जाट कौम के महापुरुषों को जानने की कड़ी में आज हम सत्यवादी वीर तेजाजी के बारे में जानने का प्रयास करेंगे।वीर तेजाजी का जन्म एक जाट घराने में हुआ जो धोलिया वंशी थे। नागौर जिले में खड़नाल गाँव में ताहरजी और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 यानि 29 जनवरी 1074 में हुआ था। उनके पिता गाँव के मुखिया थे।ताहरजी नागवंशी धौलिया गोत्र के जाट है।संत कान्हाराम जी,मनसुख जी रिणवा,ठाकुर देशराज आदि इतिहासकारों ने वंशावली का वर्णन करने की काफी हद तक कोशिश की है लेकिन तथ्यों के अभाव में ज्यादा पुख्ता जानकारी नहीं मिल पाई है।यह सत्य प्रतीत होता है कि मध्यभारत के नागवंशी कबीले का पलायन आगरा से धौलपुर व फिर नागौर के जायल कस्बे की तरफ हुआ और जायल में काला गोत्री जाटों से झगड़े के कारण खरनाल में ठिकाना बनाया।उस समय इस इलाके में चौहान वंश का केंद्रीय शासन माना जाता था।ताहड़ देव जी 24गांवों के परगने खरनाल के प्रमुख बन गए थे।
मनसुख रणवा ने ताहड़देव जी का ससुराल त्योद गांव,किसनगढ़ व पत्नी का नाम रामकुंवरी लिखा है।रामकुंवरी का मायका जायल में काला गोत्री जाटों में था जबकि ससुराल त्योद में ज्याणी गोत्री जाटों में था।रामकुंवरी की शादी के बारह साल बाद भी बच्चा नहीं हुआ तो उसने ताहड़देव जी की दुसरीं शादी अठ्यासन में करण जी फिड़ौदा की पुत्री रामीदेवी से करवा दिया।रामीदेवी के पांच पुत्र हुए व इसके साथ ही रामकुंवरी के भी एक पुत्र तेजाजी व एक पुत्री राजल हुई।ताहड़देव जी शिव के उपासक थे और तेजाजी के जन्म के 9महीने बाद पुष्कर घाट पर शिव पूजा के लिए गए थे।वहीं पर पनेर के गांव प्रमुख रायमल जी सपत्नीक पुत्री होने पर शिव पूजा के लिए आये हुए थे।दोनों में बातचीत हुई व दोस्ती को रिश्ते में बदलने की ठानी।उस समय तेजाजी की उम्र 9महीने और पेमल की उम्र 6महीने थी।पीला-पोतड़ो में वहीं शादी कर दी गई।तेजाजी के मामा जी तो समय पर पहुंच गए थे लेकिन पेमल के मामाजी शादी के बाद पहुंच पाए।पेमल के मामाजी कालाओं व धौलियोँ में पहले से दुश्मनी चल रही थी इसलिए पेमल के मामाजी ने इस शादी को स्वीकार करने से मना कर दिया।इसी बात पर कहासुनी हो गई और ताहड़देव जी तलवार चला दी जिससे पेमल के मामा की मौत हो गई।उसके बाद दोनों परिवार अपने-अपने घर लौट गए।
कहते है पूत के पैर पालने में ही विशेष नजर आने लग जाते है।संत कान्हाराम ने एक घटना का उल्लेख किया है।पांचू मेघवाल नाम का बच्चा ठाकुरजी के मंदिर में चला गया था व पुजारी उसकी पिटाई कर रहा था। उसी समय तेजाजी ध्रुवा तालाब की पाल पर बनी अपने पूर्वजों की छतरी में स्थापित शिवलिंग पर जल चढ़कर आ रहे थे। पुजारी के लात-घूसों से टूटी आफत से तेजाजी ने पांचू को बचाया। बच्चे को छाती से लगाकर तेजाजी ने संबल प्रदान किया और नहीं डरने के लिए उसे आश्वस्त किया। इस पर पुजारी ने कहा कि यह बच्चा