आज किसान मसीहा बाबा टिकैत को दिल से बहुत याद कर रहा हूँ।मेरा मन तो नहीं था ऐसे फकीरी में जीने वाले इंसान के बारे में लिखने को क्योंकि जिसको दिल से चाहता हूँ,जिसको आदर्श मानता हूँ,जिसका जीवन मेरा प्रेरणाश्रोत हो उसके बारे में लिखने की सोचता हूँ तो हाथ कांपने लग जाते है,बुद्धि जवाब दे देती है,भावुकता लबों पर उतर जाती है,आंसू पलकों पर छा जाते है!
बाबा टिकैत 8साल के थे जब कन्धों पर नेतृत्व का भार आ पड़ा।बिना पूंजी के एक किसान के बेटे का अजूबा जीवन संघर्ष।पिता का साया किसी के बचपन में,सर से उठ जाए तो दुनियां चट्टान सी नजर आने लगती है।एक किसान की विधवा किस तरह अपने बच्चों को पालती है इसको समझने में किसी को कोई दुविधा हो तो गाँव के अंतिम गरीब के घर में चूल्हे पर रोटी पकाती किसी अबला के जीवन को देख लीजिए!मैं हिटलर वाली तानाशाही की हिमायत करता हूँ लेकिन ग़ुरबत को आंसुओं में डुबोने वाली भावुकता का भंडार भी हूँ।
सिसौली से सियासत के नाक को बोट क्लब समझने वाले राजपथ के नजारों को हुक्का क्लब में तब्दील करने वाले बाबा टिकैत को मैं शब्दों से नमन नहीं कर सकता!1988 के मेरठ आंदोलन की नुमाइश को 2010 तक टप्पल आंदोलन तक बरकरार रखने वाले किसान हितैषी देवता के बारे में मेरे जैसा तुच्छ प्राणी क्या संज्ञा दे व् किस तरह नमन करे?बहादुर सिंह से लेकर मायावती तक किसानों की ताकत का अहसास कराने वाला साधारण हवाई चप्पलों में चलने वाला एक किसान किस तरह राजनीतिक सीमाओं से परे सिर्फ और सिर्फ किसानों के लिए अपना जीवन क़ुर्बान कर दे,यह बाबा टिकैत के जीवन संस्मरणों से हम सीख सकते है।यह कोई लॉजिक पर मैजिक की कहानी नहीं है।यह सादगी से जीने वाले व् सादगी से लड़ने वाले एक साधारण किसान की कहानी मात्र है।आज किसान हितों की रक्षा की बात करने वाले व् किसान नेता बने घूम रहे हमारे राजनीतिज्ञों के लिए सच का आइना है ।हर किसानी समस्या का समाधान सत्ता के गलियारों में नहीं होता।किसान खेत में बल का उपयोग करने के साथ-साथ अपनी बुद्धि का प्रयोग गाँव के चौक-चौराहों पर करने का हुनर सीख लेगा तो उनकी पीड़ाओं का उपचार खुद चलकर उन तक आने लग जायेगा।
एक किसान को बिजली का कनेक्शन लेने के लिए जयपुर या दिल्ली तक भागदौड़ करने की जरूरत ही नहीं है।बाबा टिकैत ने हमे यही शिक्षा दी है कि जब कोई समस्या सामने हो व् सत्ता निष्ठुर होकर सुनने से इंकार कर दे तो सत्ता को खेतों तक आने के लिए मजबूर कर दो।उसका तरीका हुक्के की गुड़गुड़ाहट से निकलना चाहिए।सत्ता हुक्के के पास अर्थात किसान के पास आकर निवेदन करनी चाहिए कि बोल किसान देवता तेरी समस्या क्या है?किसान आज लाचार क्यों है क्योंकि संघर्ष की जो बागडोर बाबा टिकैत ने हमारे हवाले की थी उसको छोड़कर,हरे झंडे को छोड़कर हम लोग भगवे तले चले गए।भगवा कभी किसानों का झंडा नहीं हो सकता!हरे रंग की हरियाली के भीतर रहकर हमे किसान को मजबूत करना है।पगड़ी के मान-सम्मान को बरकरार रखते हुए हमें आधुनिकता की दौड़ में शामिल होना है,धोती को जीन्स में तब्दील करने के बजाय जीन्स को धोती की सोच तक लाना है,सफ़ेद मैला कुरता बदहाली का संकेत लगने के बजाय मेहनत व् पाखंड के तोड़ के रूप में स्वीकार्य करवाना होगा!हर हाल में किसान को हमे इस देश की नींव के रूप में स्थापित करना होगा।
