने कभी भी मुग़लों को लड़की ना दी हो । दूसरी शर्त थी कि जिसके महलों में तवायफ़ ना नचाई जाती हो । इस पर सभी राजा नीचे ज़मीन में देखने लग गए , लेकिन धोलपुर के राजा उदयभानु प्रताप सिंह खड़े हुए जो सभी शर्तों को पूरा करते थे , उन्हीं के हाथों से मंदिर की नींव रखवाई गई थी । जिनकी याद में नरेश धोलपुर का संगमरमर का पत्थर मंदिर के साथ वाले पार्क में मंदिर की दीवार के साथ आज भी लगा हुआ है । मेरा कहने का अर्थ है कि हमारे पूर्वजों ने हमारे DNA की बड़ी बहादुरी से रक्षा की थी ।
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