#अमर_शहीदों_को_नमन्
13मार्च 1947का दिन था।जगह थी नागौर जिले की डीडवाना तहसील में गांव डाबड़ा!एक किसान कंटीली बाड़ के ऊपर से जैली के साथ सैंकड़ों हमलावरों के सामने डटा हुआ था!शरीर गोलियों से छलनी हुआ जा रहा था मगर लगातार मुकाबला कर रहा था!अंतिम सांस लेने से पहले कहता है "मैं मरकर भी जिंदा रहूंगा और तुम जिंदा रहकर भी मुर्दा रहोगे!"
दरअसल राजस्थान में अंग्रेजों के गुलाम रजवाड़ों का राज था और उनको बचाये रखने के लिए सामंतों के हथियारबंद लोग थे!देश मे अंग्रेजों से आजादी का आंदोलन चल रहा था मगर किसान वर्ग चाहता था कि इन अत्याचारी सामंतों से आजादी भी साथ मे मिले!
मारवाड़ में किसान हित में लड़ने के लिए किसान सभा बन चुकी थी।डाबड़ा गांव के किसान पन्नाराम लोमरोड़ के नेतृत्व में किसानों ने किसान सभा की मीटिंग रखी जिसमे लोकपरिषद व कांग्रेस के नेताओं को भी बुलाया गया था।
सभी नेता सुबह-सुबह पन्नालाल लोमरोड़ के घर पहुंचे और मीटिंग शुरू की ही थी और सामंतों के हथियार बंद लोगों के पहुंचने की सूचना मिली।लोकपरिषद व कांग्रेस के नेता वहां से चले गए और पन्नालाल ने घर का दरवाजा बंद कर दिया और अकेले ही सैंकड़ों हथियार बंद लोगों से मुकाबला किया!
दूसरी तरफ आसपास किसानों की बस्तियां,बाड़े व चारा गुंडों ने आग के हवाले कर दिया!आग की लपटों के बीच लाडनूं से पहुंचे रुघाराम,रामूराम,किशनाराम लोल ने मोर्चा संभाला।करसी-जैली जैसे खेती के औजार हाथ मे थे तो दूसरी तरफ तलवारें व बंदूक की गोलियां!अपनी जान की बाजी लगा दी मगर पीछे नहीं हटे!डाबड़ा गांव जलियांवाला बाग बन गया!बताया जाता है कि 13किसान शहीद हुए और सैंकड़ों घायल!इस संघर्ष में पन्नाराम का बेटा मोतीराम भी शहीद हो गया था!
खुद डीडवाना परगने के जागीरदार ने कहा "ये ऐसे वीरों की भांति लड़े कि इंच-इंच कटते रहे मगर पीछे नहीं हटे!"
सामंतों का ऐसा कहर था कि घायलों के इलाज के लिए और शहीदों के अंतिम संस्कार के लिए पूरे मारवाड़ के नेताओं सहित अंग्रेजी हुकूमत को दखल देना पड़ा था!
समाज सुधारक व लोक गायक हीरासिंह चाहर ने कहा..
मैंने देखी है मारवाड़ में, कृषकों के कर में हथकड़ियाँ !
उनके आँगन में देखी है,चंद जली बुझी सी फुल झड़ियाँ !!!
कुछ फूल खिले पर, महक सके कुछ घड़ियाँ !
जागीरों के साये में, जुड़ती रही जुल्मों की कड़ियाँ !!
तब हरिसिंह दहाड़ उठा,जागीरों में जंग,अब जीत कृषकों की !
आज नहीं तो कल सही, बात कही मैं परसों की !!!
और हकीकत में यह मारवाड़ के किसानों के लिए एक नजीर बन गया!हर दूसरे गांव में किसान जैली लेकर सामंतों के खिलाफ खड़े हो गये!संघर्ष की इस दास्ताँ पर विराम लगाया स्वर्गीय बलदेवराम जी मिर्धा ने जब किसानों को कानूनन भूमि का मालिक बना दिया!
डाबड़ा कांड जुल्मी सामंतों के निर्दयी शासन की इंतहा की निशानी है तो जाट किसानों के पराक्रम व वीरता की अमर कहानी!हीरासिंह चाहर के शब्दों में ही...
नाहर सो काळजो राखता,
रूतबो राखता करषां रो,
डाबड़ा म ठाकरां सू भिड़,
इतिहास बणायो बरसां रो,
वीर यौद्धाओं को नमन करता हूँ💐💐💐
प्रेमाराम सियाग
राजा सूरजमल: एक काबिल जाट राजा जिसका इतिहास में जिक्र न होना दोनों के साथ अन्याय है
हाल ही में पानीपत फ़िल्म में राजा सूरजमल के विवादित चित्रण का विरोध होने पर राजस्थान में इस फिल्म का प्रदर्शन रोक दिया गया
हिंदी फिल्म ‘जोधा-अकबर’ और ‘पद्मावत’ के बाद राजस्थान में ‘पानीपत’ का भी जमकर विरोध हुआ. इस विरोध का कारण था इसमें भरतपुर रियासत की स्थापना करने वाले महाराज सूरजमल का विवादित चित्रण. पानीपत में दिखाया गया कि राजा सूरजमल ने अपने लालच की वजह से अहमद शाह अब्दाली के ख़िलाफ़ लड़ने आए मराठा सरदार सदाशिवराव भाऊ का साथ ऐन मौके पर छोड़ दिया था. इसके चलते मराठाओं को इस युद्ध में भारी जान-माल के नुकसान के साथ शिकस्त का भी सामना करना पड़ा था. माना जाता है कि यदि पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठे, अफ़गान आक्रमणकारी अब्दाली से नहीं हारते तो शायद हिंदुस्तान को अगले करीब 200 साल तक अंग्रेजों की गुलामी नहीं झेलनी पड़ती.