Thursday, July 5, 2018

जिस इंसान या कौम को अतीत जानने का अहसास नही होता" उस इंसान या कौम का दुनियां में कोई इतिहास नही होता"

जिस इंसान या कौम को अतीत जानने का अहसास नही होता"
उस इंसान या कौम का दुनियां में कोई इतिहास नही होता"
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लेखक :- Ashok Singh Bhadu
🙏 *राम राम/सत श्री अकाल/वालैकुम सलाम/ जाट भाईयों*🙏
मैं *अशोक सिंह भादू-पुत्र-S/oजाट गोरधन सिंह भादू* जो यह पोस्ट लिखने जा रहा हुँ! इस पोस्ट को पुरा(सम्पुर्ण) ही पढ़े तो बेहतर होगा! वर्ना आधा अधूरा पढ़ने का कोई फायदा नही है! मैं पिछले 4-5साल से सोसियल मिडिया के सहारे जाट कौम के इतिहास को जानने में लगा हुआ हुँ!मैं मेरी इस कौम के अतीत के बारे में जितना जानता हुँ! वह बात हर रोज नयी ही होती है! और इस कौम का अतीत कभी खत्म नही होता! हर रोज एक नया पन्ना मिलता है इस कौम का *5* साल में मैनें जितना जाना जैसा जाना जो समझा वो यहा इस पोस्ट में लिख रहा हुँ! प्लीज सभी भाई-बहन इस पोस्ट को पढ़ने की कोशिश करें! जाट वीरों बात यह है की हम जितना हमारे अतीत को जानते है उतना उसके अंदर खोते जाते है! लेकिन फायदा क्या है?
जमीनी स्तर पर हमारा फायदा क्या हुआ है? 0/0%NIL_मुझे समझ नही आ रहा हम लोग इस बात को समझ क्यो नही पा रहे है! की हमारी कौम का सबसे ज्यादा नुकसान किसी ने किया तो हम खुद नें किया है! हमारी कौम का सबसे ज्यादा बुरा हमने खुद किया है! इस कारण आज हमारी कौम नष्ट होने की कगार पर खड़ी है! हमारी कौम आज अतीत और भविष्य के दो गहरे कुएँ की दीवार पर खड़ी है! उस कुएँ के पास वर्तमान नाम की सीढ़ी पड़ी है! लेकिन हमारी कौम को होश नही है! हमारी कौम मार्डनिटी/पश्चिमी संस्क्रति /और /इस पांखडित दुनियादारी के सोमरस के नशे में खुद को बेहोश कर बैठी है! इस कारण हमारी जाट कौम को वर्तमान नाम की सीढ़ी नजर नही आ रही है! हमारी कौम अतीत के झरोखें में नही है! हमारी कौम तो पांखड,अंधविश्वास, भक्ति,कर्मकाण्ड के झरोखे में है! हमारी कौम को अपने अतीत से सीख लेने की कोई सुध ही नही है! हमारी कौम को अपने भविष्य की कोई चिंता नही है! हमारी कौम को अपने पुरखो की इज्जत, मान मर्यादा, संस्कार, रिती रिवाज, जाट परम्परा, इत्यादी जाट कल्चर का कोई ख्याल ही नही है?
किसी भाई बहन नें दो मिनट जिस कौम में जन्म लिया उस कौम के बारे में सोचा कुछ?
नही?
क्यो नही?
अरे आपकी कौम आपका परिवार आपकी माँ आपकी बेटी आपकी बहन आपकी जिंदगी, यही तो है सब कुछ! इसी जाट कौम से तो आपकी पहचान है? अरे आप अपनी माँ के बारे में नही सोचोगें? अरे आप अपने बच्चो की माँ के बारे में नही सोचोगे? तो कौन सोचेगा? क्या कोई दुजा आयेगा आपके लिये सोचने? अरे मेरे वीरों आपके पेट को भूख लगी है तो वह भूख तभी मिटेगी जब रोटी का निवाला आपके मुंह में जायेगा? पड़ोसी के मुंह में निवाला देने से आपके पेट की भुख नही मिटने वाली!!अरे मेरे जट्टशेरों!क्यो अपने हाथो अपनी कौम का गला घोट रहे हो?कब सुधारोगे खुद को? क्या आपको नही लगता की आपका अंत नजदीक है? यार जानवर होता है न वो भी अपने बच्चो से प्यार करना जानते है! आप नयी ब्याही बकरी के बच्चे को , गाय के बछड़े को उससे दुर करके देखो? नतीजा सामने होगा! आप तो बुद्धिमान इंसान हो आप अपने बच्चो का भविष्य क्यो गर्त में डाल रहे हो?
क्यो अपने बच्चो के दिमाग पर मानसिक गुलामी का धागा लपेट रहे हो?क्यो अपने बच्चो की नसबंदी कर रहे हो? क्यो इस महान कौम का नाश कर रहे हो?
आप सोच रहे होगें की अशोक के तो ये क्यो, कैसे, क्यो ही खत्म नही हो रहे? मुख्य बात क्या कहना वो नही कह रहा तोभी ये क्यो कैसे तो खत्म कभी होगें नही ! क्योकीं आपकी कभी जागेगें नही सोये रहेगें तो नाश तो होना ही है! नाश होगा तो ये क्यो कैसे हमेशा जिंदा रहेगे! मैं नही तो यही सवाल आपके बच्चे आपसे करेगें! सवाल कभी नही मरेगें!
लेकिन हा सवाल बदल जरूर सकते है!
और यह ताकत हम खुद मैं होनी चाहिये!
