Saturday, May 19, 2018

बलदेवराम जी मिर्धा

जब बलदेव के बल पर झूम उठा मारवाड़...

मानव सभ्यता में दो पहलू होते है।एक अच्छाई का तो दूसरा बुराई का।हर सभ्यता के हर कालखंड में जब अत्याचार सीमा लांघने लगते है तो कोई न कोई महापुरुष बगावत का झंडा उठाकर खड़ा हो जाता है।मारवाड़ की मरुधरा में जब राजाओं/सामंतों का आतंक चरम पर था उस समय कुचेरा,नागौर की धरा पर 17जनवरी 1889 को मगाराम जी राड़ के घर किसान केसरी के नाम से विख्यात बलदेवराम जी मिर्धा का जन्म हुआ था।मगाराम जी का परिवार जोधपुर राज्य में पोस्ट व टेलीग्राफ का कार्य देखता था व इनके उत्कृष्ट सेवाओं के लिए जोधपुर राज्य की तरफ से "मिर्धा"की उपाधि दी गई थी।


बलदेवराम जी मिर्धा ने जोधपुर से मेट्रिक पास की व 1914 में पुलिस में सब-इंस्पेक्टर के पद पर भर्ती हो गए।इंस्पेक्टर, पुलिस अधीक्षक आदि पदों पर रहते हुए ग्रामीण क्षेत्रों के दौरों पर रहकर किसानों की बदहाली देखी थी।लुटेरों से मुक्ति के लिए कई अभियान चलाए।जोधपुर राज्य को डाकुओं/लुटेरों से मुक्त करने के कारण 1943 में उन्हें पुलिस उप-महानिरीक्षक के पद पर पदोन्नति दी गई थी व 1947 में देश की आजादी के समय ऐसा मोड़ आया कि सामंत जमीन का मालिकाना हक छोड़ने को राजी नहीं थे और लोकतंत्र कहता कि जो जहां खेती कर रहा है वो जमीन उसकी है।बलदेवराम जी इस नाजुक मौके पर नौकरी से त्यागपत्र देकर किसानों के साथ मैदान में आकर डट गए।

पुलिस सेवा में रहते हुए जब वो गांवों के दौरों पर जाते थे तो उन्होंने किसानों की हालत नजदीक से जानी।कहने को किसान थे बाकी हालात दो पैरों वाले जानवर सी थी।जमीनों की मिल्कियत जागीरदारों के पास थी और किसान पेट भरने के बदले पालतू जानवर।जब चाहे किसान को आवास सहित फेंक दिया जाता था।

जहां अंग्रेजों का सीधा राज था वहां इतना शोषण नहीं था जितना राजपुताना के जागीरदारों द्वारा किया जाता था।बिना जागीरदार की रजामंदी के गाय के लिए घास तक एकत्रित करना गुनाह था।यहां कोई किरायेदारी कानून लागू नहीं था।किसी जमीन पर पहली फसल उगाने पर 50%हिस्सा जागीरदार वसूलते थे।फिर नंबर आता था गांव के ठाकुर व चारणों/दरोगोँ का जिन्हें किसान कणवारिया कहते थे।कुल-मिलाकर किसानों के हिस्से 20-30%फसल आती थी जो धार्मिक कर्मकांडों व सामाजिक कुरीतियों के हवाले हो जाती थी।ग्रामीण क्षेत्रों में नाम के भी स्कूल नहीं थे और जनता अज्ञानता में फंसी हुई थी।

यह सब देखकर बलदेवराम जी मिर्धा व्याकुल हो जाते थे।जागीरदारी गुंडों का सामना करने की हालत में किसान थे नहीं।अशिक्षा,गरीबी के दलदल में फंसे किसानों की मुक्ति के लिए रणनीतिक जागरूकता की जागरूकता की जरूरत थी।पुलिस सेवा में रहते हुए किसानों की दशा व दिशा सुधारने के लिए उन्होंने पहला व सबसे महत्वपूर्ण हथियार शिक्षा को हाथ मे लिया।

यह वो समय था जब संयुक्त पंजाब में चौधरी छोटूराम व सेठ छाजूराम मिलकर शिक्षण संस्थानों की श्रृंखला खड़ी कर रहे थे।किसान मसीहा सर चौधरी छोटूराम के जीवन को गहराई से समझने के बाद उन्हें अहसास हुआ कि शिक्षा ही हर समस्या का असली समाधान है |शिक्षा का जिम्मा सरकार के पास था लेकिन जागीरदारी गुंडों के आगे शिक्षा सिर्फ शहरों में सिमटी हुई थी और ग्रामीण आँचल में सामंतों/ठाकुरों/कणवारियों का सिर्फ आतंक था।

बलदेवराम जी मिर्धा ने सरकारी सेवा में रहते हुए गांव-गांव छान मारा था और किसानों को जागरूक करके ग्रामीण आँचल में स्कूल खोले। उन्होंने राज्य के हर कौने, हर क्षेत्र में किसान छात्रावासों की श्रृंखला स्थापित की। जहां किसानों के बालक सीमित संसाधन होने पर भी रह पाए और शिक्षित हो सके।

