धन्ना जाट का जन्म 1415ईसवी में गांव धुआंन जिला टोंक राजस्थान में हुआ।गरीब किसान परिवार में पले धन्ना को माँ-बाप से मानव सेवा के संस्कार मिले।धन्ना भगत का इतिहास भी दूसरे गैर-ब्राह्मण महापुरुषों की तरह दंतकथाओं में ही सिमटा रह गया।धन्ना भगत भी गैर-ब्राह्मणी भक्ति परंपरा से निकले संतों की तरह महान संत थे जिसकी वाणी आज भी सिक्ख गुरुद्वारों में गाई जाती है।धन्ना,दादू,कबीर,रैदास,रामदास,कर्माबाई आदि संतों के पीछे पूरा गैर ब्राह्मणी संगठन स्थापित नहीं हो पाया इसलिए इनकी वाणियों को,दोहों को,भजनों को किसान-कमेरों के घर घर में तो गाया जाता है लेकिन व्यवस्थित इतिहास व धारा का संकलन ठीक से नहीं हो पाया।गुरुनानक ने जो दिशा दी व उसके पीछे उनके अनुयायियों ने जो व्यवस्था खड़ी की ऐसी व्यवस्था खड़ी करने में बाकी संतों के अनुयायी नाकाम रहे।
इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि गुरुनानक के अनुयायियों ने खुद को ब्राह्मण धर्म से पूर्णतया अलग कर लिया और दूसरे संतों के अनुयायी ब्राह्मण धर्म से अलग होने की हिम्मत नहीं जुटा सके।वो ब्राह्मणधर्म के इर्द-गिर्द ही अध्यात्म खोजते रहे।इसी कमजोरी के कारण ब्राह्मण धर्म की व्यवस्था की जकड़न ने कभी इनको स्वतंत्र नहीं होने दिया और इन संतों के जागरण के कार्यों में कपोल कल्पित,चमत्कारिक कहानियां डालकर भ्रमित कर दिया।
धन्ना जाट के साथ भी यही किया गया।मूर्तिपूजा के विरोधी धन्ना जाट की जीवनी में भी ऐसे ही तथ्य डाल दिये गए थे जिसके कारण तत्कालीन ब्राह्मणवाद विरोधी आंदोलन से जुड़े लोग अलग होते गए।यही रैदास के साथ किया,यही दादू के साथ किया।आज भी आप देखोगे कि कबीरपंथी लोग भी ब्राह्मणवादी व्यवस्था के तहत शादी से लेकर अस्थिविसर्जन का कार्य कर रहे है।ऐसा सिर्फ ब्राह्मणवादी लोगों ने ही नहीं किया बल्कि इस्लामिक कट्टरपंथ व मौलवी के चंगुलों से निकलने के लिए सूफी परंपरा से निकले संतों मोइनुद्दीन चिश्ती व निजामुद्दीन औलिया के साथ भी यही हुआ।इनके भी अनुयायी दरगाहों में चमत्कारिक मन्नतें मांगते नजर आएंगे।
सदियों से व्यवस्थित धर्मों के पंडितों/मौलवियों ने भोली भाली जनता को इन संतों के जागरूकता अभियान में अनेकों रोड़े अटकाये।जब ये संत लोग सच्चाई पर डटे रहे तो इनके अनुयायियों के बीच भ्रामक प्रचार प्रसार किये गए।जब पंडितों ने लोगों को ठाकुरजी की मूर्ति की पूजा करने से रोका तो धन्ना भगत ने बताया कि पत्थर की मूर्ति में कोई भगवान नहीं होता।सब पत्थर बराबर है।पत्थर ही पूजना है तो खेतों में बहुत पत्थर पड़े है पूज लीजिये।लेकिन ब्राह्मणवादी लोगों ने इस घटना को तोड़ मरोड़कर पेश करके पत्थर को ही रोटी खिलवा दी!
दूसरी घटना हलोतिये की है।जब धन्ना जाट बीज लेकर खेत की बुवाई करने जा रहे थे तो रास्ते मे भूखे सन्यासी मिल गए।उन्होंने खाने को मांगा तो ज्वार के बीज उनको दे दिए।इसके पीछे भी कहानी रची गई कि धन्ना भगत पिताजी की डांट से बचने के लिए बिना बीज ही खेत मे खाली हल चलाकर लौट गए और भगवान ने रात में बीज डाल दिये।जबकि हकीकत यह थी कि उस काल मे ब्राह्मणवाद विरोधी एक बहुत बड़ा सामाजिक आंदोलन चल रहा था और बहुत सारे संत-सन्यासी बहुजन समाज से हुए और घूम-घूमकर लोगों को जागरूक कर रहे थे।वो सिर्फ खाना खाने तक सीमित रहते थे।एक परिवार 15-बीघा की खेती करता था।क्या 40किलो बीज 2-3सन्यासी खा गए?
आज धन्ना भगत के जन्मदिन को प्रकाश-उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है तो हमे धन्ना भगत के सही जीवनी व विचारों को जानने का प्रयास करना चाहिए।अपने संतों व महापुरुषों के विचारों को ब्राह्मणवादी मानसिकता से हटकर देखना होगा।हो सकता हो हम आज किसी धर्म/सम्प्रदाय का हिस्सा हो लेकिन जरूरी नहीं कि अपने धर्म/सम्प्रदाय के हिसाब से ही अपने पूर्वजों का आकलन किया जाए।गुप्तकाल जैसे स्वर्णकाल को सोने का काल समझने के बजाय सवर्णों का काल समझा जाना चाहिए व उनके विघटन के बाद खुली हवा का जो झौंका आया उसमें से ये महान संत निकले और बगावत की थी।ये संत किसी धर्म विशेष या जाति विशेष के नहीं रहे बल्कि ये ब्राह्मणवादी कर्मकांडों में फंसकर तिल-तिलकर मर रही बहुसंख्यक जनता का नेतृत्त्व कर रहे थे।इन्होंने उस व्यवस्था को चुनौती दी थी जो यह मानकर बैठी थी कि धर्म के नाम पर लुत्फ उठाने वाली व्यवस्था पर उनका एकाधिकार है और यह आगे भी यूँ ही चलती रहेगी।इन्होंने बताया था कि अगर भगवान नाम की कोई चीज है तो वो कण कण में है हर इंसान के लिए सर्वसुलभ है।भगवान/अल्लाह कर्मकांडियों की जेल में बैठा अपराधी नहीं है कि उससे मिलने के लिए जेलर अर्थात पंडित/मौलवी से आज्ञा लेनी पड़ेगी!अगर संतों को सम्मान देना चाहते हो तो उनके विचारों को आत्मसात करो नहीं तो चमत्कारिक कहानियां पेश करके ढाक के वो ही तीन पात वाली कहावत ही चरितार्थ कर रहे हो!
गुरुग्रंथ साहिब में 15भगतों की वाणी संकलित है जिसमे धन्ना भगत की भी शामिल है। हर जगह धन्ना भगत की एक ही बात सर्वोपरि है और वो है "भगत के वश में है भगवान देखो कोई भक्ति करके..."मतलब भगवान व भक्त के बीच बिचौलियों की कहीं कोई जरूरत नहीं है।
प्रेमाराम सियाग
No comments:
Post a Comment