जाट-अतीत:-
इतिहास को जानना एक बड़ा ही रोचक विषय हैं! इसकी तह तक जाना टेढ़ा काम हैं!रोज कुछ नया जानते हैं!फिर सोचते हैं ये आखिरी सिरा होगा!लेकिन अगली खोज में फिर नयी शुरूआत होती हैं! और लग जाते हैं फिर आखिरी सिरे की खोज में,,आज के दिनों में इंटरनेट इस खोज के लिये बड़ा ही सरल और लाभदायाक हैं!!मैं अंग्रेजी का बिल्कुल भी जानकार नही हुँ !! फिर भी इंटरनेट के माध्यम से विदेशो तक जाटो की खोज में लगा रहता हुँ! इसी इंटरनेट के माध्यम से एक दिन में अफ्रिका के (जोहानसबर्ग) शहर से एक जाट महिला (#गिल बेट्स) से मिला!! मैनें उनसे गुगल अनुवाद के जरिये पुछा की आप भारत से जुड़े हों! क्या आप मुझे आपके नाम के आगे लगे गिल शब्द के बारे में कुछ बता सकती हैं?? तो उनका जवाब मिला ! - की नही में नही जानती इतना लेकिन हमारे बुजुर्ग कहा करते थे की हम सेंट्रल एशिया से आये हुए हैं!!वहीं एक दिन फिर मन में आया की चलो फिर किसी से पुछते है! तो में चला गया ऐसे ही एक अन्य देश इजरायल की #नर्मेन डबास (जो इजरायल के हेफा शहर के जट्ट सिटी से है)उनसे वही भारत के कनेक्शन का पुछा तो बोली की हा हैं! पर ज्यादा जानकारी नही हैं! उन्होने जल्द जानकारी जुटाने का आश्वासऩ दिया मुझे!!
बाहर देशो में लगभग 30-32देशो के जाटो से बात हुई किसी ने प्रमाण सहित जवाब दिया की हम भी जाट है तो किसी ने शोध करके जवाब देने को कहा !! (युक्रेन,हंगरी, जर्मनी, सिरिया, इजरायल, अफ्रिका, वगैरह जैसै 32 देशो में तो जाट बहुतायात संख्या में हैं!! बात आती है जाट की उत्प्ति की तो यह कहना बहुत कठीन होगा की जाट की उत्पति कब और कैसें हुई! मैं मेरी सोच व समझ के साथ कहुंगा जाट का उदगम् स्थल जर्मनी के आस पास युक्रेन, स्वीडन का इलाका हो सकता है! लेकिन वहा पर जाट कहा से जाकर बसे यह कहना अभी उचित नही होगा क्योकीं इस बात पर विभिन्न इतिहासकारो के विभिन्न मत है!
लेकिन "जाट" के बारे में जितना शोध कर जानने की कोशिश की तो पता चलता हैं कुछ इतिहास कार जाटों को बाहरी '' तो कुछ इतिहास कार जाटों को मुलनिवासी कहते हैं!!जबकी साफतौर पर कुछ नही कहा जा सकता की कौन कहा से आया या कौन कहा गया , पहले यह तो था नही की जमीन की जमांबदी या गिरदवारी नाम होती थी , ये सब कबीले थे'जो किन्ही कारणो से इधर से उधर , उधर से इधर, भटकते रहते थे! जिसको जहा का वातावरण और जमीनी क्षेत्र सही लगता वो वही निवास बसा लेता था! पहले सब घुमक्कड़ कबीले थे!! उनकी अपनी अपनी अलग पहचान होती थी!तो ये कहना बहुत ही मुश्किल और पेंचिदा मामला है की जाट बाहरी है या मुलनवासी !! सब इतिहासकारो के अलग अलग मत है कोई बाहरी कहता आया है , तो कोई यहा का बताते रहे हैं!!जबकी मेरा यह कहना है की जाट की उत्पति या जाट के उत्पति के क्षेत्र पर बहस करने से कोई मतलब नही हैं!! जाट मध्य एशिया से ही सम्पुर्ण विश्व में फैलें हैं!! जाट एक मार्शल ट्राइब हैं!! विश्व का इतिहास पढ़ने पर मालुम पड़ता है की मध्य एशिया के लोगो का जो कल्चर रहा हैं!! वह कल्चर केवल और केवल जाट में मौजुद हैं आज तक वही वेश-भुषा, वही रिति-रिवाज , केवल और केवल जाटों में मौजुद हैं ,, जाट दुनिया की सबसे बड़ी ट्राइब जो लगभग हर धर्म में मौजुद हैं!! इसको एक छोटे समुदाय के रूप में समझना गलतफहमी हैं दुनिया की!!जाट कौन हैं? यह प्रश्न बहुत ही सरल लगता है लेकिन इसका उत्तर उतना ही कठिन है। लेकिन फिर भी मैं इसका उत्तरऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर इस संक्षेप लेख में देने काप्रयास कर रहा हूं। जाट का शाब्दिक अर्थ तथा भावार्थ एकजुटहोना है अर्थात् बिखरी हुई शक्ति को इकट्ठा करना या किसी कार्य को एकजुट होकर करने वालों को ही जाट कहा जाता है।इसीलिए पाणिनि ऋषि ने लगभग 4000 वर्ष पूर्व अष्टाध्यायी मैंजट् झट् संघाते लिखा है। जाट बुद्धिजीवियों ने जाट कोपरिभाषित करने के लिए अंग्रेजी में इसको इस प्रकार संधिच्छेदकिया है- J का अर्थ justice अर्थात् न्यायप्रिय, A का अर्थAction अर्थात् कर्मशील, T का अर्थ Truthful अर्थात्सत्यवादी। इन तीनों गुणों के मिलने पर सम्पूर्ण जाट कहलाताहै, लेकिन जाट कौन है? प्रश्न ज्यों का त्यों खड़ा है। सबसे पहले हमें यह स्पष्ट होना चाहिये की नीचे इस फोटो में दिये गये नाम :- जो हैं
फोटो नं -2
यह सभी नाम इसी जाट शब्द के पर्यायवाची नाम हैं ! जो केवल उच्चारण भेद के कारण हैं! ज्ञात रहे उच्चारण हर बीस कोस में बदल जाता हैं!