छोटी जाति का है। मंदिर में प्रवेश कर इसने अपराध किया है। पुजारी को तेजाजी ने समझाया कि छोटी जाति की सबरी भीलनी के जूठे बेर भी तो आपके ठाकुर जी ने स्वयं खाये थे,यहाँ तो केवल ठाकुर जी की प्रतिमा मात्र है। पुजारी ने कहा कि मूर्ति की प्राण प्रतष्ठा की गई है, इसमें ठाकुर जी का प्रवेश हो गया है। तेजाजी ने प्रतिप्रश्न किया कि यदि ऐसा ही होता तो प्राण-प्रतिष्ठा वाले मंत्रों से आपके मरे हुये पिताजी को जिंदा क्यों नहीं कर लेते ? पुजारी निरुत्तर हो गए। तेजाजी ने बताया कि ठाकुर जी का निवास अकेली प्रतिमा में ही नहीं है बल्कि प्रत्येक प्राणी में है। बालक तो वैसे ही परमात्मा का स्वरूप होता है।
इसी बीच लक्खी बंजारा (लाखा बालद)माल लादकर खरनाल के रास्ते सिंध प्रदेश ले जा रहा था। लाखा के पास सफ़ेद रंग की घोड़ी थी। जब लाखा अपना बलद लेकर खरनाल से गुजर रहा था तभी गर्भवती घोड़ी के एक बछिया पैदा हुआ।बछिया जन्म लेते ही उसकी मां मर गई। लाखा ताहड़ जी से परिचित था। ताहड़ जी ने उस घोड़ी की बछिया को रख लिया।तेजाजी के हिस्से उस बछिया की सेवा-सुश्रुषा आई।उसे गाय का दूध पिलाकर बड़ा किया व तेजाजी ने उसका नाम रख दिया लीलण।इस प्रकार लीलण तेजाजी की प्रिय घोड़ी बन गई।एक दिन तेजाजी घुड़सवारी करने के बाद थकान दूर करने के लिए सोये हुए थे तो माँ रामकुंवरी ने जगाते हुए कहा ...
"गाज्यौ-गाज्यौ जेठ'र आषाढ़ कँवर तेजा रॅ
लगतो ही गाज्यौ रॅ सावण-भादवो
सूतो-सूतो सुख भर नींद कँवर तेजा रॅ
थारोड़ा साथिड़ा बीजँ बाजरो।"
"गाज्यौ-गाज्यौ जेठ'र आषाढ़ कँवर तेजा रॅ
लगतो ही गाज्यौ रॅ सावण-भादवो
सूतो-सूतो सुख भर नींद कँवर तेजा रॅ
थारोड़ा साथिड़ा बीजँ बाजरो।"
तेजाजी उठे और बीज उठाकर खेत को चले गए।वहां पहली बार सबको बुवाई करते देखा कि सब बीच उछालकर हलौतिया कर रहे है।जब फसलों के निदान का समय आया तो खरपतवार हटाने व निदान करने में बड़ी मुश्किल आ रही थी।एक फसल के उत्पादन की प्रक्रिया के अनुभव ने उनके अंदर वैज्ञानिकता जगा दी।
वीर तेजाजी गौसेवा करते हुए खेती के लिए उम्दा तकनीक खोजने में लग गए। पहले जो बीज उछाल कर खेत जोता जाता था, उस बीज को जमीन में हल द्वारा ऊर कर बोना सिखाया, फसल को कतार में बोना सिखाया,कीट-पतंगों से बचने के लिए अलग-अलग तरकीबें सुझाई। इसलिए कुंवर तेजपाल को कृषि वैज्ञानिक कहा जाता है और पूरी किसान कौम उनको एक महान कृषि वैज्ञानिक व महापुरुष मानती है।
एक बार तेजाजी सुबह जल्दी बैल लेकर खेत चले गए और उनके लिए खाना व बैलों के लिए चारा उनकी भाभी बड़े देर से लाई थी।तेजाजी ने नाराजगी जाहिर की तो भाभी ने ताना दिया कि आपकी परणाई अपने घर बैठी है उसे ले आओ वो जल्दी खाना ले आएगी।पेमल के मामा की मौत के कारण यह बात दोनों परिवारों ने किसी को बताई नहीं थी।इस घटना का बदला लेने के लिए उधर पेमल की मां ने अपने भाइयों के साथ जुड़ने के लिए मीणा लुटेरों से सहयोग मांगा था।पेमल के मामा ने मीणाओं के साथ मिलकर ताहड़देव की हत्या कर दी थी और माता बोदल दे पेमल की शादी अन्यत्र करने की सोच रही थी लेकिन लाछा गुर्जरी इसमें बहुत रोड़ा थी।