पूंजीवादी दौड़ में खेती को दरकिनार करते हुए जिस प्रकार मंडी-पाखंडी हावी हो रहे है!शहरों की तरफ विस्थापन की दौड़ चल रही है,जिस प्रकार गाँवों से शहरों की तरफ पलायन में तेजी आई है वो हिंदुस्तान के भविष्य के लिए बेहद नुकसानदायक कदम है!जब तक खेती को उद्योग का दर्जा नहीं दिया जाता,जब तक किसान को कुशल श्रमिक नहीं माना जाता तब तक न किसान का भला हो पायेगा न इस देश का!एक किराने की दुकान चलाने वाला भी छोटे उद्योग का दर्जा हासिल कर लेता है!एक मंडी में माल ढुलाई का ठेकेदार मध्यम उद्योग का दर्जा पाने में कामयाब हो जाता है।तमाम सरकारी सुविधाओं का हक़दार बनकर मौज उडाता है और 20 सदस्यों वाला किसान परिवार अपने किस्मत को कोसकर चुप रह जाता है।सर छोटूराम को हम भूल गए लेकिन बाबा टिकैत के संघर्ष को आदर्श मानकर हम हमारे हकों की लड़ाई लड़ने को भी तैयार नहीं हो पाए!अपने पूर्वजों की फोटो व् किस्से इधर-उधर पेस्ट करने के बजाय उनके आदर्शों को ढाल बनाकर हमें आगे बढ़ना होगा।जन्म-मृत्यु का प्रमाणपत्र प्रेषित करने के बजाय उनके संघर्ष को अपने जीवन का उद्देश्य बनाना होगा।माल्यार्पण-यज्ञ आदि पाखंडियों के नुस्खे होते है।उनकी बहकावी हवा में बहने के बजाय धरातल पर कर्मों की बदौलत तस्वीर बदलने की कोशिस करनी चाहिए।
मैं नहीं तो कौन?आज नहीं तो कब?हम नहीं तो कोई और क्यों?इन सवालों के साथ आगे बढे।msp/cacp/किसान आयोग/किसान मोर्चा/कृषि मंत्रालय/कृषि विभाग आदि किसानों के हकों की लड़ाई के बीच में सिर्फ अवरोध मात्र है।अगर ये तमाम संस्थान किसानों की भलाई के लिए होते तो आज किसान के बजाय कृषि मंत्री,कृषि अधिकारी,कृषि वैज्ञानिक आत्महत्या करते!कल पंजाब में एक युवा किसान ने जहर पीकर आत्महत्या कर ली।उसका आठवर्षीय बैठा यह समझ ही नहीं पा रहा है कि मैं बाबा टिकैत बनूँ या चौराहे का भिखारी!हम किसान पुत्रों को आगे आकर उसको दिशा-निर्देशन करना चाहिए।फिर वो ही सवाल मैं नहीं तो कौन????.............
प्रेमाराम सियाग
बाबा टिकैत 8साल के थे जब कन्धों पर नेतृत्व का भार आ पड़ा।बिना पूंजी के एक किसान के बेटे का अजूबा जीवन संघर्ष।पिता का साया किसी के बचपन में,सर से उठ जाए तो दुनियां चट्टान सी नजर आने लगती है।एक किसान की विधवा किस तरह अपने बच्चों को पालती है इसको समझने में किसी को कोई दुविधा हो तो गाँव के अंतिम गरीब के घर में चूल्हे पर रोटी पकाती किसी अबला के जीवन को देख लीजिए!मैं हिटलर वाली तानाशाही की हिमायत करता हूँ लेकिन ग़ुरबत को आंसुओं में डुबोने वाली भावुकता का भंडार भी हूँ।
सिसौली से सियासत के नाक को बोट क्लब समझने वाले राजपथ के नजारों को हुक्का क्लब में तब्दील करने वाले बाबा टिकैत को मैं शब्दों से नमन नहीं कर सकता!1988 के मेरठ आंदोलन की नुमाइश को 2010 तक टप्पल आंदोलन तक बरकरार रखने वाले किसान हितैषी देवता के बारे में मेरे जैसा तुच्छ प्राणी क्या संज्ञा दे व् किस तरह नमन करे?बहादुर सिंह से लेकर मायावती तक किसानों की ताकत का अहसास कराने वाला साधारण हवाई चप्पलों में चलने वाला एक किसान किस तरह राजनीतिक सीमाओं से परे सिर्फ और सिर्फ किसानों के लिए अपना जीवन क़ुर्बान कर दे,यह बाबा टिकैत के जीवन संस्मरणों से हम सीख सकते है।यह कोई लॉजिक पर मैजिक की कहानी नहीं है।यह सादगी से जीने वाले व् सादगी से लड़ने वाले एक साधारण किसान की कहानी मात्र है।आज किसान हितों की रक्षा की बात करने वाले व् किसान नेता बने घूम रहे हमारे राजनीतिज्ञों के लिए सच का आइना है ।हर किसानी समस्या का समाधान सत्ता के गलियारों में नहीं होता।किसान खेत में बल का उपयोग करने के साथ-साथ अपनी बुद्धि का प्रयोग गाँव के चौक-चौराहों पर करने का हुनर सीख लेगा तो उनकी पीड़ाओं का उपचार खुद चलकर उन तक आने लग जायेगा।