उदाहरण के तौर पर :- हिंदी शब्द कहा को हरयाणवी में कित, कड़हे कड़ै,कड़िया, तो यही शब्द राजस्थान में कित, कठे किजा,केत कहा जाता हैं इसी प्रकार इसी शब्द *#कहा** को पंजाबी ,डोगरी में कित्थे ,कुत्थे कहा जाता हैं*
ठीक इस तरह जाट शब्द को जाट, जट्ट, जुट, जिट, गोथ,गोट, जोट, इत्यादी अलग-अलग नामो से विश्व के विभिन्न देशों मे जाट को पुकारा जाता हैं जो कि ऊपर चित्र में दर्शायें गये हैं!!
............इसका एक और उदाहरण दे रहा हुँ
*अर्थात् रूसी इतिहासकार के.एम. सेफकुदरात ने अगस्त 1964 मेंमास्को में एक भाषण दिया जो भारतीय समाचार पत्रों में भी छपाथा और उसने कहा, “मैंने 1967 में भारत की यात्रा करने से पहलेइतिहास के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया और पाया कि जाट भारत से मध्य एशिया और मध्य यूरोप तक रहते हैं वे अलग-अलग देशों में अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं और वे भाषाएं भी अलग-² बोलते हैं। लेकिन उन सभी का निकास एक ही है।” इस लिए जाट एक ग्लोबल कौम हैं!!🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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डॉ. महक सिंह जी कहते है --
हिंदुस्तान में ही नही अपितु् दुनिया में जाट नाम की एक कौम कहलाती है ।इसे लोग एक जाती बता कर बदनाम करते है । वास्तव में जाट कोई जाती नही है । जाट एक सभ्यता एक संस्कॄति के रुप में एक संगठन है । एसा संगठन जो प्रजातंत्र में विश्वास करता हो । जाट हमेश प्रजातंत्र में विश्वास करने वाले एकतंत्र के विरोधी रहें है दुनिया में जहाँ भी जाओ, उस हिस्से में जहाँ लोकतंत्र प्रजातंत्र है वहाँ के संस्थापक, प्रचारक, प्रसारक जाट ही रहें है। पंच ही परमेश्वर है ऐसे समाज को ये बेहतर समझते थे । पहले सुरक्षा की द्रष्टि से लोग नज़दीक नज़दीक बस्ते थे । कई परिवार मिलके एक कुटुम्ब होता था, कई कुटुम्ब मिलके एक पच्ची बन जाती, कई पच्चीया मिलके एक गाँव का निर्माण होता था और कई गाँव मिलके एक थाम्बा कहलाता है और कई थाम्बो के बाद और कई थाम्बो के बाद उसे संगठित करते है तो एक खांप बनती है । इन खापो का निर्माण सबसे पहले गुजरात, पंजाब का जो नीचे का हिस्सा, महाराष्ट्र, राजस्थान के बिच के हिस्से जिसे मालवा प्रदेश कहते थे उस मालवा प्रदेश में मंदसौर में ३२० ई. में पहली बार खाप पंचायत ईकठ्ठी हुई । यह खांप अंदरूनी मामलो में स्वतंत्र होती है । खापो की जो मान्यता और प्रचार प्रसार हुआ वो सबसे पहले तब हुआ जब मुगल आक्रांता यहाँ बढ़ने लगे तब अपनी सुरक्षा के लिये खापे इकठ्ठा हुई| और उंहे मुंह तोड़ जवाब दिया !! इससे पहले हुणो का आक्रमण हुआ तो पहली बार खापौ ने हुणो के खिलाफ एक पंचायत की और उसमे यशोधर्मा को अपना नेता माना । यशोधर्मा ने हिंदुस्तान से बाहर हुणो को भगाया । उसे हुण विजेता और जन राष्ट्र की उपाधि से खापो ने सम्मानित किया । उसके बाद थानेश्वर के राजा हर्षवर्धन के पिता की मृत्यु के बाद उसके भाई के लड़ाई में समाप्त होने के बाद खापो ने इकठ्ठा होकर हर्षवर्धन बैंस को सम्राट चुना । उस समय हर्षवर्धन बैंस ने खापो के आंतरिक मामलो में हस्तक्षेप नही करने के लिए प्रशास्निक इकाई के रुप में खापो को मान्यता दी! जो आज तक जाट बहुल इलाकों में मौजुद हैं !!
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* जाट-गुण
सारे संसार में मुख्य तौर पर जाट के दो ही रूप रहे हैं किसान और सैनिक इन दोनों ही कार्यों से जाट के चरित्र का निर्माण हुआ है किसान ईश्वर नाम को प्रस्तुत करने वाला गुण है और यह विडम्बना ही रही है कि ईश्वर की विपदाओं को सबसे अधिक इसी ने झेला है लेकिन इन्सानी अत्याचार या सामाजिक व्यवहारिक ढाँचे से अत्याचारों में घिरा है सैनिक इन्सानी अत्याचार व हमलों का घोर प्रतिवादी रहा है लेकिन अनुशासनप्रियता के साथ-साथ विजय उसके जीवन का अंतिम लक्ष्य रहा है किसान और सैनिक दोनों ही कार्य अकेले न होकर एकजुट व् संगठित होकर करने वाले रहे इसलिए एक -जुटता से ही जट और जाट कहलाए। इसी कारण जाट का चरित्रJustice-Action Truthfulबना तथा इसी बल पर इस कौम ने प्राचीन समय में संसार की बड़ी-बड़ी लड़ाइयां लड़ी और लगभग दो तिहाई संसार पर राज किया कुछ इतिहासकारों ने जत या यदु से भी जाट शब्द की उत्पत्ति बतलाई है महर्षि यास्क के ग्रन्थ में ‘जटायते इति जाट्यम’ अर्थात् जटायें रखने वालों को जाट बतलाया गया है! तो कुछ नें संस्क्रत के "ज्ञात" शब्द से "जाट" बनना बतलाया हैं! फिलहाल यह शब्द की चर्चा तो हम ऊपर कर ही चुके है!