अपने स्कूली मित्रों की मदद से उन्होंने जोधपुर, बाड़मेर, मेडता, परबतसर, डीडवाना, नागौर,पीपाड़ आदि मारवाड़ क्षेत्र के कस्बों में छात्रवास का निर्माण किया।इसी कड़ी में उन्हें चौधरी भींयाराम,चौधरी मूलचंद व बाबू गुल्लाराम जी चौधरी जैसे सारथी मिले और इन्होंने इस मुहिम में अपना सर्वस्व दिया। हजारों छात्रों ने इन छात्रावास का इस्तेमाल किया और डॉक्टर, इंजीनियर, अधिकारी, राजनीतिज्ञ और शिक्षक बनते चले गए।

चौधरी छोटूराम,राय बहादुर चौधरी व बलदेवराम जी मिर्धा में एक समानता नजर आती है।वो यह है कि वो सरकार में रहकर अपनी कौम के हितों का सरंक्षण करते,शिक्षा का प्रचार-प्रसार करते,सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अभियान चलाते और लोगों को जागरूक करते थे।वो यह बखूबी समझते थे कि किसान कौम सरकार/जागीरदारों से सीधा मुकाबला करने की हालत में नहीं है इसलिए पहले उस पीक पॉइंट पर ले जाये कि सीधा टकराव झेलने में सक्षम हो जाये।

जब पूरे मारवाड़ में एक चेतना जगाने में कामयाब हो गए,जब  "जो जोते जमीन उसकी"का नारा घर-घर पहुंच गया,गांव-गांव किसानों का नेतृत्व करने के लिए शिक्षित लोग तैयार हो गए तो उन्होंने पंजाब सरकार के मंत्री चौधरी छोटूराम के आतिथ्य में मारवाड़ के कंसों की छाती  पर अर्थात जोधपुर में 1942 में बड़ा किसान सम्मेलन आयोजित किया जिसमें लाखों किसान शामिल हुए।इस सम्मेलन के बाद मारवाड़ के किसानों में एक नव चेतना का ऐसा ज्वार फूटा कि देखते ही देखते जागीरदारों के विरोध में गांव के गांव उठ खड़े हुए।

इधर लोकपरिषद,प्रजामंडल व कांग्रेस के नेताओं का आवागमन तेज होता गया और दुसरीं तरफ मारवाड़ किसान सभा एक बड़ी ताकत के रूप में उभरी।जब किसान सभा के बैनर तले किसान पूर्ण लामबंद हो गए तो बलदेवराम जी मिर्धा DIG के पद से त्याग देकर किसानों को नेतृत्व देने लिए 1947में खुलकर मैदान में उतर गए।

जब सरकारी नौकरियों में किसानों के बालकों की संख्या बढ़ी तो वो किसानों के हकों की आवाज बनने लगे।एक साथ मांगे उठी कि जागीर भूमि पर फसल के बंटवारे के बजाय पट्टे का नगद भुगतान हो, अनुचित टेक्स बंद हो और जागीरदारों की तानाशाही न्यायिक शक्तियों को खत्म की जाये।

राज्य सरकार अब इन जायज मांगों का विरोध नहीं कर सकती थी क्योंकि उसकी कार्यपालिका में किसानों के बालक ज्यादा थे ।अत: जागीरदारों की न्यायिक और पुलिस शक्तियां वापस ले ली गईं | जमीन के पट्टे का फसल में हिस्से की जगह नकद रूपये से भुगतान शुरू किया गया और सभी टेक्सों को जमीन के लगान के साथ ही एकीकृत किया गया ।

हालांकि सामन्ती जागीरदारों ने इसका कड़ा विरोध किया था । लगभग हर बड़े जागीर क्षेत्र में दंगे हुए थे। दबडा, खिवंसर, रतकुडीया आदि कई गांवों में काफी किसानों को अपना सर्वोच्च बलिदान करना पड़ा, वहां बहुत बड़ा रक्तपात हुआ और ये गांव किसानों के लिए पवित्र स्थान बन गए।

15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया।जोधपुर राज्य में नई सरकार बनी।बलदेवराम जी मिर्धा के कद व लोकप्रियता से जयनारायण व्यास सहित जागीरदार व दरबारी लोग डरे हुए थे कि कहीं यह किसान नेता राज्य की सत्ता न निगल जाए इसलिए नई सरकार में बलदेवराम जी के बजाय उनके पुत्र नाथूराम जी मिर्धा को कृषि व राजस्व मंत्री बनाया गया।