इधर तेजाजी को शादी की जानकारी प्राप्त हो चुकी थी व भाभी के ताने के कारण पेमल को लाने की तैयारी करने लगे।माता रामकुंवारी ने पंडित से मुहर्त पूछने की बात कही तो तेजाजी ने कहा मुझे तीज से पहले पनेर जाना है व शेर को कहीं जाने के लिए मुहर्त की जरूरत नहीं पड़ती।शायद लाछा के माध्यम से तेजाजी को सूचना प्राप्त हो चुकी थी कि तीज को पेमल की शादी कहीं अन्यत्र हो जाएगी!बहन राजल जो कि अजमेर के पास तबीजी गांव में जोगजी सिहाग को ब्याही हुई थी,को लेकर घर आये।जाटों में सदैव यह परंपरा रही है कि बहू पहली बार घर आये तो ननद उसका स्वागत करें।
वीर तेजाजी लीलण घोड़ी पर सवार होकर पनेर के लिए अकेले ही निकल पड़े।तभी पता चला कि बोदल दे ने लाछा गुर्जरी की गायें अपने भाई के साथी लुटेरे मीणाओं द्वारा लुटवा दी।तेजाजी ने लाछा को गायें वापिस दिलवाने के लिए लुटेरे मीणाओं का पीछा किया।सुरसुरा के पास आग लगी हुई थी जिसमे एक नाग का जोड़ा फंसा हुआ था।शिव के उपासक होने के कारण उनकी नाग के प्रति असीम आस्था रहती थी।शिव भक्त कभी भी काले नाग को नुकसान पहुंचाना उचित नहीं समझते।तेजाजी ने नर नाग को आग से बचा लिया लेकिन मादा जल गई।जंतु विज्ञान के जानकार भी मानते है कि काले नाग का जोड़ा साथ मे जीना व साथ मे मरना पसंद करता है।काले नाग को खुद को बचाना नागवार गुजरा और गुस्से में तेजाजी को काटना चाहा लेकिन तेजाजी लीलण पर बैठकर मीणाओं के पीछे चल दिये।सैंकड़ों मीणाओं से लड़कर तेजाजी ने गायें छुड़ाई व लाछा गुर्जरी को सौंपकर वापिस सुरसुरा में उस स्थान पर पहुंचे जहां नाग गुस्से में बैठा था और नाग के प्रति अपनी आस्था का अद्भुत नमूना पेश करते हुए घुटनों के बल पर जीभ निकालकर बैठ गए।पूरे शरीर पर घाव थे और सिर्फ जीभ ठीक थी।नाग ने उनको डस लिया।
किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश से उनकी मृत्यु भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160, तदनुसार 28 अगस्त 1103 हो गई।जब यह बात पेमल को पता चली तो उसने भी जान दे दी।पेमल ने जान कैसे दी यह एक रहस्य ही है क्योंकि सती प्रथा जाट परंपराओं में कभी रही नहीं।जब यह सूचना बहन राजल को मिली तो उसने भी अपनी सहेली बुंगरी संग जान दे दी जिसे मेघवाल जाति की बताया जाता है।राजल व बुंगरी की समाधि ध्रुवा तालाब के पास खरनाल में बनी हुई है।
वीर तेजाजी की कृषि वैज्ञानिक की सोच व योगदान के कारण किसान उनको कृषि का देवता मानने लग गए।नाग के प्रति अटल आस्था को देखते हुए जब भी तेजाजी का चित्र,मूर्ति आदि बनाते है तो उनके साथ काले नाग को कभी नहीं भूलते है।11वीं सदी में गायों के लिए बलिदान को सर्वोच्च बलिदान माना जाता है।