अब हम बात करते हैं
जाट का धर्म क्या है
यह जानना बहुत जरूरी हैं आगे अब हम बात करते है जाट कौम के धर्म की ( धर्म का अर्थ हैं धारण करना, जाट हमेशा परमात्मा की एकीय शक्ति का समर्थक रहा हैं! जाट पांखड का घोर विरोधी रहा हैं! जाट नस्ल भारत में दो अलग अलग कबीलो में प्रवेश करती है उसके बाद तो बहुत कबीले आये जाट रेस के लेकिन जो दो सबसे पहले कबीले आये उनके प्रमुख गोत्र है ( पहला कबीला - खोखर,मंडा,डूडी,सहारण, वानर, काकुस्थ/काकराण) (दुसरा कबीला:- बेहनिवाल, बाना,डूडी ,वड़ैच,शाक्य, दहिया,ज्ञाति,) नोट ये मुख्य गोत्र है इनके साथ और गोत्र भी शामिल थे! मुख्यत यह दोनो कबीले अलग अलग आये तो इनमें पहला कबीला शाम के समय दो मिनट अपने पुर्वंजों की मुर्ति के आगे बैठ कर ध्यान लगाने वाला रहा और दुसरा कबीला ध्यान धम्म से ज्यादा कर्म में विश्वास करने वाला था! लेकिन बाद में सिंधू घाटी(हड़्प्पा सम्भ्यता)2500-3500 साल के समय और अन्य जाट कबीलो जैसे ( सियाग,गिल,वड़ैच,भाटी, चहल, चौहान, गोदारा, सारण,/ इत्यादी बड़े रूप में अन्य गोत्रों के साथ यह आर्यन रेस के कबीले जाट नस्ल के रूप में यहा प्रवेश करते उसके बाद लगातार 17शताब्दी तक जाट रेस के कबीले एशिया के इस भू-भाग की और बढ़ते ही रहते है! यह बाद में आये सभी कबीले कुछ ध्यान धारणा वाले तो कुछ कर्म धारणा वाले थे! कुल मिलाकर जाट रेस चाहे वह मुर्ति का ध्यान रही हो या प्रक्रति पुजक वो कभी पांखड पुजक नही रही है! जाट कौम के जो पहला कबीला जिनको मुर्ति पुजक कहा गया वो कबीले अपने पुर्वजों की मुर्ति के आगे ध्यान लगाते थे! ना की उनका ब्राहम्निज्म(मनुवाद) के पांखड की तरह पुजन करते थे! जाट नस्ल के कबीले ब्राहम्निज्म(मनुवाद)के पुजन कर्मकाण्ड का सहयोगी कभी नही रहा है!फिर जैसे जैसे जाट कौम ने अपना विकास किया और दायरा बढ़ाया और कबीलो की जनसंख्या बढ़ने लगी क्षेत्रफल बढ़ने लगा तो जाट नस्ल के लोग अपने गांव के क्षेत्र में ही छोटे मठ्ठ (दादा खेड़ा और गांव भुमिया के थान बनाने लगे यह प्रक्रिया ईसा पुर्व 1000के आस पास शूरू हुई थी! जाट प्रकर्ति पुजक रहा हैं!इसी कारण जाट चित्र की जगह चरित्र की पुजा करने वाला रहा हैं!और इसी आधार के कारण जाट अपने पुर्वंजो के अस्तित्व को स्वीकारते हैं ! जहाँ तक बात धर्म और सम्प्रदाय की होती हैं तो में यहा एक बात लिखना उचित समझुंगा, की धर्म और सम्प्रदाय अलग-अलग चीज हैं समस्त विश्व के लोगो का एक ही धर्म रहता हैं! वह हैं इंसानियत का धर्म!!! पुराने समय में समस्त जाट रेस का एक धम्म होता था (इंसानियत) फिर धीरे धीरे समय के साथ-²लोगो के विचार बदलें धर्म का रूप बदला कुछ लोगो नें एकीय शक्ति को ही सर्वोंपरि माना, तो कुछ लोगो नें ईश्वर के अनेको रूप को माना, यही कारण रहा की अलग अलग विचारों के लोगो ने अलग अलग पंथ और सम्प्रदाय बनायें, जिसके जितने ज्यादा अनुयायी होते गये वह पंथ बड़ा होकर एक नये सम्प्रदाय के रूप में सामने आया, आज दुनिया के मुख्य सम्प्रदाय (ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन, हिंदु, सिक्ख, यहुदी, इत्यादी) जितनें भी सम्प्रदाय रहें हैं इनमें कुछ सम्प्रदाय ईश्वर की एकीय शक्ति का विश्वास करतें हैं! तो कुछ सम्प्रदाय किसी भी प्रकार की ईश्वरीय शक्ति को मानने से इंकार करते हैं!
जब इन सम्प्रदायों की प्रमुख धारणा प्रणाली को देखा जाए तथा ईश्वर के प्रति उनके दृष्टिकोण पर एक दृष्टि डाली जाए तो हम उनमें काफी अंतर पाते हैं –
•हिन्दू(ब्राह्मणवाद)कई तरह के देवी देवताओं पर विश्वास करते हैं।
(जाट कौम ने हिंदुओं को सम्मान इसिलिये दिया क्योकी हिंदू जाटों की #वेद_विध्या को स्वीकार करने लगे)
•बौद्ध व जैन कहते हैं कि कोई ईश्वर स्वरूप नहीं है।
•नए युग को मानने वालों के अनुसार वे ही ईश्वर हैं।
•मुसलमान एक शक्तिशाली पर अनजान ईश्वर पर विश्वास करते हैं।
•ईसाई वैसे ईश्वर पर विश्वास करते हैं जो प्रेम करनेवाला है और उस तक आसानी से पहुँचा जा सकता है।
•यहूदी मान्यताओं के अनुसार ईश्वर एक है उसके अवतार या स्वरूप नहीं है, लेकिन वो दूत से अपने संदेश भेजता है। ईसाई और इस्लाम धर्म भी इन्हीं मान्यताओं पर आधारित है
अब यहा आपने देखा हैं की जो- जो सम्प्रदाय ईश्वरिय शक्ति को मानतें हैं!उनका भी ईश्वरीय शक्ति को पहचाननें का तरीका जो हैं वह अलग अलग हैं! यही कारण है की ये सब अलग -अलग पंथ बनकर रह गये हैं इसी प्रकार संसार में पाए जाने वाले धर्मों को दो क़िस्मों में बांटा जा सकता है। सत्य व असत्य धर्म। सच्चा धर्म वह है जिसके सिद्धांत तार्किक और वास्तविकताओं से मेल खाते हों और जिन कार्यों का आदेश दिया गया है उसके लिए उचित व तार्किक प्रमाण मौजूद हों। काल्पनिकता कुछ भी न हों!
