Tuesday, September 4, 2018

कुछ भटकते-खटकते ख़याल संदर्भ: शिक्षक दिवस ......

कुछ भटकते-खटकते ख़याल
संदर्भ: शिक्षक दिवस
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जीवन को गढ़ने-संवारने में माता -पिता के बाद सबसे ज़्यादा प्रभावी भूमिका निभाने वाले उन सभी गुरुजनों को नमन, जिन्होंने अपने आदर्श और कर्तव्यनिष्ठ जीवन से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया है।
शिक्षक दिवस पर विशेष स्मरण शिक्षा-संत शिरोमणि महात्मा ज्योतिबा फुले और उनकी अर्धांगिनीशिक्षक दिवस के लिए इमेज परिणाम सावित्रीबाई फुले का जिन्होंने सामंतवादी और रूढ़िवादी भारत में वंचित वर्ग की संतति को शिक्षित करने का सपना देखा और उसे साकार करने व उनकी शिक्षा का मार्ग प्रशस्त करने हेतु स्कूल खोलने का क्रांतिकारी कदम उठाया। फुले दंपति की स्मृति को शत- शत नमन।

अच्छाई और बुराई कम-बेशी हर युग में विद्यमान रही है। इस युग कि ख़ास बात यह है कि इसमें सब कुछ उलटा-पुलटा हो गया है। बढ़िया और घटिया का घालमेल इस बेतरतीबी से हुआ है कि आम आदमी के लिए उनमें विभेद करना बेहद मुश्किल हो गया है। जिधर देखो, उधर घटिया ने बढ़िया का मनोहारी आवरण धारण कर लिया है और बढ़िया को धकेलकर अपनी दुकानदारी जमा रखी है।
असल में शिक्षित व्यक्ति वह है जो अच्छाई और बुराई ( good and bad ), उत्कृष्ट और निकृष्ट, बढ़िया और घटिया ( first-rate and second-rate ) में विभेद करने में सक्षम हो तथा जिसमें सही और ग़लत ( right and wrong ) की सबल समझ हो। स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाला शख्श पढ़ा हुआ/ प्रशिक्षित ( schooled / trained) तो होता है पर वास्तविक अर्थों में शिक्षित ( educated ) हो, यह जरूरी नहीं।
कुछ हद तक सही है कि शिक्षक को समाज में सम्माननीय दर्जा दिया जाता रहा है। 'गुरु', 'शिक्षक', 'आचार्य', 'अध्यापक', 'टीचर' -- ये सभी शब्द ऐसे व्यक्ति को चित्रित करते हैं, जो ज्ञान का उजाला फैलाता है, विद्यार्थियों को सिखाता है, समझाता है और देश के भविष्य का निर्माण करता है।
शिक्षक का काम सिर्फ़ पढ़ाने तक सीमित नहीं बल्कि शिक्षार्थी को सही रूप में शिक्षित ( educate ) करना भी होता है। टीचिंग का दायरा किसी विषय को समझाना, उससे संबंधित सूचना व तथ्यों से अवगत करवाना और शिक्षार्थी को सीखने व समझने में सहायता प्रदान करने तक सीमित है। जबकि असली अर्थ में शिक्षित करने का मतलब शिक्षार्थी को जिज्ञासु बनाना, प्रबुद्ध बनाना, मानसिक रूप से सबल बनाकर निडर बनाना, उत्प्रेरित करना, उसकी रचनाधर्मिता व प्रयोगधर्मिता को उभारना और उसे ज्ञान से प्रदीप्त करना है।
वस्तुतः शिक्षक ही विद्यार्थी का जीवन गढ़ता है,संवारता है, इसीलिए शिक्षक को 'समाज का शिल्पकार' कहा जाता है। सच्चा शिक्षक एक ऐसा अनुभवी व भरोसेमंद परामर्शदाता होता है जो बौद्धिक, नैतिक व सामाजिक शिक्षण प्रदान करता है। वह जीवनपर्यंत मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है, भटके हुए को राह दिखाता रहता है और समाज में जागरण की ज्वाला प्रज्वलित करता रहता है।
सच्चा शिक्षक वही है, जो स्वयं निरन्तर कुछ- न-कुछ सीखता हो। जिसने सिखाने का साहस कर लिया, उसे खुद सीखने से कभी परहेज़ नहीं करना चाहिए।
Who dares to teach must never cease to learn.
'वह दीपक जो अपनी ज्योति को प्रज्वलित किए हुए नहीं है, दूसरे दीपक को क्या जलाएगा? जो शिक्षक अपने ज्ञानार्जन को संपूर्ण मान लेता है, और ज्ञान को जीवंत बनाए रखने का यत्न नहीं करता, बल्कि रटे हुए पाठ को ही दोहराता रहता है, वह विद्यार्थियों के मस्तिष्क में सूचनाएं ठूंस कर उसे आगे तो ठेल सकता है, परन्तु उसमें गति और वेग उत्पन्न नहीं कर सकता। ज्ञान केवल सूचनासम्पन्न ही नहीं; प्रेरक भी होना चाहिए।'