उन्होंने अपने विचारों से जनसाधारण को सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया और जनसेवा के कारण निष्ठा अर्जित की। जात - पांत की बुराइयों पर रोक लगाई। शुद्रों को मंदिरों में प्रवेश दिलाया। पुरोहितों के आडंबरों का विरोध किया। तेजाजी के मंदिरों में निम्न वर्गों के लोग पुजारी का काम करते हैं। समाज सुधार का इतना पुराना कोई और उदाहरण नहीं है। उन्होंने जनसाधारण के हृदय में सनातन धर्म के प्रति लुप्त विश्वास को पुन: जागृत किया। इस प्रकार तेजाजी ने अपने सद्कार्यों एवं प्रवचनों से जन - साधारण में नवचेतना जागृत की। कर्म,शक्ति, भक्ति व् वैराग्य का एक साथ समायोजन दुनियां में सिर्फ वीर तेजाजी के जीवन में ही देखने को मिलता हैं।
तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन खरनाल में लाखों लोग सम्मान देने के लिए जुटते है।नागौर जिले के परबतसर में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल 10 (तेजा दशमी) से पूर्णिमा तक तेजाजी के विशाल पशु मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें लाखों लोग भाग लेते हैं। तेजाजी की गौ रक्षक एवं वचनबद्धता की गाथा लोक गीतों एवं लोक नाट्य में राजस्थान के ग्रामीण अंचल में श्रद्धाभाव से गाई व सुनाई जाती है।तेजाजी की टेरों पर फसलों का निदान व कटाई "ला"या "लाव" (सामूहिक) द्वारा की जाती है।
आज पूरे उत्तर-पश्चिमी भारत मे तेजाजी के सम्मान में धाम/मंदिर बने हुए है व उनके सत्यवादी,वचनबद्धता के विचारों से लाखों/करोड़ों लोग प्रेरणा लेते है।तेजाजी कर पांच बड़े भाई थे लेकिन परगने का उत्तराधिकारी छोटे भाई वीर तेजाजी को बनाया गया।यह भ्रातृभाव की बेजोड़ मिसाल है।आज जाट परिवारों में जब भी भाइयों के बीच बंटवारा होता है तो विशेषतौर से छोटे भाई का ख्याल रखा जाता है।तेजाजी की धर्म बहन लाछा गुर्जरी/भाई आसु देवासी/राजल की सहेली जो तेजाजी को भाई बुंगरी मेघवाल थी उसी प्रकार जाटों में यह सदैव प्रथा रही है कि जिसे सदियों से निम्न जाति का समझा गया उन्हीं को धर्म भाई/बहन बनाकर हरसंभव मदद को हाथ बढ़ाये/बढ़ा रहे है।तेजाजी के धाम कर्मकांडों व दिखावे से सदा दूर रहे है।तेजाजी के दामों में पूजा निम्न समझी जाने वाली जातियों के लोग करते है।आज सुरसुरा सर्वजातीय लोगों के महापुरुष के बलिदान स्थल के रूप में विख्यात है तो नागौर-जोधपुर हाईवे पर स्थित खरनाल किसानों का मक्का है।
आइए हम सब मिलकर हमारे महापुरुष वीर तेजाजी के आदर्शों पर चलते हुए समतामूलक समाज के निर्माण में अपना योगदान दें।हम सबका दायित्व बनता है कि न सिर्फ अपने गौरवशाली इतिहास को संजोए बल्कि ब्राह्मणवादी हमलों से बचाकर सत्यवादी तेजाजी के इतिहास को मिथिहास से परे रखें।
प्रेमाराम सियाग
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