एक किसान को बिजली का कनेक्शन लेने के लिए जयपुर या दिल्ली तक भागदौड़ करने की जरूरत ही नहीं है।बाबा टिकैत ने हमे यही शिक्षा दी है कि जब कोई समस्या सामने हो व् सत्ता निष्ठुर होकर सुनने से इंकार कर दे तो सत्ता को खेतों तक आने के लिए मजबूर कर दो।उसका तरीका हुक्के की गुड़गुड़ाहट से निकलना चाहिए।सत्ता हुक्के के पास अर्थात किसान के पास आकर निवेदन करनी चाहिए कि बोल किसान देवता तेरी समस्या क्या है?किसान आज लाचार क्यों है क्योंकि संघर्ष की जो बागडोर बाबा टिकैत ने हमारे हवाले की थी उसको छोड़कर,हरे झंडे को छोड़कर हम लोग भगवे तले चले गए।भगवा कभी किसानों का झंडा नहीं हो सकता!हरे रंग की हरियाली के भीतर रहकर हमे किसान को मजबूत करना है।पगड़ी के मान-सम्मान को बरकरार रखते हुए हमें आधुनिकता की दौड़ में शामिल होना है,धोती को जीन्स में तब्दील करने के बजाय जीन्स को धोती की सोच तक लाना है,सफ़ेद मैला कुरता बदहाली का संकेत लगने के बजाय मेहनत व् पाखंड के तोड़ के रूप में स्वीकार्य करवाना होगा!हर हाल में किसान को हमे इस देश की नींव के रूप में स्थापित करना होगा।
पूंजीवादी दौड़ में खेती को दरकिनार करते हुए जिस प्रकार मंडी-पाखंडी हावी हो रहे है!शहरों की तरफ विस्थापन की दौड़ चल रही है,जिस प्रकार गाँवों से शहरों की तरफ पलायन में तेजी आई है वो हिंदुस्तान के भविष्य के लिए बेहद नुकसानदायक कदम है!जब तक खेती को उद्योग का दर्जा नहीं दिया जाता,जब तक किसान को कुशल श्रमिक नहीं माना जाता तब तक न किसान का भला हो पायेगा न इस देश का!एक किराने की दुकान चलाने वाला भी छोटे उद्योग का दर्जा हासिल कर लेता है!एक मंडी में माल ढुलाई का ठेकेदार मध्यम उद्योग का दर्जा पाने में कामयाब हो जाता है।तमाम सरकारी सुविधाओं का हक़दार बनकर मौज उडाता है और 20 सदस्यों वाला किसान परिवार अपने किस्मत को कोसकर चुप रह जाता है।सर छोटूराम को हम भूल गए लेकिन बाबा टिकैत के संघर्ष को आदर्श मानकर हम हमारे हकों की लड़ाई लड़ने को भी तैयार नहीं हो पाए!अपने पूर्वजों की फोटो व् किस्से इधर-उधर पेस्ट करने के बजाय उनके आदर्शों को ढाल बनाकर हमें आगे बढ़ना होगा।जन्म-मृत्यु का प्रमाणपत्र प्रेषित करने के बजाय उनके संघर्ष को अपने जीवन का उद्देश्य बनाना होगा।माल्यार्पण-यज्ञ आदि पाखंडियों के नुस्खे होते है।उनकी बहकावी हवा में बहने के बजाय धरातल पर कर्मों की बदौलत तस्वीर बदलने की कोशिस करनी चाहिए।
मैं नहीं तो कौन?आज नहीं तो कब?हम नहीं तो कोई और क्यों?इन सवालों के साथ आगे बढे।msp/cacp/किसान आयोग/किसान मोर्चा/कृषि मंत्रालय/कृषि विभाग आदि किसानों के हकों की लड़ाई के बीच में सिर्फ अवरोध मात्र है।अगर ये तमाम संस्थान किसानों की भलाई के लिए होते तो आज किसान के बजाय कृषि मंत्री,कृषि अधिकारी,कृषि वैज्ञानिक आत्महत्या करते!कल पंजाब में एक युवा किसान ने जहर पीकर आत्महत्या कर ली।उसका आठवर्षीय बैठा यह समझ ही नहीं पा रहा है कि मैं बाबा टिकैत बनूँ या चौराहे का भिखारी!हम किसान पुत्रों को आगे आकर उसको दिशा-निर्देशन करना चाहिए।फिर वो ही सवाल मैं नहीं तो कौन????.............
प्रेमाराम सियाग
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