Wednesday, May 16, 2018

विचारहीन-दिशाविहीन नेतृत्व से जूझता जाट समाज .....




विचारहीन-दिशाविहीन नेतृत्व से जूझता जाट समाज .....
पिछले दिनों बाड़मेर के कुछ गांवों में मंदिर निर्माण प्रतियोगिता हुई है व तकरीबन तीन करोड़ रुपये की बोलियां लगी।बाड़मेर राजस्थान में सबसे अभावग्रस्त इलाका माना जाता है लेकिन हकीकत में संसाधनों का अभाव है नहीं बल्कि बुद्धि का अभाव नजर आता है!जाट समाज की विडंबना सदैव यह रही है कि ब्राह्मणवादी व्यवस्था में वो अपने आप को उच्च घोषित करने में हमेशा लगा रहता है।
जाट संस्कृति मे धर्म/मंदिर आदि कभी रहे नहीं लेकिन अब लग रहा है कि ब्राह्मणों से प्रतियोगिता कर रहा है।प्रतियोगिता भी ऐसी की सब कुछ खुद ही खर्च कर रहा है।ब्राह्मण कभी मंदिर नहीं बनाते बल्कि दूसरों से बनवाते है।बाड़मेर में पिछले सालों में जितने भी बड़े धाम या मंदिर चर्चा में रहे है वहां ज्यादातर धन जाट उद्यमियों ने खर्च किया है।
ये जो जाट उद्यमी है उनका जीवन तो शिक्षा से बदला है लेकिन पैसा आते ही पूरे समाज को ज्ञान दे रहे है तुम्हारा भाग्य मंदिरों से बदलेगा!पूरे समाज को आगे होकर मंदिरों में झौंक रहे है।
हे!जाटवीरों!जगाओं अपने जाट धर्म को
कुटिल,सफेदपोश उद्यमियों पर तुम प्रहार करो!
भोगी-ढोंगी ज्ञानेश्वर बन ठेल रहे तुम्हे बर्बादी में
ऐसे दलाल-दुष्टजनों का झटके में तुम संहार करो!!
तोड़ डालो सजती हांडीयाँ इनके पाखंड की
तुम भगत बनकर अपनी कौम का उद्धार करो!
उठाओ कलम!उठाओ किताबें अपने हाथ मे
बुद्धि,विवेक,तर्क के तीरों से तुम इनपर वार करो!!
गाज़ियाबाद के रेलवे स्टेशन पर एक सेठ को एक युवा मिलता है।सेठ युवा को पूछता है कि तुम्हारा नाम क्या है?युवा अपना नाम छोटूराम बताता है।एक कौम के ईमानदार सेठ व कौम के प्रति ईमानदार बुद्धिजीवी युवा की एक छोटी सी मुलाकात जाट समाज मे शैक्षिक क्रांति का स्वरूप ले आती है।सेठ छाजूराम व युवा छोटूराम का नाम आज हर किसी की जुबान पर इसलिए नहीं है कि उन्होंने मंदिर बनाये थे बल्कि इसलिए है कि उन्होंने शैक्षिक संस्थानों की श्रृंखला खड़ी कर डाली थी।कहाँ चले गए आज हमारे समाज के सेठ?क्या कर रहे है ये समाज के धनपति?खुद को पैसे वाला होने की धौंस मंदिरों में बोली लगाकर दिखाने से पहले शर्म से चुल्लूभर पानी मे डूब मरना चाहिए!ये अपना जाट धर्म भूल बैठे लोग है!ऐसे लोग कभी जाट समाज का भला नहीं कर सकते!पैसों के ढेर पर अपना जाट ईमान भूलकर भटक रहे इन लोगों से मुक्ति पा लीजिये!
