राजस्थान / फौजी पिता के ट्रस्ट को बेटा चला रहा, 364 बेटियां शिक्षा से दोबारा जुड़ीं; डाॅक्टर और कांस्टेबल बनीं
- सेना से रिटायर दिवंगत मांगूराम जाखड़ ने ट्रस्ट शुरू किया था, सबसे पहले 11 बेटियों को गोद लिया गया था
- मांगूराम के बेटे माेहनराम ने पिता की इच्छा को जारी रखा, आज 364 बेटियां इससे जुड़ी हैं
Feb 10, 2020,
सीकर (जोगेंद्रसिंह गौड़). देश सेवा किसी भी रूप में कहीं भी की जा सकती है। सेना से रिटायरदिवंगत मांगूराम जाखड़ और उनके बेटे माेहनराम की कहानी इसे साबित कर रही है। तंग हालातों के बीच पढ़ाई छोड़ने वाली बेटियों को वापस शिक्षा से जोड़ने के लिए मांगूराम जाखड़ और माेहनराम ने पेंशन और सैलेरी के पैसों से ट्रस्ट शुरू किया। पिता की मौत के बाद खेती से जुड़े बेटे मोहनराम ने इस सेवा कार्य को बंद नहीं होने दिया। नतीजा ट्रस्ट द्वारा गोद ली गई 364 बेटियां आज उच्च शिक्षा से जुड़ चुकी हैं। 10 बेटियां डाॅक्टर और कांस्टेबल सहित अन्य सरकारी नौकरी तक पहुंच चुकी हैं।
लाेसल के रहने वाले माेहनराम जाखड़ का कहना है कि पिता मांगूराम जाखड़ साल 1989 में आर्मी से नायब सूबेदार के पद से रिटायर हुए थे। 1997 में वे बंशीवाला महिला महाविद्यालय में गार्ड की नौकरी करने लगे। इस दौरान तंग हालातों में बेटियों ने पढ़ाई छोड़ने के कई मामले सामने आए।
बेटियों के दर्द को करीब से देखा
बेटियों के इस दर्द को फौजी ने करीब से देखा। परिवार के लाेगाें से चर्चा कर 2014 में राज दुरुस्त शिक्षा नाम से एक ट्रस्ट बनाया। शुरुआत में जिला शिक्षा अधिकारी देवलता चांदवानी की मौजूदगी में ट्रस्ट ने 11 बेटियों काे गाेद लिया। इनकी पढ़ाई का खर्चा नायक सूबेदार मांगूराम अपनी पेंशन और चौकीदारी के बदले मिलने वाले पैसों से उठाते रहे। 2017 में उनकी माैत हाे गई। पिता द्वारा शुरू की गई मुहिम काे बेटे ने आगे बढ़ाया। वर्तमान में ट्रस्ट ने 364 बेटियों काे गाेद ले रखा है। खुशी की बात यह है कि ट्रस्ट के सहयोग से पढ़ाई करने वाली 10 बेटियां सरकारी में नौकरी लग चुकी हैं। इनमें महिमा डाॅक्टर, शारदा, माेनिका, मनभरी पंचायत सहायक और एलडीसी के पद पर हैं।
बेटियों की जुबानी, ट्रस्ट की मदद की कहानी
- घाटवा में एएनएम संतोष बतातीं हैं "मेरे पिता खेती करते हैं। 2012 में परिवार के हालात ठीक नहीं हाेने पर आगे की पढ़ाई जारी रखना चुनौती बन गया था। ट्रस्ट ने पढ़ाई में सहयोग किया और नर्सिंग का फाॅर्म भरने की फीस भी चुकाई। इसके बदौलत आज मैं एएनएम बन पाई।"
- राजपुरा निवासी और दिल्ली में कांस्टेबल रवीना कहतीं हैं "मेरे पिता को टीबी हाे गई थी। बीमार हाेने पर कमाई बंद हाे गई और तंग हालात के कारण मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। ट्रस्ट की मदद मिली तो विपरीत हालातों में एक बार फिर पढ़ाई शुरू की। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की और दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल की नौकरी लग गई।"
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