जाट सर्व-सम्प्रदायी हैं!जाट का मुख्य धर्म सबकी सेवा सबका सम्मान रहा हैं! जाट हमेशा सत्य, न्याय, और कर्म पर विश्वास करने वाले रहे हैं! जाटों ने कभी एक सम्प्रदाय का गुलाम बनकर रहना पंसद नही किया! जहाँ जहाँ जिस सम्प्रदाय के नियमों में जाट को ईश्वर के एकीय शक्ति का प्रमाण मिला जाट ने हमेशा उस सम्प्रदाय का साथ दिया! दुनिया का अतिप्राचीन और कभी सबसे बड़ा सम्प्रदाय रहा ( वैदिक-सम्भय्ता (जिसे बौद्ध का ही रूप समझा जाता है) ) जाटों का मुख्य धम्म रहा हैं ! वेदों की रचना जाटों नें ही की थी!लेकिन जाटों ने समय के बदलाव के साथ खुद को बदलते हुए, हर नये धर्म और पंथ को सम्मान दिया ,जिसका मुख्य कारण है की जाट आज विश्व के लगभग हर सम्प्रदाय में मौजूद हैं! नीचे चार्ट में विश्व के सम्प्रदायों मे जाट प्रतिशत दर्शाया गया हैं! यहा एक बात बताना जरूरी होगा की जाटों का हिंदु सम्प्रदाय में शामिल होना भी एक मुख्य कारण है की हिंदु सम्प्रदाय के निर्माताओं ने जाटो के मुख्य बौद्ध ग्रंथ( वेद के नियमों)को अपनें सम्प्रदाय के नियमों में शामिल किया,यह बात अलग है की तब जाटों को अपने हिंदु सम्प्रदाय में शामिल करने के पीछे उन धर्म निर्माताओं का क्या मकसद रहा होगा!यह जाटों को पता नही था! लेकिन जाटों ने ईश्वर की एकिय शक्ति को मानकर हिंदु सम्प्रदाय को भी अपनी सेवा और सम्मान दिया! उस समय जाट कौम सबसे ताकतवर और मेहनती कौम थी! सारे ब्राह्मण और अन्य सभी छोटे -मोटे कबीले जाटों की मेहनत पर अपना पेट पालते थे! (तभी जाट कौम को देवता कौम कहा गया है)आजकल इस हिंदु सम्प्रदाय में ईश्वर के अनेको रूप देखने को मिल जायेगे! जो ज्यादातर काल्पनिक से लगते हैं! लेकिन हमें यहा किसी सम्प्रदाय या पंथ को मानने वालों को ठेस न पहुंचा कर जाट कौम के धर्म की चर्चा करनी हैं! जब हम जाट कौम के धर्म की चर्चा करने बैठते हैं तो जाटों के बारें में एक महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं कि अत्यावश्यक काल के दौरान जाटों के बीच यह धार्मिक पहचान कैसे विकसित हुई थी।तब पता चलता हैं की पंजाब और अन्य उत्तरी क्षेत्रों(भारत,पाकिस्तान, अफगान,चीन के क्षेत्र) में बसने से पहले, जाटों ने किसी भी मुख्यधारा के धर्मों के लिए बहुत कम जोखिम व्यक्त किया था। कृषि भूमि में अधिक एकीकृत हो जाने के बाद ही जाटों ने उन लोगों के प्रमुख धर्म को अपनाना शुरू किया, जिनके बीच वे रहते थे!!आखिरी में मेरा मानना यही है की जाट ईश्वर की एकिय शक्ति पर विश्वास करने वाले रहे हैं! तो जाट कौम भविष्य में उस पांखड या उन नियमोंं को न अपनायें जो ईश्वर के अस्तित्व को करोड़ो रुप में बांटता हों!इस स्रष्टी को चलानें वाली शक्ति एक हैं! जिसे न तो किसी ने देखा हैं और न किसी नें जाना हैं! यह सर्ष्टी़ पांच तत्वों से चलती हैं! प्रक्रति के नियम से जो पांच तत्व बनें हैं! वह हैं! भुमि,गगन,वायु,अग्नि, नीर(भ+ग+व+अ+न) जिस दिन इन पांच तत्वों में से एक तत्व धरती पर से नष्ट हो जायेगा उस दिन समस्त मानव जाति का नाश हो जायेगा
अर्थात जाट कौम पाखंड वाद व अंधविश्वास को बढ़ावा न देकर अपनें चरित्र पुजन की और ध्यान दें! जाट धर्म के बारे में अतीत की ज्यादा जानकारी के लिये आप महान लेखकों की उन पुस्तकों को पढ सकते जो जाट कौम पर लिखी गई है!
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* ★जाट-कथन★
जाट कौम का पूरा इतिहास सबसे अलग है। विदेशी तथा स्वदेशी इतिहासकारों व विद्वानों का जाटों के बारे में क्या कहना है?