आज 90%जाट परिवार मृत्युभोज के कलंक से बर्बाद हो रहे है लेकिन जाट समाज के बुद्धिभूषणों की वाणी खामोशी की चादर ओढ़कर पड़ी है।मुझे तो लग रहा है कि शायद वो चादर नहीं बल्कि कफ़न होगा!ज्यादातर मौजिज बुद्धिजीवी या तो खुद न्यात में बीच मे बैठकर उलूल-जुलूल बकवास करते हुए खाते नजर आएंगे या मूकदर्शक बनकर इस भावी पीढ़ी की बर्बादी के मंजर को देख रहे है जैसे इनको इनसे कोई वास्ता ही नहीं है!हमारे पुरखे अगर यही सोचते तो आज हमारे हाथों में कलम नहीं होती!रोज आपकी आंखों के सामने परिवार के परिवार बर्बाद हो रहे है किसका इंतजार कर रहे हो?अपने पुरखों की जन्मतिथि व पुण्यतिथियों पर राजनीतिक संगोष्ठियां करने से पहले गांव-गांव मृत्युभोज जैसी आपके समाज के भविष्य पर कालिख पोतती सामाजिक कुरीतियों पर भी छोटी-छोटी संगोष्ठियां कर लो!
जाट युवाओं!अब कौम का है भार तुम्हारे कंधों पर 
उठो!करो शिकार पट्टीदारों व खेड़ाओ के मुख्यों का!
बचा लो बचपन!बचा लो तुम जवानी अपने भ्राता की
बन जाओ पालनहार तुम मृत्युभोज के दुखिओं का !!
उजले कपड़ों में घूमते नर-पिशाचों पर तुम वार करो
नशे के भटकते इन कीड़ों के कुंड पर तुम प्रहार करो!!
जाट समाज के उद्योगपतीयों को गांवों में मंदिर बनाने की जरूरत क्यों महसूस हो रही है!जाट कौम के संगठनों को भागवत कथा करवाने की क्या जरूरत है!जाट समाज के राजनेताओं को मातम विशेषज्ञ बनकर मृत्युभोज के साथ खड़े होने की क्या जरूरत है!धर्म विशेषज्ञ बनकर भजन संध्याओं को बढ़ावा देने की क्या जरूरत है!ये सदाबहार कौम के दलाल है या बनने की फिराक में भटक रहे लोग है।जिस प्रकार बनियां सरसों/जीरे का व्यापार करते-करते फसल का मौसम बदलने के साथ मूंग,मूंगफली आदि खरीदता रहता है उसी प्रकार के ये व्यापारी है जो सुबह मंदिर निर्माण की बोली लगाते है,दोपहर में मातम विशेषज्ञ बनकर मृत्युभोज को बढ़ावा देते है व शाम होते होते धर्म विशेषज्ञ बनकर भजन संध्याओं में पहुंच जाते है।
कौम को बर्बादी के दलदल में बनाये रखने का हर काम ये लोग करते है!ये लोग जाट समाज के गरीब बच्चों के लिए शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए बोलियां क्यों नहीं लगाते?राजनेता खेती की बर्बादी में बिलखते जाट के घर जाकर हालचाल क्यों नहीं पूछते?उसके बाप की प्राकृतिक मौत पर तो कौओं की तरह पहुंच जाते है!गांव-गांव मंदिरों के बजाय शिक्षा के निशुल्क कोचिंग संस्थान क्यों नहीं खोलते?जिस कार्य से कौम मजबूत होती है वो एक भी कार्य ये लोग नहीं करते।कुछ लोग ईमानदारी के साथ प्रयास करते है तो उनका सहयोग करने के बजाय उसकी राहों में रोड़े जरूर अटकाते है
नहीं बदल पाएगी फिजा कौम की
इन तथाकथित गाँधीयों के उपहार से!
तुम्हे ही बनना पड़ेगा फिर से छोटूराम 
बदलाव आएगा भगतसिंह के वार से!!
आज ही मुंह खोलना शुरू करो तुम
भागे फिरेंगे तुम्हारे सवालों की बौछार से!
हो सकता हो इनका ईमान ही मर जाये
मुक्ति मिल जाएगी भावी खरपतवार से!!
प्रेमाराम सियाग
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