"ज्ञान बोझ है यदि आपको यह विचार देता है कि आप बुद्धिमान हैं; ज्ञान बोझ है यदि यह आपको स्वतंत्र नहीं करता, ज्ञान बोझ है यदि वह आपको यह प्रतीत कराता है कि आप विशेष हैं।"
रवींद्रनाथ टैगोर के अनुसार स्वतंत्रता की मौजूदगी में ही शिक्षा को अर्थ एवं औचित्य हासिल होता है। जैसे बीज में संपूर्ण वृक्ष का रूप धारण करने की क्षमता निहित होती है, वैसे ही व्यक्ति में अपने अनूठे व्यक्तित्व के विकास की क्षमता निहित होती है। जैसे हर कली में फूल बनकर खिलने की काबिलियत मौजूद होती है, वैसे ही हर विद्यार्थी में प्रतिभा के पल्लवन की अपार संभावनाएं मौजूद होती हैं। व्यक्ति के बौद्धिक एवं आध्यात्मिक अस्तित्व के सशक्तिकरण में शिक्षा की प्रमुख भूमिका होती है। यह जान लेना जरूरी है कि वैयक्तिकता ( individuality ) मनुष्य की अमूल्य निधि है।
शिक्षा पर ओशो के विचार सारगर्भित होने के साथ- साथ ज़माने की जरूरत के अनुरूप भी हैं:
"शिक्षा भविष्योन्मुख होनी चाहिए, अतीतोन्मुख नहीं, तभी विकास हो सकता है। कोई भी सृजनात्मक प्रक्रिया भविष्योन्मुख ही हो सकती है। क्या यह उचित नहीं है कि हम भविष्य के लिए प्रेम और आदर सिखायें? अतीत की अर्थहीन पूजा बहुत हो चुकी। क्या अब यह उचित नहीं है कि हम भविष्य के सूर्योदयों के लिए हमारे हृदयों में प्राथनायें हों?
वस्तुतः कोई भी मनुष्य किसी दूसरे जैसा होने को पैदा नहीं हुआ है। प्रत्येक को स्वयं जैसा ही होना है। प्रत्येक को, उस बीज को ही वृक्ष तक पहुंचाना है जो कि उसमें ही छिपा है, और मौजूद है।
शिक्षा जिस दिन भी व्यक्ति की अद्वितीय और बेजोड़ निजता के सत्य को स्वीकार करेगी, उस दिन ही एक बड़ी क्रांति का सूत्रपात हो जाएगा।"
रवींद्रनाथ टैगोर का मानना है कि उच्चतम शिक्षा वो है जो हमें सिर्फ जानकारी ही नहीं देती बल्कि हमारे जीवन का सामंजस्य धरती के समस्त सजीवों के साथ स्थापित करवाती है।
The highest education is that which does not merely give us information but makes our life in harmony with all existence.
मालूम हो कि उच्च शिक्षा केंद्रों, यथा विश्विद्यालय व कॉलेज, का मूल मकसद मानवता, सहिष्णुता, तर्क, नए विचारों के प्रस्फुटन और सत्य की तलाश के ज़रिए मानव सभ्यता को उसके उच्चतर आदर्श तक ले जाना माना गया है। परन्तु असल में हो क्या रहा है, वो एक अलग मसला है।
वैसे सीखने की ललक रखने वाले के लिए जगत की हर घटना/ चीज़, हर असफ़लता, हर ठोकर शिक्षक की भूमिका में है। धरती और आकाश, जंगल और मैदान, झीलें और नदियां, पहाड़ और समुद्र, पेड़ और पौधे--ये सब श्रेष्ठ शिक्षक हैं। सीखने वाले को जितना ये सिखाते हैं, उतना कोई किताबों से नहीं सीख सकता। यह भी कह सकते हैं कि सीखने की तम्मना रखने वाले के लिए जिंदगी का हर दिन शिक्षक बनकर आता है। जिंदगी का हर पल शिक्षक, हम शिक्षार्थी।
जागृत नागरिक ही जागृत और समृद्ध देश का निर्माण करते हैं। जागृत देश की पहचान कविवर रवींद्रनाथ टैगोर के शब्दों में यह है:
'जहां मस्तिष्क डर से परे है
और सिर जहां ऊंचा है,
ज्ञान जहां मुक्त है.
जहां दुनिया को
संकीर्ण घरेलू दीवारों से
छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटा नहीं गया है;
जहां शब्द सच की गहराइयों से निकलते हैं...'
Where the mind is without fear
and the head is held high,
where knowledge is free.
Where the world has not been broken up into fragments by narrow domestic walls.
Where words come out from the depth of truth,...
काश! ऐसे जागृत और आधुनिक सोच से समृद्ध देश का हमारा सपना साकार हो जाए। इस दौर के न्यू इंडिया की ख़्वाहिश तो कभी नहीं की थी। खैर, उम्मीद पर दुनिया क़ायम है।
Prof. HR Isran
Retired Principal, College Education, Raj.

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