एकतरफ नाथूराम जी मिर्धा सरकार में मंत्री के तौर पर किसानों के हकों में फैसले ले रहे थे तो दुसरीं तरफ बलदेवराम जी मिर्धा किसान सभा के बैनर तले बड़ी बड़ी तकरीरों के माध्यम से किसान को उनके अधिकार प्रति जागरूक कर रहे थे।एक साल के भीतर ही “Marwar Tenancy Act, 1949” पारित किया गया और इस कानून ने मारवाड़ के किसानों को मध्य प्रान्त व संयुक्त पंजाब के प्रगतिशील किसानों के समकक्ष खड़ा कर दिया।6 अप्रैल, 1949 की आधी रात को बिना कोई पाई चुकाए ही सभी किसान उस जमीन के मालिक बन गये जिसको वह जोतते थे।

यह किसान केसरी बलदेवराम जी मिर्धा द्वारा निर्धारित लक्ष्यों में से एक बड़ी उपलब्धि थी ।उस दिन समूचे राजस्थान की फिजायें चौधरी बलदेव राम मिर्धा जिंदाबाद के नारों से गूंज उठी थी।1952 के पहले आमचुनाव से पहले कांग्रेस किसान सभा के नेताओं के पीछे-पीछे घूम रही थी।किसान सभा के नेताओं ने हालात को भांपकर सशर्त कांग्रेस में शामिल हो गए।उस समय जागीरदारों के आतंक को खत्म करने के लिए केंद्रीय सत्ता के साथ तालमेल बिठाना जरूरी था।किसान सभा के नेताओं का एकमात्र ध्येय किसानों का हित था।

उसके बाद जो हुआ वो हम हमारे बाप-दादाओं के मुंह से आज सुन सकते है।जो किसान चेतना की एक चिंगारी जली थी वो किसानों के हर घर की दीवारों को चमका गई।2अगस्त 1953 में वो शरीर हमारे बीच नहीं रहा लेकिन उनकी मिट्टी हमारे खेतों की मिट्टी में मिलकर हमारा आचमन करती है।समय के साथ हालात बदल जाते है लेकिन चेतना की अलख व विचार सदियों तक भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बन जाते है।आज हमारे हौंसलों में मिर्धा जी विचार व चेतना की मोटी दीवार बनकर खड़े है।आज शान से सीना फुलाकर घर से,खेत से निकलते है तो सीने में बलदेवराम जी मिर्धा का हौंसला भरा होता है।आज सिर उठाकर,आंख से आंख मिलाकर सामंतों से सामना करते है तो बलदेवराम जी मिर्धा की चेतना का उबाल हमारे अंदर भरा होता है।ऐसे वर्ग चेतना की अलख जगाकर पैरों पर खड़े करने वाले महापुरुष को मैँ नमन करता हूँ व उसके साथ-साथ वर्तमान हालात के मद्देनजर अपनी बात भी रखना चाहता हूँ।

एक DIG बने किसान के बेटे ने जागीरदारी दौर में किसान छात्रावासों की,स्कूलों की श्रृंखला खड़ी कर दी थी और आज रिटायर्ड DIG उसी एक छात्रावास के वार्डन बनकर रुक जाए,क्या यही जज्बा बचा है हमारे अंदर?एक रेलवे की नौकरी करने वाला किसान का बेटा पूरे बाड़मेर क्षेत्र में शिक्षा का ज्वार पैदा कर गया और आज सांसद/विधायक/आईएएस/आईपीएस बने किसान के बेटे क्या कर रहे है?तत्कालीन जोधपुर शहर की शिक्षा के मुकाबले रतकुड़िया को मारवाड़ की नालंदा के रूप में तैयार करने वाले चौधरी गुल्लाराम के गांव के विधायक/सांसद आज क्या कर रहे है?मैं किसी पर आरोप लगाकर ठेस पहुंचाना नहीं चाहता लेकिन हम सबको मिलकर अपने गिरेबान में जरूर झांकना चाहिए।

पहले जागीरदारी आतंक में गरीब किसान जकड़ा हुआ था और आज पूंजीवादी आतंक के बीच गरीब किसानों की आवाज,हक,सपनों को कुचला जा रहा है।दुश्मनों से लड़ना आसान होता है लेकिन जब घर मे ही दुश्मन पैदा हो जाये तो लड़ाई मुश्किल व उलझन भरी हो जाती है।हमने अपने घरों में जागीरदार पैदा कर लिए है जिन्होंने किसान छात्रावासों,शिक्षा केंद्रों पर कब्जा करके उजड़े भूखंडों में तब्दील कर दिया है,राजनीतिक दलाली के अड्डों में परिवर्तित कर दिया है।गरीब किसानों के बच्चों से इन संसाधनों को दूर कर दिया है।

अगर बलदेवराम जी मिर्धा जैसे महापुरुषों के विचारों को ,उनके जीवन को आत्मसात करते तो हम कब्जा करने की दौड़ में शामिल होने के बजाय बाबूजी अर्थात लादूराम जी ग्वाला की तरह नये छात्रावास खड़े करते।अगर किसी को खुद पर यकीन कम हो तो नागौर-जोधपुर हाईवे पर स्थित बावड़ी में किसान छात्रावास की भव्य इमारत का दीदार करना चाहिए जिसको बलदेवराम जी मिर्धा के एक सच्चे अनुयायी ने बनाया है।

प्रेमाराम सियाग

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