स्वयं को महान् कहने से कोई महान् नहीं बनता । महान् किसी भी व्यक्ति व कौम को उसके महान् कारनामे बनाते हैं और उन कारनामों को दूसरे लोगों को देर-सवेर स्वीकार करना ही पड़ता है। देव-संहिता को लिखने वाला कोई जाट नहीं था, बल्कि एक ब्राह्मणवादी था जिसके हृदय में इन्सानियत थी उसने इस सच्चाई को अपने हृदय की गहराई से शंकर और पार्वती के संवाद के रूप में बयान किया कि जब पार्वती ने शंकर जी से पूछा कि ये जाट कौन हैं, तो शंकर जी ने इसका उत्तर इस प्रकार दिया -
महाबला महावीर्या महासत्यपराक्रमाः |
सर्वांगे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़व्रताः ||15||
(देव संहिता)
अर्थात् - जाट महाबली, अत्यन्त वीर्यवान् और प्रचण्ड पराक्रमी हैं । सभी क्षत्रियों में यही जाति सबसे पहले पृथ्वी पर शासक हुई । ये देवताओं की भांति दृढ़ निश्चयवाले हैं ।
इसके अतिरिक्त देश विदेश के इतिहासकारों और महान दार्शनिकों ने जाट कौम पर जो टिप्पणीयाँ की है वह आप इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते है/
अन्यथा में अगली पोस्ट का इंतजार करें
सबकी टिप्पणीयों को पढ़ने के बाद मैं भी एक टिप्पणी करना चाहुंगा की
:- #जाट-अगर खुद की शक्ति को पुन: पहचान लें तो "" जाट को विश्व का संचालक बनने से कोई नही रोक सकता
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जाट--परिभाषा
जाट कौम एक प्रगतिशील नश्ल है! प्रगतिशीलता, विकाशवादीता व धार्मिकता जाटों की सोच है और इसी सोच के चलते जाट लोग आर्यन शैली की जड़ो से सबसे ज्यादा जुड़ा हुआ है! पंचायत की शुरुआत भी जाटों से ही हुई है! इन सबके बावजूद जाटों में अभिव्यक्ति की कमी रही है! अपनी बात को कैसे कहना है यह जाट के लिए काफी मुश्किल है! इसीलिए कहते है जाट में बुद्धि तो होती है पर स्यानेपन की कमी होती है! साथ ही जाटों से जुडी एक कहावत मशहुर है की - आगे सोचे दुनिया और पीछे सोचे जाट! यानी दुनिया के दुसरे लोग तो कहने से पहले सोचते है पर जाट कहने के बाद सोचता है और यह जाटों की सबसे बड़ी खामियों में से एक है जिसे अब दूर करना है!
अंग्रेजी के तीन शब्द "जस्टीस एक्शन व टूथ" अर्थात न्याय कर्म व सत्य पर अडिंग जाति के रूप में की गई है। परंतु यह परिभाषा पूरी तरह से जाट को परिभाषित नहीं कर पाती है जब धर्म का लोप होने लगता है तो लोग न्याय की पुकार करते हैं मानवता का धर्म कहता है कि स्वयं आनंद के सागर में तैरों और दूसरों को भी दु:ख मत दो।सत्य मंजिल है जो सदा शेष है वह सत्य है जिसे न घटाया जा सके न बढ़ाया जा सके व सत्य है जाट की परिभाषा न्यायकर्म व सत्य के शब्दों तक सीमित करना उचित नहीं है।
जाट परिभाषा हिंदी के शब्दों मे जो हैं! वो इस प्रकार है
ज= जुझारू, ा= आत्म सम्मानी, ट= टिकाऊ
जो जुझारू आत्मसम्मानी व टिकाऊ हो वह जाट है जाट का जुझारू पक्ष इतिहास में पग-² पर दिखाई देता है। भारत ही अपितु विश्व में जब-² महाभारत(युद्ध) हुआ हैं वहाँ सबसे आगे जाट मिला है। अपने आत्म सम्मान की रक्षा के लिए जाट कोई भी बलिदान कर सकता है। पगड़ी पर हाथ डालना उसे सहन नहीं है। जाट अपनी मान्यताओं पर सदा अडिंग मिलता है। इस प्रकार जाट देश व मानवतावादी धर्म की रक्षा में एक भी पग पीछे नहीं हटाता।ये प्रकृति-रचियता उनके साथ है जो रात-दिन संघर्ष करते हैं जो पुराने की समझ व नये की शक्ति का सहारा लेकर युग के संकेत को पहचानते हैं। ये प्रकृति- रचियता उनके साथ हैं जो महाराजा सूरजमल के शौर्य राजा महेंद्र प्रताप सिंह की समझ सर छोटू राम की शिक्षा चौधरी चरण सिंह की संघर्षशीलता व चौ.देवी लाल के सदाजयी संदेश से प्रेरणा लेकर जीवन के महाभारत में खड़े रहते हैं। जाटों के कर्म का मूल्य परिणाम में है। जाट के अंदर ईमानदारी कूट कूट कर भरी होती है इसीलिए केवल जाट ही एक ऐसी कौम है जिसमें पिता मरने से पहले अपने पुत्र को बताता है की किस किस का कितना कर्ज उसे चुकाना है! इस बात को हम एक और प्रसंग से साबित करना चाहते है जो इस प्रकार है - सन 1977 में चौधरी चरण सिंह एक विशाल रैली को पलवल हरयाणा में सम्बोधित कर रहे थे उन्होंने उस सभा में एलान किया था की मेरा बेटा अजित सिंह विदेश में पढाई कर रहा है और उसने गरीबी नहीं देखी है, अगर कभी जिंदगी में मेरे मरने के बाद वह आपसे वोट मांगने आये तो उसे वोट मत देना क्योंकि वह आपका भला नहीं कर सकता! ऐसा आज तक किसी और जाती के किसी भी नेता और राजनेता नहीं कहा है और भविष्य में भी इस बात की सम्भावना बहुत कम है!
एक और ख़ास बात जो जाटों के बारे में प्रचलित है की नट विद्या समझ आ जाए पर जट विद्या समझ ना आये! वास्तव में लोग इसे आज तक भी समझ ना सके और या यूँ कहें की खुद जाट भी इसे शब्दों में नहीं बता सकता है! ये एक ऐसी विद्या है जिसके लिए ऋषि महर्षियों ने भी जाटों से प्रार्थना की थी की वे इसके बारे में उन्हें बताएं, लेकिन ना ही कभी कोई इसे बयान कर सका और ना ही इसे कोई समझ सका!
इस विद्या का नाम है अग्नि विद्या जो सिर्फ खून में होती है और ये स्वाभाविक रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को ट्रांसफर होती रही है! इस विद्या को कैसे एक्सप्लेन किया जाए ये तो मुश्किल है पर इसकी विशेषतायें है खून की गर्मी, वचन निभाना व दर्द सहन करने की शक्ति! इसका उल्लेख महाभारत में उस समय आता है जब गुरु परसुराम ने करण को झूठ बोलकर विद्या ग्रहण करने पर श्राप दिया था ! गुरु परसुराम को ये बाद में पता चला था की करण सूद पुत्र नहीं, जाट(क्षत्रिय-पुत्र) है !
इसका दूसरा उदहारण रामायण का है जो की सर्व विदित है - रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाएँ पर वचन ना जाई!
(ये वचन केलव जाट ही पाल सके हैं )हर किसी के बस की बात नही होती वचन पर टिके रहना ,,
ऐसें बहुत से उदाहरण है की जाटों ने वचन बंद्धता के कारण अपना राज तक छोड़ दिये!!
प्रत्येक जाट को इतना याद रखना चाहिए कि कांटे बोये नहीं जाते हैं और अधिकार मिलते नहीं छीने जाते हैं।
संपन्नता मित्र बनाती है विपदा उसकी परख करती है।
... ★जाट-चरित्र और विशेेषता★
हम जाट प्राचीनकाल(आदिकाल) से ही वैदिक संंस्क्रति के अनुयायी रहे हैं!! मानव समाज के अग्रणी कार्य , किसानी( कर्षि- सम्बंधित)कार्य, और समाज की रक्षा ( सैनिक) कार्य करनें में जाट समाज की हमेंशा मुख्यता रही हैं!! परिश्रम करने वालो के पास दरिद्रता नही दिखाँई देती!! ये प्रत्यक्षता हम हमारी जाट- कौम में देख सकते हैं!! जाट चाहे अमीर-घर का हो या गरीब-घर का जाट के घर आपको कभी फुहड़ता, दरिद्रता, नजर नही आयेगी! जाट सत्य पर विश्वास करने वाले और सत्य के मार्ग पर चलने वाले होते है,अगर कही पर भी सत्य बोलने से परिणाम चाहे जाट के खिलाफ हो तो वहा पर जाट सत्य बोलना पसंद करेगा, ये जाटों की सबसे बड़ी विशेषता रही हैं! जाट शारीरिक-नजरिये से बहुत हष्ठ-पुष्ठ और बलशाली होते है! जाट बिल्कुल शांत स्वभाव के होते हैं! हमारा
खान-पान भी शुद्ध सात्विक दूध-दही-घी-छाछ का ही सेवन हैं! जो की जाट-संस्कृति में युगों का भोजन है और यह आज भी प्रचुर मात्रा में हमारी थाली में मिलते है! जीभ के स्वाद के लिये कुछ भी नही खा लेते!!इतने संयमी सहज और वैदिक-संस्कृति से जीवन जीने वाले हम जाटों की अन्य खास विशेषताएँ यह भी रही है की हम जाट नारी सम्मान के मामले में अन्य समाजों से बेहतर और उनसे आगे रहें हैं!! वैदिक सम्भयता के अनुसार हम जाट कन्या भ्रुण हत्या के विरोधी, बेटा-बेटी: सम्मान-शिक्षा के हकदार,, विधवा नारी के पुन: विवाह के समर्थन में रहे हैं( जाट कौम के किसी घर में कोई नारी अगर विधवा हो जाति है, तो वह नारी अपने देवर या अपने दिंवगत पत्ति के बड़े भाई से ब्याह कर सकती हैं!अगर किसी कारण वंश अपने दिवंगत पत्ति के भाई से विवाह न हो सके तो उस विधवा जाटनी का ससुराल पक्ष उसे वैदिक रिती-रिवाजों से अपनी बेटी की तरह दुसरे जाट घर में ब्याह कर देतें हैं!! जाट समाज के लोग इस कार्य को एक महान पुण्य कार्य मानते हैं!!
चारित्रिक गुण में जाट प्राचीन आंग्ल-सेक्सन (Anglo Saxon) तथा प्राचीन रोमवासियों (Ancient Roman) की तरह सहनशील, सोच विचार कर मन्दगति से आगे बढ़ने गाले, कल्पना-भावुकता तथा तड़क-भड़क से शून्य होने पर भी दृढ़-विचारक, शक्ति-सम्पन्न, धैर्यवान् अथवा लगनशील और अपने विचारों को विशिष्ट-रूप से सुरक्षित रखने वाले हैं। शब्द प्रमाण ,वअनुमान आधारित तर्क की अपेक्षा ठोस क्रियात्मक कदम उठाने वाले और निश्चयात्मक प्रमाण के आधार पर निश्चित निर्णय लेने में सक्षम हैं। दृढ स्वाभिमानी, प्रबल स्वाधीनता-प्रेमी लोकतान्त्रिक परम्परा के पुजारी हैं!!जाट अपनी भूमि के प्रति समर्पित रहते हैं, इसके सम्बन्ध में किसी प्रकार की दखलन्दाजी सहन नहीं कर सकते हम! हम जाटों में देशभक्ति, सैनिक निपुणता, और हमारी कार्य-क्षमता, हमारी बहादुरी, की दुनिया कायल हैं, हमारी इन विशेषताओं पर कोई शक नही कर सकता:! वही दुसरी और सुलतान महमूद गजनवी, तैमूरलंग, नादिरशाह या अहमदशाह अब्दाली आदि के साथ जाटों के किए गए युद्धों की ओर दृष्टि डालते हैं तो - हर एक से और हर जमाने में हमारे जाट-चरित्र का पता चलता है। बड़े से बड़े विजेता की दिल दहला देने वाली प्रशंसा सुनकर भी उससे न डरना और बाद में हो जाने वाली हानि का ध्यान न करके मैदान छोड़कर भागते हुए शत्रु को खदेड़ते चले जाना, युद्ध में शत्रु से भिड़ जाने पर पूर्ण धैर्य धारण करना और अद्वितीय गम्भीर साहस का परिचय देना, युद्ध-क्षेत्र में तथा हार जाने पर आने वाली आपत्तियों का तनिक भी ध्यान न करना और अपने शत्रु की निर्दय तलवार के सिखाये हुए सबकों को बहुत जल्दी भूल जाना आदि हम जाटों के चरित्र व विशेषता का के मुख्य अंग हैं!आदिकाल से अब तक शत्रुओं के आक्रमण जो भारतवर्ष पर हुए हैं, उनका मुंहतोड़ जवाब जाटों ने दिया है!!!जाट अपने मित्र के साथ सच्ची मित्रता निभाता है और किसी से शत्रुता होने पर उसके साथ भी वैसा ही विवाद रखता है। कहावत है कि एक बूढ़ा जाट शांति से नहीं मरेगा जब तक कि वह अपनी सन्तान को भलाई व बुराई न सिखा दे। उसके साथ अच्छे व्यवहार करनेवालों का ऋण चुकाने और बुरे व्यवहार करनेवालों का बदला लेने ले किए अपनी सन्तान को अपनी मृत्यु समय तक भी कह जाता हैं।। जाट का एक विशेष चरित्र यह भी है कि किसी की धरोहर, उधार राशि को ठीक से लौटायेगा और भूखा मरने पर भी किसी से भीख नहीं मांगेगा। यह है जाट का आत्मगौरव। अतिथि सत्कार करना, भूखे को भोजन देना और समय आने पर दिल खोलकर अपनी शक्ति से भी अधिक दान देना आदि जाटों का पैतृक चरित्र है।
जाट अपनी तुरतबुद्धि के लिए भारत की सभी जातियों में श्रेष्ठ माना जाता है। जाट जाति के लिए कहावत है कि “अनपढ जाट पढे जैसा, पढा लिखा जाट खुदा जैसा।”
जाटों ने देश विदेशों में शत्रु को पराजित करके जहां भी अपना राज्य स्थापित किया वहां की जनता पर अत्याचार, दुर्व्यवहार और व्यभिचार, अन्याय आदि नहीं किये किन्तु उनके साथ सदव्यवहार और न्याय किया तथा उनकी स्त्रियों को अपनी बहिन समझकर उनको सम्मान दिया। इतना उच्च चरित्र का उदाहरण जाट जाति के लिए बड़े गौरव की बात है। जब जाटों ने रोम (इटली) में अपना राज्य स्थापित किया था तो इन व्यवहारों को देखकर ही तो वहां की जनता ने कहा था - “क्या ही अच्छा होता कि अब से बहुत समय पहले जाट लोग हमारे शासक होते!”हम जाटों की सबसे बङी विशेषता हमारा स्वाभिमानी होना।।एक जाट नुकसान तो उठा सकता है परन्तु अपमान नही सहन कर सकता ।।
मान सम्मान से कोई उसे जहर भी दे दें तो पी लेगा परन्तु यदि उसका अपमान करके कोई उसे अमृत भी दे तो उसे वह हेय मनता है ।।हम जाट है तो अाखिर शंकर पुञ।जिन शंकर जी के विषय मे लिखा गया है"
मान सहित विषखाय के शंभु बने जगदीश,बिन मान अमृत पीयो राहु कटायो शीष "
एक पक्का जाट अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपने प्राण भी दे सकता है पर सौदा नही करता। दिल्ली के सिंहासन पर बैठने वाले मुस्लिम शासकों की निद्रा जाटों के कारण ही लुप्त होती थी। इन पवित्र वीर जाट क्षत्रियों की एक विशेषता और थी कि कुछ क्षत्रियों ने तो विधर्मी शासकों को अपनी कन्यायें दे दीं थीं, किन्तु जाटों ने यह पाप नहीं किया।
जाटवीर महाराजा जवाहरसिंह ने सन्धि की शर्त के अनुसार दिल्ली के मुगलसम्राट की लड़की का डौला लिया था।
*1891 में अग्रेजों ने भारत के जाटों के बारे में बड़ी ही सरल व्याख्या की थी!
जाट लोग सबसे दिलचस्प ट्राइब है | उनकी सहजता और स्थिरता इतनी है की उनके बारे में ज्यादा नहीं जाना जा सकता | यह गुण उनके पालन पोषण की वजह से आया हुआ है | वो एक ऐसे शानदार सफ़ेद बैल के माफिक है जिस पर हर कोई गर्व करता है | जाटों में किसानी एक स्वाभाविक गुण है और वो औरतों की इज्जत बहुत करते है | पुरे भारत में उन जैसा किसान नहीं है | उनका फसल और मौसम के बारे में ज्ञान अद्वित्य है और इनके जैसा ज्ञान किसीको नहीं है | उनके परिवार का हर सदस्य खेती के कार्य से जुड़ा हुआ होता है | जाट को अंधविश्वासी कर्म कांडों से कोई लेना देना नहीं होता | उनके बारे में यह एक आम कहावत कही जाती है की लोहे से मजबूत जाट और जाट को मरा तभी मानिए जब तेरहवी हो जाए क्यूंकि इनका कोई भरोसा नहीं कब यह वापस उठ खड़े हो जाए | आगे लिखते है की ब्रिटिश सेना में सबसे बहादुर और दमदार जवान ही जाट है |
जाट के सभी लक्षण उसके कबीले से मिलते है | हमे जाटों में सामंतवाद के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते | ये एक मजबूत जाति है जिसमे संवेदनाएं मानवीय होती है और धार्मिक संवेदनाओं के प्रति ये शून्य होते है | इनका सामाजिक स्तर देखे तो इनमे परस्पर श्रेष्ठता का भाव नहीं होता और यह एक ऐसा समुदाय है जिसमे हर स्तर पे समानता का भाव होता है (Dead Level of equality) |

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